नए भवन के उद्घाटन के लिए दलों को आमंत्रित किया
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कहा कि 28 मई को संसद के नए भवन के उद्घाटन के लिए सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया गया है और वे “अपने विवेक के अनुसार फैसला करेंगे”। उनका यह बयान ऐसे समय आया है, जब 19 विपक्षी दल इस कार्यक्रम के बहिष्कार की घोषणा कर चुके हैं। एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित करने के प्रतीक स्वरूप प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को दिए गए ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री द्वारा 28 मई को निर्धारित उद्घाटन कार्यक्रम को लेकर विपक्षी दलों के बहिष्कार के फैसले के बारे में पूछे जाने पर शाह ने कहा, ‘‘भारत सरकार ने सभी को उद्घाटन के अवसर पर उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किया है। सभी अपने विवेक के अनुसार कार्य करेंगे।’’ इस मौके पर शाह के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर और संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी भी मौजूद थे।
कुछ विपक्षी दलों ने समारोह के बहिष्कार की घोषणा की क्योंकि उनका कहना था कि यह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा, ‘‘सेंगोल को राजनीति से नहीं जोड़ा जा सकता।’’ ‘सेंगोल’ यह संदेश देता है कि सरकार को न्याय और निष्पक्षता से चलना चाहिए और वह नियम आधारित होना चाहिए। जब यह नए संसद भवन में स्थापित होगा, तो यह संदेश लोगों और जनप्रतिनिधियों तक जाएगा। उन्होंने कहा, “यही असली उद्देश्य है। इसे राजनीति से न जोड़ें। यह पुरानी परंपरा है जो नए भारत से जुड़ने जा रही है। राजनीति की अपनी जगह है। हर कोई अपने विवेक से काम करता है।” गृह मंत्री ने कहा कि नया संसद भवन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता का उदाहरण है। लोकसभा में अध्यक्ष के आसन के पास ‘सेंगोल’ को प्रमुखता से लगाया जाएगा।
उन्होंने बताया कि उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री संसद भवन के निर्माण में योगदान देने वाले 60,000 श्रमिकों (श्रम योगियों) को सम्मानित भी करेंगे। गृह मंत्री ने कहा कि नया संसद भवन देश की विरासत और परंपराओं के साथ आधुनिकता को जोड़ने वाला नया भारत बनाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण का प्रमाण है। शाह ने कहा कि ‘सेंगोल’ स्थापित करने का उद्देश्य तब भी स्पष्ट था और अब भी है। उन्होंने कहा कि सत्ता का हस्तांतरण महज हाथ मिलाना या किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना नहीं है और इसे आधुनिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय परंपराओं से जुड़ा रहना चाहिए। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर ‘सेंगोल’ प्राप्त किया था।
‘सेंगोल’ का इस्तेमाल 14 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों से भारतीय हाथों में सत्ता हस्तांतरित करने के लिए किया गया था और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद और कई अन्य लोगों की उपस्थिति में स्वीकार किया था। राजेंद्र प्रसाद बाद में देश के पहले राष्ट्रपति बने थे। ‘सेंगोल’ शब्द तमिल शब्द “सेम्मई” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “नीतिपरायणता”।
‘न्याय’ के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल दृष्टि के साथ देखते हुए हाथ से उत्कीर्ण नंदी ‘सेंगोल’ के शीर्ष पर विराजमान हैं। ‘सेंगोल’ को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का ‘आदेश’ (तमिल में‘आणई’) होता है। उन्होंने कहा, ‘‘सेंगोल आज भी उसी भावना का प्रतिनिधित्व करता है, जो जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 में महसूस की थी।’’
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