जनजातीय समुदायों के लोग बन रहें है अधिकारी
इकबाल अंसारी
गांधीनगर/बनासकांठा। गुजरात की कांग्रेस विधायक गेनीबेन ठाकोर ने दावा किया है कि वर्षों पहले अपना धर्म बदलकर ईसाई बनने वाले जनजातीय समुदायों के कई लोग अब भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी बन रहे हैं।
ठाकोर ने शनिवार को बनासकांठा जिले के भाभर गांव में वाल्मीकि समुदाय के जोड़ों के एक सामूहिक विवाह समारोह में ‘‘हिंदू धर्म को बचाने के लिए काम कर रहे धर्म गुरुओं से क्रांतिकारी कदम उठाने की’’ अपील की, ताकि हिंदुओं को धर्मांतरण करने से रोका जा सके। बहरहाल, इस समारोह के दौरान ठाकोर के साथ मंच पर मौजूद गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता शंकर चौधरी ने कहा कि आईएएस, आईपीएस अधिकारी बनने का लालच दिए जाने पर ईसाई धर्म अपनाने वाले जनजातीय लोगों को बाद में एहसास हो गया कि यह वादा झूठा है।
वाव विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक चुनी गईं ठाकोर ने समारोह में दावा किया, ‘‘जनजातीय क्षेत्रों के लोगों ने कई साल पहले ईसाई धर्म को अपना लिया था और आज वे आईएएस, आईपीएस, मामलातदार (राजस्व अधिकारी) और डीडीओ (जिला विकास अधिकारी) बन गए हैं। गुजरात में सरकारी नौकरी कर रहे अधिकतर लोग वे हैं, जो धर्म बदलकर ईसाई बने थे।’’
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति समुदाय भी बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हो रहा है। ठाकोर ने कहा, ‘‘हिंदू धर्म को बचाने के लिए काम कर रहे धर्म गुरुओं और नेताओं से मेरा कहना है कि यदि हमने इन समुदायों के लिए क्रांतिकारी कदम नहीं उठाया, तो आने वाले समय में वे अन्य धर्मों को अपना लेंगे।’’ उन्होंने कहा कि यदि जनजातीय एवं दलित समुदायों के लोगों को सुरक्षा और सम्मान दिया जाए, तो वे धर्मांतरण के बारे में नहीं सोचेंगे।
बहरहाल, चौधरी ने कहा कि कुछ लोगों को यह लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने के लिए राजी किया गया था कि उनके बच्चे आईएएस अधिकारी बनेंगे, ‘‘लेकिन धर्मांतरण करने वाले लोगों को पता चला कि उनके बेटे आईएएस, आईपीएस अधिकारी नहीं बने।’’ राज्य की भाजपा सरकार ने जून 2021 में गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम पारित किया था, जो विवाह के माध्यम से जबरन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन कराए जाने पर दंडित करता है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने कुछ महीने बाद संशोधित अधिनियम की कुछ धाराओं पर रोक लगा दी। इसके बाद राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।
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