आज मनाया जाएगा 'ईद-उल-अजहा' का पर्व
सरस्वती उपाध्याय
इस्लाम धर्म में ईद उल अजहा दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। ईद-उल-अजहा के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। ईद उल अजहा को बकरीद, बकरा ईद अथवा ईद-उल-बकरा के नाम से भी जाना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, इस बार बकरा ईद 17 जून यानी आज मनाई जाएगी।
इस्लामिक कैलेंडर में 12 महीने होते हैं और इसका धुल्ल हिज इसका अंतिम महीना होता है। इस महीने की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा या बकरीद का त्योहार मनाया जाता है, जो कि रमजान का महीना खत्म होने के 70 दिन बाद आता है।
आखिर कहां से शुरू हुई कुर्बानी की प्रथा ?
बकरा ईद को वैश्विक स्तर बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। कुरान के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान कर दें। हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल सबसे ज्यादा प्यारे थे। अल्लाह के हुक्म के बाद हजरत इब्राहिम ने ये बात अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई।
बता दें, हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी। जिसके बाद उनके लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल काम था। लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी।
लेकिन, जब उन्होंने अपनी आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा हुआ है। जिसके बाद अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरुआत हुई।
ऐसे मनाएं ईद-उल-अजहा या बकरीद
दुनिया भर में मुस्लिम लोग इस दिन को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं। इस दिन सबसे पहले सुबह नहाकर करके अल्लाह को नमाज अदा करें। उसके बाद साफ और पारंपरिक कपड़े पहनें। फिर परिवार के बड़े लोग नमाज अदा करने के लिए मस्जिद जाएं और कुर्बानी की सभी रस्में अदा करने के बाद अल्लाह के प्रति अपना आभार व्यक्त करें। फिर अपने प्रियजनों और रिश्तेदारों को शुभकामनाएं दें। उसके बाद जरूरतमंदों को भोजन और नए कपड़े दें। बुजुर्ग लोग अपने छोटों को ईदी दें, जो इस त्योहार की सबसे महत्वपूर्ण रस्मों में से एक मानी जाती है।
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