मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

लोनी: पहली बार भाजपा प्रत्याशी को मिलेगी शिकस्त

लोनी: पहली बार भाजपा प्रत्याशी को मिलेगी शिकस्त

दीपक राणा

गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी नगर पालिका परिषद लोनी में लगातार तीन योजनाओं से भाजपा प्रत्याशी को प्रचंड जीत हासिल हुई है। लेकिन इस बार पहली बार चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त मिलेगी।

माना जाता रहा है कि लोनी भाजपा की रिजर्व सीट है। कुछ हद तक इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता है और ना एक सिरे से खारिज ही किया जा सकता है। यह मिथक है या हकीकत ? इसका फैसला भी जल्द आप खुद ही करने वाले हैं। आप सभी जानते हैं कि भाजपा का कैडर वोट बैंक और दलित वर्ग मिलकर लगातार तीन योजनाएं विजय का मार्ग प्रशस्त करने में सफल होते रहे हैं। किंतु पार्टी के द्वारा चयनित प्रत्याशी का राजनीतिक इतिहास और खुद की छवि का महत्व भी कम अहमियत नहीं रखते है।

परंतु इस बार टिकट की प्रबल दावेदारी करने वाले लोग स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। प्रत्यक्ष रूप से विरोध प्रकट करने का सामर्थ्य ना जुटा पाने के कारण अप्रत्यक्ष रूप से असंतुष्ट भाव उनके चेहरों पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। स्पष्ट तौर पर विरोध की संभावना तो नहीं बन पा रही है। किंतु हताश मन को इतनी सरलता से काबू करना भी कोई आसान काम नहीं है। राजनीति में अक्सर ऐसा होता है कि दर्द तो बहुत तेज होता है। लेकिन कहने की इजाजत नहीं होती है।

नगर पालिका परिषद लोनी से भाजपा पार्टी ने अध्यक्ष पद पर श्रीमती पुष्पा देवी को प्रत्याशी बनाया है। लेकिन पुष्पा देवी को लोनी क्षेत्र की सक्रिय राजनीति से सीधा जुड़ा नहीं पाते हैं। नगरीय क्षेत्र की राजनीति में उन्हें किसी प्रकार का कोई वर्चस्व हासिल नहीं है और ना ही उन्हें कोई राजनीतिक चेहरा भी मानता है। नगरीय क्षेत्र की ज्यादातर आबादी उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि से अनजान है। माना कि भाजपा प्रत्याशी होना ही उनकी विशेषता है। वहीं, कर्मठ पदाधिकारी और अव्वल दर्जे के दावेदार इस प्रत्याशी को हजम भी नहीं कर पा रहे हैं। जिसका खामियाजा चुनाव परिणाम में भाजपा प्रत्याशी को भुगतना होगा।

दूसरी तरफ राष्ट्रीय लोक दल प्रत्याशी श्रीमती रंजीता धामा अभी तक सबसे मजबूत दावेदार के रूप में सबसे आगे खड़ी है। दूसरी तरफ बसपा का जनाधार और प्रत्याशी श्रीमती मेहरीन अली यदि दलित वोटों के ध्रुवीकरण को रोक पाने में समर्थ हो जाती है तो आमने सामने की कड़ी टक्कर में सीधे प्रवेश कर जाएगी। क्योंकि मुस्लिम वर्ग का एक धड़ा रालोद प्रत्याशी के समर्थन में खड़ा है तो एक धड़ा सपा के समर्थन में खड़ा है। जो सपा प्रत्याशी की खामोशी के बाद विकल्प तलाशने के लिए मजबूर हो गया है। सपा का कैडर वोट यदि गठबंधन की नीति के अनुरूप अनुसरण करता है तो रालोद प्रत्याशी सीधे विजय लक्ष्य को हासिल करने में सफल होगी।

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो सपा प्रत्याशी का किरदार संदिग्ध बना हुआ है, जैसे ही सपा प्रत्याशी का रुख साफ हुआ, वैसे ही चुनावी निष्कर्ष तक पहुंच पाना  सरल हो गया है। मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के लिए लाभकारी सिद्ध होता रहा है। मगर प्रत्याशियों के व्यक्तिगत संबंध और छवि राजनीतिक वर्चस्व को ध्यान में रखते हुए, मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हो पाएगा। पहली बार भाजपा पार्टी वोट काटने वाली पार्टी, के रूप में देखी जाएगी।

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