रविवार, 23 जुलाई 2023

हम सब राह़ी   'वृतांत' 

हम सब राह़ी   'वृतांत' 


थम के रह जाती है ज़िन्दगी जब,

जमकर कर बरसती है, पुरानी यादें।


जीवन का अनमोल लम्हा धीरे धीरे उम्र के लक्षित पड़ाव की तरफ सरकता जा रहा है। हर पल कभी ग़म कभी खुशी का कारवां गुजरता जा रहा है। इस माया के महाजाल के भीतर खुद को सम्हाल कर रहने वाले भी नहीं बच सके। उनको भी भ्रमवस वही करना पड़ता है जो वो नहीं करना चाहते हैं। ज़िन्दगी का सफर तन्हाई से शुरू होकर तन्हाई में ही खत्म होता है, इन रश्मों रिवाजों को हर कोई जानता है। फिर भी स्वार्थ के मेलें अपनों के झमेले लिए आखरी सफर का खेला समझे बिना निरन्तर चलता है।

जब तक जीवन के सफर में मध्यान्ह नहीं हो जाता ह। शनै: शनै:आखरी मंजिल की तरफ सरकती जिन्दगी तमाम झंझावातों का सामना करते, ग़म की स्याह चादर में खुशियों को तलाशती रहती है। अपने पराए के भेद में सब कुछ गंवा कर आदमी जब सफर के आखरी मुकाम पर पहुंचाता है, हर तरफ केवल वीरान ही नजर आता है। मतलब परस्तो की भीड़ में तन्हा अपने कर्मों का फल भोगता, पश्चाताप की अग्नि में झुलसता, विवसता के शानिध्य में अश्कों की बारिश में भीगता रहता है।

अवतरण दिवस से लेकर परिपक्वता की अवधि तक गुज़रा हर लम्हा, कसक पैदा करते चल चित्र की तरह सामने से गुजर जाता है। विधाता ने गजब का खेल किया है, हर आदमी को सहन करने का हौसला दिया है! वर्ना गमों की आंधियों में भी लोग सलामत कैसे रह जाते?  जिनकी गोंद में पल-बढकर हसीन दुनियां देखीं, उनको अपने ही हाथों आग की लपटों में जलते देखना, उफ़! न जाने कहां से मिल जाती है रुहानी ताक़त ? आफत का मौसम जीवन में कई बार बदलता है। आदमी बार-बार गिरता बार-बार सम्हलता है। मतलबी जीन्स को लादे वक्त की सफ़ीना जब ज़िन्दगी के साहिल पर लंगर डालती है। उसी समय से दुर्भाग्य की आंधियों में उठते कर्म की लहरें, बगैर ठहरे उम्र के समन्दर में तबाही मचाने को बेताब हो जाती है। जिनकी तकदीर से लंगर टूट गये, वो अश्कों की लहरों में डूब गये। यूं तो प्रारब्ध के हिसाब से ही जीवन की किताब को उपर वाला लिखता है। उसी किताब का लिखा शफा-शफा हर्फ किसी को महान किसी को कमजर्फ बना देता है। तन्हाई का सफर हर किसी के जीवन की सच्चाई है, चाहे जितना धन अर्जित कर लो, चाहे जितनी दौलत के मालिक बन जाओ, मौत के दिन सब बेकार हो जाता है।

बस बगल में खड़ी मौत मुस्कराती है। जीवन भर के कर्मों का खेल दिखाती हैं। आंखों से बहती अश्रु धारा, जुबां खामोश।लब थर-थरा के रह जाते है। मगर कुछ भी न सुनने की ताकत रह जाती, न कहने की हिम्मत।  वाह रे किस्मत! आखिर जब कुछ साथ नहीं जाना तो फिर जीवन के अनमोल लम्हों को व्यर्थ

गंवा कर बस तन्हाई में बजती वहीं शहनाई स्वागत के लिए सामने होती है जो हर जन्म में  वही राग सुनाती है। ए जिन्दगी के मेले, ए जिन्दगी के मेले, सबकुछ यही रहेगा तुझे जाना है अकेले, तुझे जाना है अकेले। 

आखिर कुछ साथ नहीं जाना है तो फिर किस बात का अभिमान है?  किस काम की दौलत किस काम की शोहरत ? जब सभी का आखरी स्वागत समदर्शी व्यवस्था में महाकाल अविनाशी का दरबार करता है। जमाने को ठोकरों पर रखने वालो का आखरी सफर भी दो गज कफ़न के साथ ही होता है। इन्सानियत के राह पर चलकर सद्गति के लिए जगत कल्याण की भावना को परिष्कृत कर परमार्थ  में जीवन समर्पित कीजिए। यह कोई उपदेश नहीं है, बस छोटा सा सच है।

जगदीश सिंह

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