घर में नजरबंद रखने के अनुरोध को मंजूर किया
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने घर में नजरबंद रखने के उनके अनुरोध को बृहस्पतिवार को मंजूर कर लिया और कहा कि प्रथम दृष्टया उनकी चिकित्सीय रिपोर्ट खारिज करने की कोई वजह नहीं है। न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि 70 वर्षीय नवलखा को घर में नजरबंद करने के आदेश को 48 घंटे के भीतर अमल में लाया जाए। इसके साथ ही अदालत ने कई शर्तें भी लगायीं।
पीठ ने कहा, मामले के निकट भविष्य में निस्तारण की ओर प्रगति करने के आसार नहीं हैं और आरोप तय नहीं किए जा रहे हैं। हमारा मानना है कि उन्हें एक महीने के लिए घर में नजरबंद करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने नवलखा को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को 2.4 लाख रुपये जमा कराने का भी निर्देश दिया। एनआईए ने पुलिस कर्मी उपलब्ध कराने के लिए यह खर्च आने का दावा किया था। न्यायालय ने यह भी कहा कि नवलखा को एक महीने के लिए घर में नजरबंद करने के दौरान कम्प्यूटर तथा इंटरनेट इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी।
पीठ ने कहा, याचिकाकर्ता घर में नजरबंद रहने के दौरान कम्प्यूटर, इंटरनेट या संचार के किसी अन्य उपकरण का इस्तेमाल नहीं करेंगे। हालांकि, उन्हें पुलिस की मौजूदगी में दिन में एक बार 10 मिनट के लिए पुलिसकर्मियों द्वारा उपलब्ध कराए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने की अनुमति होगी लेकिन बगैर इंटरनेट के।
शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि नवलखा को मुंबई छोड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी और वह घर में नजरबंद रहने के दौरान किसी भी तरीके से गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगे। उसने कहा कि टेलीविजन देखने और अखबार पढ़ने की अनुमति दी जाएगी लेकिन ये इंटरनेट आधारित नहीं होने चाहिए। पीठ ने कहा, हम याचिकाकर्ता तथा साथियों से सभी शर्तों का ईमानदारी से पालन करने की अपेक्षा करते हैं। किसी भी उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा और आदेश को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जा सकता है।
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