देश की शांति भंग करने पर छोड़ता नहीं है 'भारत'
अकांशु उपाध्याय/इकबाल अंसारी
नई दिल्ली/बेंगलुरु। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को कहा कि भारत किसी को छेड़ता नहीं है और यदि कोई देश की शांति भंग करता है तो उसे छोड़ता नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत ने कभी युद्ध तथा हिंसा की वकालत नहीं की, हालांकि, वह अन्याय और दमन पर तटस्थ नहीं रह सकता। वह इस्कॉन द्वारा बेंगलुरु के वसंतपुरा स्थित उसके भव्य राजाधिराज गोविंद मंदिर में आयोजित गीता दान योजना कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
राजनाथ सिंह ने महाभारत का उल्लेख करते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिये थे, उन्हें श्रीमद भगवद्गीता के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा कि गीता पढ़ने और उसे आत्मसात करने से व्यक्ति निर्भय होता है। इस्कॉन बेंगलुरु ने इस महीने सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों के अलावा एक लाख भगवद्गीता पुस्तक वितरित करने की योजना बनाई है। इस अवसर पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा तथा इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ आदि गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
राजनाथ सिंह ने कहा कि 30 दिनों तक चलने वाले इस यज्ञ के दौरान, 1 लाख भगवदगीता बांटने की योजना बनाई गई है। ज्ञान के दान से बड़ा क्या हो सकता हैं। ज्ञान ही तो ऐसा धन है जो बांटने से बढ़ता है। इस्कॉन बैंगलोर का यह प्रयास गीता के Immortal Wisdom को लोगों तक पहुंचाएगा, इसका मुझे पूरा विश्वास हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि गीता दान यज्ञ महोत्सव के माध्यम से भगवान कृष्ण के शाश्वत संदेश को जन-जन तक पहुचाने और उसे लोगों को समझाने और अपने जीवन मे उतारने के लिए जो प्रयत्न इस्कॉन बैंगलोर निरंतर कर रहा हैं उसकी जितनी भी सराहना की जाए उतना कम हैं। मैं हमेशा कहता हूँ भारत कभी किसी को छेड़ता नहीं पर जब भारत को कोई छेड़ता है तो हम उसे छोड़ते भी नहीं हैं। यही श्रीमद्भगवद्गीता का भी संदेश है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि दुनिया को यह भी समझना होगा कि अगर युद्ध और हिंसा हमारी प्रवृत्ति नहीं तो अन्याय सहना और अधर्म के प्रति तटस्थ रहना भी हमारे चरित्र का हिस्सा नहीं रहा हैं। गीता का ज्ञान भारत के समाज का आधार हैं। हम सब इस बात को मानते हैं कि भारत एक ऐसा देश हैं जो हमेशा से शान्तिप्रिय रहा हैं। हिंसा, युद्ध यह कभी भी हमारी प्रवृत्ति नहीं रही हैं। इसलिए भारत ने कभी किसी दूसरे देश पर न हमला किया ना कभी किसी की एक इंच ज़मीन पर कब्जा किया।
राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं मानता हूं कि हमारी भौतिक आकांक्षाएं एक अटूट बंधन पैदा करती हैं और इन बंधनों को तोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। हमें अपनी इच्छाओं, बुनियादी जरूरतों और Spiritual Calling के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। आप सबके साथ गीता का वह सन्देश बांटना चाहता हूँ जो मैंने अपनी जीवन यात्रा में एक सीख की तरह हमेशा अपने पास रखा: जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही होता है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि पश्चिमी देशों में Self-Help Books का काफी प्रचलन हैं। यह वह किताबे होती हैं जो पाठकों को उनकी व्यक्तिगत समस्याओं को हल खोजने में मदद करने की मंशा से लिखी जाती हैं। मैं मानता हूँ कि अगर हम गीता का अच्छी तरह से अध्ययन कर लें तो हमे किसी और Self-Help Book की आवश्यकता नहीं होगी।
राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं मानता हूं कि गीता को सिर्फ एक धार्मिक ग्रन्थ की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। इसमें निहित ज्ञान हम सब के लिए, और खासकर युवा वर्ग के लिए एक Inspiration है। गीता के बहुमूल्य उपदेशों को अपनाकर हम जीवन में सही विकल्प चुनने में हमेशा सफल हो सकते हैं। राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत हमेशा से ज्ञान का केंद्र रहा हैं। और हमारे इस ज्ञान के अस्तित्व को न केवल दूसरे देशो ने स्वीकार किया हैं बल्कि अपनाया भी हैं। भगवदगीता ने दुनिया के कई महान और प्रसिद्ध लोगों को न केवल प्रभावित किया है बल्कि उनके जीवन को भी पूरी तरह से बदल दिया। सभी भौतिक सफलता के बावजूद लोग आध्यात्मिक कल्याण की तलाश में हैं और आधुनिकता के बावजूद हम अपने अस्तित्व के सवालों के जवाब खोजने के लिए आखिर में अपने धर्म का ही दरवाज़ा खटखटाते हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि धर्म और संस्कृति के प्रति हमारा लगाव कभी भी हमारे विकास मे अवरोध पैदा नहीं कर सकता हैं। मैं उस सोच को नकारता हूँ जो आधुनिकता और परंपरा के बीच एक अंतर्निहित संघर्ष देखता है। आपका कल था, इसी लिए आज हैं. अतीत था तभी वर्त्तमान हैं। अतीत को नकारना वर्त्तमान को नकारने जैसा हैं। जो मनुष्य जीवन-मृत्यु के भँवर से ऊपर उठ जाता है, वही अपने समाज, राष्ट्र के लिए निडर होकर कुछ कर सकता है। उसी के अंदर क्रांति जन्म ले सकती है और वही समाज को एक दिशा दे सकता है, समाज को बदलाव की ओर उन्मुख कर सकता है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि गीता हमें अंतर्मन की ओर देखने का ज्ञान देती है। आत्मा से जोड़ती है, जो परमात्मा का ही एक अंश है। जो शाश्वत है, और अनश्वर है। आत्मा को केंद्र में रखने वाला प्राणी सुख-दुख से ऊपर उठकर दुख से ऊपर उठकर आनंद की प्राप्ति करता है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि गीता हमें ऐसा सूत्र प्रदान करती है, जिसके सहारे हम अपनी आत्मा का दर्शन कर सकते हैं। आज इंसान को बाहरी दुनिया की बड़ी चिंता रहती है। दिल्ली में क्या हो रहा है, अमेरिका में क्या हो रहा है, लंदन में, फ्रांस में क्या घटित हो रहा है, उसे बड़ी चिंता रहती है: पर हमारे मन में क्या घटित हो रहा है, हम किस ओर जा रहे हैं, इसे देखने के लिए अपने अंतस में झाँकने की फुर्सत किसी को नहीं होती है। हम बाहरी दुनिया में इतने खोये होते हैं कि उसमें ही सुख ढूँढ़ते हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि हरि अनंत हरि कथा अनंता' की भांति गीता भी मैं समझता हूं अनंत है, और इसकी व्याख्या अनंत है। अब तक जिन ग्रंथों के सर्वाधिक भाष्य मिलते हैं, गीता उनमें से एक है। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी से लेकर पंडित नेहरू, महर्षि अरविंदो, लोकमान्य तिलक ने गीता को अपने-अपने ढंग से देखा है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं समझता हूं, अनादिकाल से चले आ रहे मानवीय भावों को उदात्त करने का एक माध्यम है। गीता शाश्वत है, नित्य है, सत्य है। इसलिए गीता का कोई एक दिवस न होकर हरेक दिवस होना चाहिए। आप Maths की history निकाल सकते हैं, और किसी को father of Mathematics घोषित कर सकते हैं। आप Physics, Chemistry, Biology की history निकाल सकते हैं। आप History की भी history निकाल सकते हैं, और किसी को father of History घोषित कर सकते हैं। पर आप मन की history नहीं निकाल सकते हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि हम सब तो आम इंसान हैं। अपनी बुद्धि के अनुसार गीता का एक दिवस मान लेते हैं, और प्रतिवर्ष उसकी जयंती मनाते हैं। पर वास्तव में तो गीता मनाने की नहीं, बल्कि मानने का आग्रह है। मानने की भी नहीं, बल्कि यह जीने का आग्रह है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि श्रीमदभगवतगीता की जयंती मनाना, इस बात का प्रतीक है, कि हम गीता को एक ग्रंथ भर नहीं मानते हैं। हम गीता को कुछ विचारों, और सूत्रों की अभिव्यक्ति भर नहीं मानते हैं। बल्कि गीता को हम, जीती-जागती ज्ञान गंगा मानते हैं, जो प्राचीन काल से मानव को अपने ज्ञानामृत से सींचती चली आई है। राजनाथ सिंह ने कहा कि संतों की क्षणभर की संगति को तो हमारे यहां बड़े पुण्यकर्म का प्रतिफल बताया गया है। आज मैं आप सभी संतों के बीच हूं, तो निश्चित ही यह मेरे पुण्यों का प्रभाव है, मेरे अच्छे कर्मों का प्रतिफल है, जिसके चलते मुझे आप लोगों का सत्संग प्राप्त हुआ है।