गाजियाबाद: अधिवक्ता की गोली मारकर हत्या
अश्वनी उपाध्याय
गाजियाबाद। अधिवक्ता की हत्या के मामले में अधिवक्ताओं ने किया अपना दर्द बयां। उन्होंने कहा कि न्यायालय व तहसील कार्यालय,सरकारी कार्यालय जो जिला प्रशासन के सबसे सुरक्षित जगह कहीं जाती है। पुलिस प्रशासन की कुशासन लापरवाही के खुलेआम शिकार होकर अपनी जान गवा रहे हैं। सम्मानित अधिवक्ताओं की सरेआम हत्याएं हो रही है। खुलेआम जान लेवा हमले हो रहे हैं। पुलिस प्रशासन का रुक भी सम्मानित अधिवक्ता परिवारों के प्रति सहयोगात्मक नहीं रहता है।
गाजियाबाद तहसील चेंबर नंबर 95 में मोनू चौधरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। यह घटना सहानी के क्षेत्र में की गई है। मोनू चौधरी तहसील में चुनाव भी लड़ चुके थे। उनके पिताजी भी उत्तर प्रदेश पुलिस में सेवा दे चुके है। अज्ञात लोगों द्वारा गोली मारी गई है।
जबकि सम्मानित अधिवक्ता अवैतनिक रूप से सरकार को पूरे देश में अरबो रुपए का स्टांप ड्यूटी रजिस्ट्रेशन शुल्क न्याय शुल्क के रूप में सरकार/न्याय प्रशासन को दिलाते है। सरकार से बदले में सम्मानित अधिवक्ताओं को क्या मिलता है। शासन प्रशासन के अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी, जवाबदेही और उत्तरदायित्व सम्मानित अधिवक्ताओं के प्रति नहीं दिखाई देती?
कौन है इन हत्याओं और जान लेवा हमलों का जिम्मेदार?
जिला प्रशासन के संबंधित पुलिस अधिकारियों पर सम्मानित अधिवक्ता पर तहसील में या न्यायालय में कार्य करते हुए जानलेवा हमला होने की साजिश में शामिल होने के लिए, जिम्मेदार ,जवाब देह ठहराते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट में नाम जद किया जाना चाहिए। आखिर यह तनखा किस बात की लेते हैं। सरकार की जिम्मेदारी है देश के हर नागरिक और सरकार के लिए बेहतर न्याय और राजस्व कलेक्शन करने के लिए निशुल्क अवैतनिक कार्य करने वाले कोर्ट ऑफिसर की सुरक्षा की,
सुरक्षा में लापरवाहीऔर गैरजिम्मेदारी आपराधिक साजिश के तौर पर संबंधित पुलिस प्रशासन के अधिकारियों के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें जेल भेज कर की जाए। यह हम अधिवक्ताओं की मांग है।
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