एक-एक बूंद पानी 'संपादकीय'
जिसके पांव न फटी बिवाई,
वो क्या जाने पीर पराई ?
प्रचंड प्रत्यंचा पर आरुढ भीषण गर्मी का प्रहार जन-जन को आहत करने का कार्य कर रहा है। अत्याधुनिक समाज में समर्थवान और सुविधा भोगी वर्ग को दरकिनार कर दिया जाए तो देश की 52 प्रतिशत आबादी इस भीषण गर्मी का तरह-तरह से दंश झेल रही है और विभिन्न तरह की पीड़ा सहती है। "यह विधाता ने जनता के भाग्य में नहीं लिखा है।" यह राज्यों और राष्ट्र में सत्तारूढ़ प्रजापतियों की देन है। जो केवल और केवल किसी भी क्रिया अनुरूप अधिपत्य प्राप्त करना चाहते हैं। राज धर्म से विमुख कोई भी राजनेता जन संरक्षक कैसे हो सकता है?
वर्तमान समय में संपूर्ण देश पेयजल की विकट समस्या से जूझ रहा है। 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार देश में 14 वर्ष से कम आयु के 1000 बालक प्रत्येक घंटे में अतिसार का शिकार हो जाते हैं। अशुद्ध पेयजल से होने वाली यह बीमारी देश में प्रति घंटा 1000 बच्चों को निगल जाती है। भाजपा सरकार में कई विधायक और सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने पेयजल को कभी गंभीरता से नहीं लिया। उत्तर प्रदेश की लोनी विधानसभा से विधायक ने तो 1 प्याऊ तक नहीं लगवाई। हालांकि ऐसे खोखले जनप्रतिनिधित्व को जनता एक सिरे से खारिज कर देती है। किंतु परिणाम स्वरूप भोली-भाली जनता को कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है? जो व्यक्ति अनुभव कर सकता है, वही 'एक-एक बूंद पानी' का मूल्य समझ सकता है।
2014 से मोदी नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 'स्वच्छ भारत अभियान' का आगाज किया था। जिसमें भारत को 2019 तक स्वच्छ पेयजल प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था। परंतु राजनीतिक चिंताओं में सभी विदूषक इसमें असफल सिद्ध हुए। पेयजल की वस्तुतः परिभाषा को देश की आधे से अधिक आबादी समझती ही नहीं है। इसी कारण किसी राजनेता ने इसे चुनौतीपूर्ण विषय ही नहीं समझा। संपूर्ण भारत के 196 लाख घरों में उपयोग होने वाले पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक जैसे खतरनाक रसायन मौजूद है। जो मानव जीवन को पीड़ा कारक बनाने के लिए काफी है। देश के 718 जनपदों में दो तिहाई हिस्सों में पेयजल की अत्यधिक कमी है।
रिपोर्ट के मुताबिक देश में 3 करोड़ भूजल आपूर्ति केंद्रों (बोरिंग) से ग्रामीण क्षेत्रों में 85 प्रतिशत एवं नगरीय क्षेत्रों में 48 प्रतिशत पेयजल आपूर्ति की जा रही है। कुल आबादी में 30 प्रतिशत आबादी पेयजल संकट से जूझ रही है। इस विषय पर राज्य स्तरीय एवं राष्ट्र स्तरीय कमेटियों का गठन किया जाता रहा है। परंतु इस विकराल समस्या के स्थाई समाधान की कोई योजना धरातल पर उपस्थित नहीं है। देश की जनता की आवश्यकता और अपेक्षा अनुरूप कोई कार्य नहीं किया गया है। जनता को मीठे स्वप्न दिखाने के बजाय कटु सत्य से अवगत कराना चाहिए। संभवत नागरिक स्वयं समस्या का समाधान करने का प्रयास करेगा।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'
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