रविवार, 31 मार्च 2024

11 वर्ष बाद बच्चीं से दुष्कर्म-हत्या में रिहाई

11 वर्ष बाद बच्चीं से दुष्कर्म-हत्या में रिहाई

अकांशु उपाध्याय 
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के भोपाल से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक शख्स को एक 9 साल बच्ची का रेप और हत्या करने के जुर्म में तीन बार मौत की सजा सुनाई गई। लेकिन 11 साल बाद वो ही शख्स रिहा हो गया। आप सोच रहे होंगे ये कैसे संभव है ? तो आइए इसकी वजह भी बता देते हैं। दरअसल उस शख्स को डीएनए रिपोर्ट में गड़बड़ी होने के चलते रिहा कर दिया गया। बच्ची की डीएनए रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि वीर्य आरोपी के नहीं बल्कि किसी और शख्स के हैं।
4 मार्च, 2013 को खंडवा के निवासी और खेतिहर मजदूर अनोखीलाल को खंडवा की विशेष अदालत ने यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा (POCSO) के तहत मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। तब वो 21 साल का था। यह उन मामलों में से एक था जिसमें पुलिस ने जांच और मुकदमा एक महीने के भीतर पूरा किया था और 9 साल की बच्ची का रेप और हत्या करने के जुर्म में सबसे कड़ी सजा दी गई थी। हैरानी की बात ये है कि लड़की का जो डीएनए टेस्ट किया गया उसमें ये संकेत मिले थे कि वीर्य किसी दूसरे पुरुष के थे। लेकिन इसके बावजूद उसे मौत की सजा सुना दी गई।
उनमें उसका आखिरी बार लड़की के साथ देखे जाना, डीएनए रिपोर्ट में अनोखीलाल के बाल लड़की के हाथ में पाए जाना और उसके स्किन टिशू लड़की के नखुनों में पाए जाना शामिल है। इसके अलावा लड़की के खून के धब्बे अनोखीलाल के अंडरवियर पर पाए गए थे। लेकिन 19 मार्च 2024 को एक समीक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पेशल कोर्ट की जज प्राची पटेल ने डीएनए रिपोर्ट में कई खामियां पाई, जिसके चलते अनोखीलाल को बरी कर दिया। उन्होंने कहा कि सैंपल को इकट्ठा करने, सील करने और रिपोर्ट में भी कई गड़बड़ी थी। इन्हीं गड़बड़ियों का हवाला देकर अनोखीलाल को रिहा कर दिया गया। 
कोर्ट ने कहा, बच्ची की डीएनए रिपोर्ट से ये साफ है कि वीर्य किसी और शख्स के थे। और जहां तक बच्ची के नाखुनों में अनोखीलाल के शरीर के टिशू और बच्ची के खून के धब्बे उसके अंडरवियर पर पाए जाने की बात है, तो इस मामले की पूरी जांच के बाद ही आरोपी को सजा दी जा सकती है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह भी गौर करने वाली बात है कि योनि और गुदा स्लाइड की डीएनए रिपोर्ट वैज्ञानिकों द्वारा मशीनों के आधार पर तैयार की गई है, जो पूरी तरह से पूर्ण साक्ष्य है। जबकि ह्यूमन एविडंस को प्रभावित करना संभव है। इसलिए, मामले में सभी सबूतों के विपरीत, आरोपी डीएनए रिपोर्ट का लाभ पाने का हकदार है, जिसमें ये साबित होता है कि आरोपी के अलावा रेप मामले में कोई और शख्स भी शामिल है। कोर्ट ने ये भी कहा कि केवल इस आधार पर कि आरोपी की त्वचा मृतक के नाखूनों में पाई गई और मृतक का खून आरोपी के अंडरवियर पर पाया गया, आरोपी को अपराधी साबित नहीं किया जा सकता।''  कोर्ट ने पुलिस की उस जांच को भी खारिज कर दिया कि जिसमें आरोपी के साथ लड़की को आखिरी बार देखा जाना अहम सबूत बताया गया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी को आखिरी बार पीड़िता के साथ देखा गया था, लेकिन जहां तक उसके भागने का सवाल है तो जांच कर्ताओं ने ही ये जानकारी दी थी कि आरोपी पहले वहीं काम करता था और 8-10 दिन पहले नौकरी छोड़ चुका था। ऐसे में ये साबित नहीं होता कि आरोपी फरार था। हो सकता है कि आोरपी नेकनीयत से सिर्फ अपना पैसा लेने आया हो और पैसा लेकर चला गया हो। 
क्या था मामला? 
31 जनवरी 2013 को एक आदिवासी व्यक्ति ने 9 साल की बच्ची गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई। 1 फरवरी 2013 को बच्ची का शव उसी गांव के निवासी रघुनाथ गुर्जर के खेत में मिला। जब पुलिस ने शव बरामद किया तो उसके पिता ने उसकी पहचान की। पोस्टमॉर्टम में अप्राकृतिक सेक्स, दुष्कर्म और गला दबाकर हत्या की बात सामने आई। पुलिस ने अनोखीलाल को आदतन अपराधी बताकर 2010 में नाबालिग से अप्राकृतिक सेक्स और चोरी सहित उसके पिछले मामलों को भी आरोपपत्र में शामिल कर लिया था। इस मामले में धारा 377 के तहत खंडवा के सत्र न्यायाधीश ने अनोखीलाल को 6 महीने और 1,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। आधी सज़ा काटने के बाद सरकार के आदेश पर उसे रिहा कर दिया गया। इसके अलावा 2008 में चोरी का एक मामला उनके खिलाफ हरदा के छीपाबड़ थाने में मामला दर्ज किया गया था। इन सबूतों के आधार पर अदालत ने आरोपी को दोषी पाया और उसे 20 साल की कैद, मौत की सजा और 8,000 रुपये के जुर्माने से दंडित किया। मामले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और 27 जून, 2023 को हाई कोर्ट ने मृत्युदंड को बरकरार रखा। 2019 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और शीर्ष अदालत ने मामले पर दोबारा विचार करने को कहा। विशेष अदालत ने अगस्त 2022 में फिर से मौत की सजा सुनाई। खामियों को उजागर करते हुए, फैसले को सितंबर 2023 में मप्र हाई कोर्ट के समक्ष फिर से चुनौती दी गई। अदालत ने बचाव पक्ष को अपना पक्ष रखने का मौका देने और खंडवा विशेष अदालत को मामले की फिर से सुनवाई करने को कहा था। कोर्ट ने 19 मार्च को आरोपी को बरी कर दिया।

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