प्रभावी: जीपीए ने एससी के निर्णय का स्वागत किया
अकांशु उपाध्याय/इकबाल अंसारी
नई दिल्ली/गाजियाबाद। जीपीए ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश शिक्षा कमाई का जरिया नही को प्रभावी बताते हुए निर्णय का स्वागत किया है। गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन की अध्य्क्ष सीमा त्यागी ने कहा कि यह निर्णय ऐसे समय मे आया है, जब देश के अधिकतर राज्यो में शिक्षा का बढ़ता व्यवसाईकरण अपनी चरम सीमा पर है। जिसकी वजह से शिक्षा आम आदमी की पहुँच से दूर होकर एक विशेष वर्ग के लोगो के लिए सीमित होने का संदेश दे रही है। शिक्षा के बढ़ते व्यवसाईकरण पर लगाम लगाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार चुप्पी साधे रखती है। सरकारो को देश के शिक्षण संस्थानों की फीस पर लगाम लगाने की चुप्पी का एक बड़ा कारण देश के बड़े-बड़े उधोगपतियों और नेताओं का पैसा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षण संस्थानों में निवेश करना भी हो सकता है।
देश के अधिकतर राज्यो में बड़े बड़े उधोगपतियों एवम व्यापारियों की शिक्षा के मंदिरों में घुसपैठ हो चुकी है। जिसके कारण देश मे शिक्षा का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। देश मे निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा अभिभावकों से फीस के नाम पर की जा रही मोटी उगाही के खिलाफ अभिभावको एवम पेरेंट्स एसोसिएशन द्वारा लगातार आवाज उठाई जा रही है। लेकिन निजी शिक्षण संस्थानों की फीस नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारे गंभीर नही है।
इसका एक बड़ा उदाहरण हम सभी ने कोरोना काल के समय मे देखा जब पेरेंट्स द्वारा कोरोना में ऑन लाइन फीस की निर्धारित करने की मांग देश के प्रधानमंत्री और राज्यो के मुख्यमंत्रियों से की गई, लेकिन सरकार ऑन लाइन क्लास की फीस निर्धारित करने की जायज मांग पर भी टस से मस नही हुई और देश के अभिभावकों को लगभग 100 साल बाद आई विपदा में भी शिक्षा जिसको समाज सेवा कहा जाता है, के नाम पर निजी स्कूलों द्वारा लूटने के लिये अकेला छोड़ दिया गया जो यह अत्यंत चिंतनीय है की फीस नियंत्रण का जो निर्णय केंद्र सरकार को लेना चाहिए। आज उस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट को लेने के लिए विवश होना पड़ा।
आपको जानकारी के लिए बताना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आंध्र प्रदेश के मेडिकल कॉलेजो में ट्यूशन फीस बढ़ाकर 24 लाख करने के राज्य सरकार के आदेश को रद्द करने के निर्णय को बरकरार रखते हुये कहा कि शिक्षा कमाई का जरिया नही और ट्यूशन फीस हमेशा अफोर्डेबल यानी चुकाई जा सकने लायक होनी चाहिए यहां यह भी बताना जरूरी है कि हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश सरकार और मेडिकल कॉलेज सुप्रीम कोर्ट पहुँचे थे जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सख्त रुख अख्तियार करते हुये मेडिकल कॉलेज और आंध्र प्रदेश सरकार पर 5 लाख का जुर्माना भी लगाया साथ ही इस रकम को 6 हफ्ते के अंदर रजिस्ट्री में जमा कराने के आदेश दिए है।
गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन के सचिव अनिल सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय शिक्षा कमाई का जरिया नही, भविष्य में शिक्षण संस्थानों द्वारा की जा रही लूट पर लगाम लगाने के लिए बहुत प्रभावी साबित हो सकता है। केंद्र और राज्य सरकार शिक्षा के बढ़ते व्यवसाईकरण पर रोक लगाने में असफल है। इसलिये सुप्रीम कोर्ट को देश की शिक्षा व्यवस्था को अपने आधीन लेकर कोर्ट के निर्णयों को राज्य राज्य सरकारों द्वारा प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये एक इम्पलीमेंटेशन बॉडी का गठन करना चाहिए। जिससे कि शिक्षा के बढ़ते व्यवसाईकरण पर रोक लग सके एवम शिक्षा आम आदमी की पहुँच से दूर न जाने पाएं।
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