चिकित्सा संबंधी अर्जी पर 'एनआईए' का रुख
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रतिबंधित समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के तत्कालीन अध्यक्ष ई. अबूबकर की चिकित्सा संबंधी अर्जी पर बुधवार को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) का रुख जानना चाहा। अबूबकर को प्रतिबंधित संगठन के खिलाफ की गई कार्रवाई के दौरान गिरफ्तार किया गया था। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की खंडपीठ ने एनआईए को स्थिति रिपोर्ट पेश करने तथा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की ओर से अधिकृत एक विशेषज्ञ की राय से अवगत कराने का निर्देश दिया। अबूबकर ने निचली अदालत के उस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है जिसमें इलाज के लिए रिहा किये जाने संबंधी उसकी अर्जी खारिज कर दी गयी थी।
अदालत ने अबूबकर का यह अनुरोध ठुकरा दिया कि उसे घर में नजरबंद रखा जाना चाहिए। हालांकि इसने कहा कि आरोपी को आवश्यक इलाज उपलब्ध कराया जाएगा। खंडपीठ ने कहा, ‘‘हम ऐसा करने के पक्ष में नहीं हैं। एम्स देश का प्रमुख अस्पताल है। यदि आप इसे (इलाज के आधार को) घर में नजरबंद करने के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं तो हम इसे मंजूर नहीं कर रहे हैं। हम केवल याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य की स्थिति को लेकर चिंतित हैं।’’ अबूबकर की ओर से पेश अधिवक्ता अदित पुजारी ने खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि उनके 70-वर्षीय मुवक्किल कैंसर तथा पार्किंसन जैसी बीमारी से पीड़ित हैं, तथा उन्हें तत्काल चिकित्सा निगरानी की आवश्यकता है, लेकिन निचली अदालत ने इस अर्जी को ठुकरा दिया है।
पुजारी ने कहा कि याचिकाकर्ता को एम्स में जांच के लिए बहुत बाद का समय दिया गया है, जबकि इसकी तत्काल आवश्यकता है। अदालत ने एम्स की ओर से जांच के लिए निर्धारित ‘तिथि’ पर नाखुशी जताते हुए कहा, ‘‘वह (याचिकाकर्ता) स्कैन के लिए 2024 तक इंतजार नहीं कर सकता। (वह जेल में है) इसका यह मतलब नहीं कि वह 2024 तक इंतजार करेगा। यह जांच है। इसके लिए निश्चित तौर पर 2024 तक इंतजार नहीं किया जा सकता।’’ अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह न तो मामले के गुण-दोष पर, न ही इस चरण में नियमित जमानत के मुद्दे पर विचार कर रही है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 14 दिसम्बर की तारीख मुकर्रर की है।
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