बहाली संबंधी एकलपीठ के आदेश को निरस्त किया
पंकज कपूर
नैनीताल। उत्तराखंड विधानसभा से हटाये गये 228 तदर्थ कार्मिकों को बृहस्पतिवार को उच्च न्यायालय से झटका लगा है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अगुवाई वाली पीठ ने गुरूवार को महत्वपूर्ण आदेश जारी कर इन कर्मचारियों की बहाली संबंधी एकलपीठ के आदेश को निरस्त कर दिया है। विधानसभा सचिवालय की ओर से एकलपीठ के आदेश को चुनौती दी गयी। मुख्य न्यायाधीश सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ में आज विशेष अपील पर सुनवाई हुई। विधानसभा सचिवालय की ओर से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अमित आनंद तिवारी और अमित गर्ग अदालत में पेश हुए।
विधानसभा सचिवालय की ओर से कहा गया कि 2016 से 2021 के मध्य विभिन्न पदों पर 228 तदर्थ कार्मिकों की नियुक्ति की गयी। ये नियुक्तियां अवैध ढंग से की गयी। नियुक्तियों में तय मानकों का पालन नहीं किया गया। आवेदन आमंत्रित करने के लिये न ही कोई विज्ञापन एवं सार्वजनिक सूचना जारी की गयी और न ही किसी चयन कमेटी एवं प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन किया गया। यही नहीं आरक्षण नियमों का पालन भी नहीं किया गया। अदालत में यह बात भी सामने आयी कि विधानसभा अध्यक्ष की संस्तुति पर मात्र व्यक्तिगत मांग पत्र के आधार पर नौकरी दे दी गयी। यह भी कहा गया कि नियुक्तियां नितांत कामचलाऊ व्यवस्था के तहत की गयी थीं और व्यवस्था थी कि इन्हें बिना पूर्व सूचना के कभी भी हटाया जा सकता है। वर्ष 2003 में तदर्थ नियुक्तियों पर प्रतिबंध के बावजूद ये नियुक्तियां की गयीं।
कार्मिक एवं वित्त विभाग की ओर से भी इन नियुक्तियों पर आपत्ति दर्ज की गयी। इसी वर्ष 2022 में विधानसभाध्यक्ष की ओर से इन नियुक्तियों की वैधता की जांच के लिये एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया और कमेटी ने भी इन नियुक्तियों को अवैध पाया। इसके बाद विधानसभा सचिव की ओर से अलग-अलग आदेश पारित कर सभी को हटा दिया गया। विधानसभा सचिवालय की ओर से इस मामले में अदालत में उच्चतम न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों के आदेशों का हवाला भी दिया गया।
दूसरी ओर बर्खास्त कर्मचारियों की ओर से अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा गया कि गैरसैंण विधानसभा सत्र को देखते हुए आपताकालीन परिस्थितियों में 2016 में कुछ नियुक्तियां की गयीं। वर्ष 2018 में उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ की ओर से भी एक जनहित याचिका के सुनवाई के दौरान इन नियुक्तियों को जायज ठहराया गया। अंत में अदालत ने अपने निर्णय में एकलपीठ के आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि एकलपीठ को बर्खास्तगी जैसे मामले में अंतरिम आदेश जारी कर स्थगनादेश पारित नहीं करना चाहिए था। उल्लखनीय है कि विधानसभा सचिव के बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ 132 तदर्थ कर्मचारी हाईकोर्ट पहुुंच गये थे और 15 अक्टूबर को एकलपीठ ने अंतरिम आदेश जारी कर कार्मिकों को फौरी राहत देते हुए बहाली आदेश जारी कर दिये थे। यही नहीं एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय को भी स्थायी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने और बहाल कर्मचारियों को उसमें कोई बाधा उत्पन्न नहीं करने के सख्त निर्देश दिये थे। युगलपीठ के आज के निर्णय से साफ है कि अवैध नियुक्तियों के मामले में विधानसभा सचिव का बर्खास्तगी आदेश आज भी अस्तित्व में है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you, for a message universal express.