सोमवार, 24 अप्रैल 2023

67 आरोपियों को बरी करने का फैसला, चुनौती 

67 आरोपियों को बरी करने का फैसला, चुनौती 

इकबाल अंसारी 

अहमदाबाद। उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच टीम (एसआईटी) 2002 के नरोदा गाम दंगा मामले में हाल में सभी 67 आरोपियों को एक विशेष अदालत द्वारा बरी किए जाने के फैसले को गुजरात उच्च न्यायालय में चुनौती देगी। सूत्रों ने यह जानकारी दी। एसआईटी के मामलों पर सुनवाई से संबंधित विशेष न्यायाधीश एस.के. बक्शी की अहमदाबाद स्थित अदालत ने गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी सहित 67 आरोपियों को 20 अप्रैल को बरी कर दिया था। 

गोधरा कांड के बाद अहमदाबाद के नरोदा गाम इलाके में हुए दंगों के दौरान 11 लोगों की हत्या किये जाने के दो दशक बाद अदालत का यह फैसला आया था। विशेष जांच टीम के एक सूत्र ने कहा, ‘‘एसआईटी नरोदा गाम मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय में निश्चित रूप से अपील दायर करेगी। एसआईटी को अदालत के फैसले की प्रति मिलने का इंतजार है और फैसले का अध्ययन करने के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।’’ 

नरोदा गाम में हुआ नरसंहार, 2002 के नौ बड़े साम्प्रदायिक दंगों के मामलों में शामिल है, जिनकी विशेष अदालतों द्वारा सुनवाई की गई है। एसआईटी ने 2008 में गुजरात पुलिस से जांच अपने हाथों में ले ली थी और मामले में 30 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया था। मामले में कुल 86 आरोपी थे, जिनमें से 18 की मौत सुनवाई के दौरान हो गई, जबकि एक को अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 169 के तहत साक्ष्य के आभाव में आरोपमुक्त कर दिया था। 

उल्लेखनीय है कि पीड़ित परिवारों के वकीलों ने कहा था कि वे विशेष अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। गोधरा स्टेशन के पास भीड़ द्वारा साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग लगाए जाने के एक दिन बाद आहूत बंद के दौरान 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोदा गाम इलाके में दंगे भड़क गए थे। गोधरा घटना में कम से कम 58 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें ज्यादातर लोग अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे। 

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह सितंबर 2017 में कोडनानी के लिए बचाव पक्ष के गवाह के तौर पर निचली अदालत में पेश हुए थे। कोडनानी ने अदालत से अनुरोध किया था कि शाह को यह साबित करने के लिए बुलाया जाए कि वह गुजरात विधानसभा में और बाद में अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल में मौजूद थीं, न कि नरोदा गाम में, जहां नरसंहार हुआ था। वर्ष 2010 में सुनवाई शुरू होने के बाद से छह अलग-अलग न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की। 

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