उत्तराधिकारी की नियुक्ति में अडंगा लगाने की तैयारी
अखिलेश पांडेय/इकबाल अंसारी
ल्हासा/कोलकाता। तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति पेन्पा त्सेरिंग ने दावा किया कि चीन पिछले 15 साल से दलाई लामा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति में अडंगा लगाने की तैयारी कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस आशंका के मद्देनजर अंतत: उनका प्रशासन लोकतांत्रिक तरीके से उत्तराधिकारी का चयन चाहता है। त्सेरिंग ने एक न्यूज एजेंसी को दिए साक्षात्कार में रेखांकित किया कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा वर्ष 1995 में प्रतिद्वंद्वी पंचेन लामा की नियुक्ति जैसी पुनरावृत्ति हो सकती है जब दलाई लामा की ओर से चुने गए लड़के को जनता की नजरों से ओझल कर दिया गया था।
उन्होंने मंगलवार को कहा, मौजूदा दलाई लामा के न रहने के बाद क्या होगा यह तिब्बितयों के लिए चुनौती है, खासतौर पर यदि चीन-तिब्बत समस्या का समाधान नहीं हुआ तो। राष्ट्रपति (सिकयोंग) त्सेरिंग ने कहा, हमारा मानना है कि निश्चित तौर पर चीन दलाई लामा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति में हस्तक्षेप करेगा...वे इसकी गत 15 साल से तैयारी कर रहे हैं। त्सेरिंग सिकयोंग की उपाधि भी धारण करते हैं। उन्होंने कहा कि चीन की सरकार ने वर्ष 2007 में एक आदेश जारी किया था। जिसमें सभी अवतारित लामाओं के उत्तराधिकारी की नियुक्ति प्रक्रिया में उसकी मौजूदगी की जरूरत बताई गई थी। त्सेरिंग ने कहा, यह किया गया, जिसका उद्देश्य धर्म को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना था...हालांकि न तो चीन की और न ही किसी अन्य सरकार की कोई भूमिका होनी चाहिए।
तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति ने कहा, उन्होंने (चीनियों ने) वर्ष 1995 में तब हस्तक्षेप किया जब एक लड़के (ज्ञानचेन नोरबू) को पंचेन लामा के तौर पर चुना गया। महामाहिम (दलाई लामा) द्वारा चुने गए पंचेन लामा (गेधुन छोयी न्यिमा) को गायब कर दिया गया और हमें अब तक पता नहीं कि वह जिंदा भी है या नहीं। न्यिमा को 17 मई 1995 के बाद से स्वतंत्र पर्यवेक्षकों द्वारा देखा नहीं गया है।
चीन की सरकार का दावा है कि वह सामान्य जीवन जी रहा है जबकि तिब्बती निर्वासित और मानवाधिकार समूहों का मानना है कि उसे चीन द्वारा चित्त परिवर्तन के लिए श्रम शिविर में कैदी के तौर पर रखा गया है। तिब्बती बौद्धों का मानना है कि सर्वोच्च लामा या जीवित बुद्ध की आत्मा उनके निधन के बाद बच्चे के रूप में फिर से पैदा होगी और उसका विभिन्न संकेतों द्वार पता लगाया जा सकता है।
अफसोस व्यक्त करते हुए त्सेरिंग ने कहा, कम्युनिस्ट चीन धर्म को नहीं मानता, इसके बावजूद वह पूरी तरह से धार्मिक कार्यक्रम में हस्तक्षेप करना चाहता है। उन्होंने कहा कि दलाई लामा ने कहा था कि अगर चीनी सरकार की रुचि पुन: अवतार में इतनी ही है तो उसे तिब्बी बौद्ध धर्म को पढ़ना चाहिए। त्सेरिंग ने कहा कि 14वें दलाई लामा के देहांत के बाद दुनिया और तिब्बियों के आगे बढ़ने के लिए छह बिंदुओं की योजना तैयार की गई है और इस योजना के केंद्र में लोकतांत्रिक हस्तांतरण है। गौरतलब है कि वर्ष 2011 के बाद भी तिब्बत का धार्मिक नेतृत्व दलाई लामा के पास ही बना रहा लेकिन राजनीतिक नेतृत्व प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित निर्वासित तिब्बती सरकार के राष्ट्रपति या सिकयोंग को हस्तांरित कर दिया गया।
वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया और वर्ष 1959 में इसके खिलाफ आंदोलन हुआ जिसका चीन ने क्रूरता से दमन किया। इस घटना के बाद दलाई लामा अपने कई समर्थकों के साथ भारत भाग आए और उसके बाद उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित संसद की स्थापना की।
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