विरासत के संवर्धन व संरक्षण के लिए कदम उठाया
इकबाल अंसारी
गुवाहाटी। असम सरकार के एक आयोग ने राज्य में वैष्णव मठों की जमीन से अतिक्रमण हटाने और इन संस्थानों की सांस्कृतिक विरासत के संवर्धन तथा संरक्षण के लिए कदम उठाने पर जोर दिया है। वैष्णव मठों भूमि से संबंधित समस्याओं की समीक्षा और आकलन के लिए असम राज्य आयोग ने 11 जिलों में 303 मठों का दौरा करने और उनके द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को संकलित करने के बाद अपना अंतरिम निष्कर्ष मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा को सौंपा। मुख्यमंत्री ने कहा, सरकार अतिक्रमण हटाने के लिए हरसंभव कदम उठाएगी। यह पहली बार है कि इस दिशा में ठोस प्रयास किया जा रहा है।
हालांकि, सरकार अपने प्रशासनिक तंत्र के माध्यम से निष्कर्ष का सत्यापन भी करेगी क्योंकि राजस्व विभाग के प्रावधानों और नए कानूनों में वर्षों से बदलाव के कारण मठ भूमि के स्वामित्व में कानूनी रूप से बदलाव हो सकता है। अंतरिम रिपोर्ट के अनुसार, 33,265.7 बीघा (8,413.89 हेक्टेयर) जमीन मठों के पास है और इसमें से 7,504.2 बीघा (1,898.04 हेक्टेयर) जमीन पर अतिक्रमण हो गया है। बारपेटा जिले (5,545 बीघे) में सबसे अधिक अतिक्रमण की सूचना मिली है, इसके बाद लखीमपुर, नागांव, बोंगाईगांव और धुबरी हैं।
पिछले साल कैबिनेट के एक फैसले के बाद असम गण परिषद के विधायक प्रदीप हजारिका के नेतृत्व में तीन सदस्यीय आयोग गठित किया गया था जिसमें भारतीय जनता पार्टी के विधायक मृणाल सैकिया तथा रूपक शर्मा को सदस्य बनाया गया था। आयोग का मुख्य उद्देश्य मठों की भूमि से संबंधित समस्याओं की बारीकी से जांच करना और अतिक्रमण की सीमा को सत्यापित करना तथा दीर्घकालिक समाधान के लिए विशिष्ट सिफारिशें करना है। मठ असम में वैष्णववाद की एक अनूठी विशेषता हैं, जिनकी स्थापना सामाजिक और धार्मिक सुधारक शंकरदेव ने की थी, जो असमिया संस्कृति के जनक भी हैं। ये मठ पारंपरिक प्रदर्शन कलाओं के केंद्र भी हैं।
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