गौ माता की पुकार 'कविता'
मेरे ग्वाले आ भी जा अब,
देख क्या हो गई मेरी दशा ?
कुछ कंस मानुषों ने मेरी,
कर रखी बड़ी दुर्दशा।
दुग्ध दूह कर छोड़ देते,
ये मुझे राह पर।
असहाय और लाचार,
मैं भटक रही बाजार पर।
बहुत अपमान कान्हा मुझे,
इस सृष्टि पर मिल रहा।
किसको सुनाऊँ अपनी व्यथा ?
है कौन मेरा तेरे सिवा ?
मेरे नाम का नारा लगा कर,
ढोंग रचते हैं सभी।
जरा देख अपनी दृष्टि से,
सड़क पर हूँ मैं पड़ी।
माँ का हृदय है मेरा,
नहीं दे सकती हूँ मैं बददुआ।
नहीं कह पा रही व्यथा,
बहुत हो गई दुर्दशा।
सुन मेरे ग्वाले,
तूही देना अब इन्हें सजा।
विनीता भट्ट
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