2026 से मूल्य निर्धारण की खुली छूट देने की सिफारिश
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। सरकार की तरफ से नियुक्त गैस कीमत समीक्षा समिति ने बुधवार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में परंपरागत गैस क्षेत्रों के लिए एक आधार एवं अधिकतम कीमत तय करने का सुझाव देने के साथ ही जनवरी, 2026 से मूल्य निर्धारण की खुली छूट देने की सिफारिश की है। योजना आयोग के पूर्व सदस्य किरीट पारिख की अगुवाई वाली समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि परंपरागत क्षेत्रों से निकलने वाली गैस के लिए एक निर्धारित मूल्य दायरा रखने से गैस उत्पादकों के लिए एक अनुमान-योग्य कीमत निर्धारण व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकेगी। समिति के मुताबिक, इस व्यवस्था से सीएनजी एवं पाइप से आपूर्ति की जाने वाली रसोई गैस पीएनबी की कीमतों को नरम करने में भी मदद मिलेगी।
उत्पादन लागत बढ़ने से इसकी कीमत पिछले साल से अबतक 70 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं। समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा पुराने क्षेत्रों से निकाली जाने वाली प्राकृतिक गैस की कीमत को आयातित कच्चे तेल की कीमतों से जोड़ने की सिफारिश भी की है। पारिख ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैस की दरों से जोड़ने के बजाय घरेलू स्तर पर उत्पादित गैस की कीमतें आयातित कच्चे तेल के भाव से जोड़ी जानी चाहिए। इसके लिए गैस का आधार एवं अधिकतम मूल्य दायरा तय किया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) को चार डॉलर प्रति 10 लाख ब्रिटिश थर्मल यूनिट (प्रति इकाई) के न्यूनतम मूल्य और 8.57 डॉलर की मौजूदा दर के मुकाबले अब अधिकतम 6.5 डॉलर का भुगतान किया जाएगा।
पारिख ने कहा कि पुराने गैस क्षेत्रों से निकलने वाली गैस के लिए अधिकतम दर को सालाना 0.5 डॉलर प्रति इकाई बढ़ाया जाएगा। इसके साथ ही समिति ने एक जनवरी, 2027 से एपीएम गैस की कीमत बाजार से निर्धारित किए जाने का सुझाव दिया है। हालांकि, समिति मुश्किल क्षेत्रों से निकलने वाली गैस के लिए मूल्य निर्धारण के मौजूदा फॉर्मूले को बदलने के पक्ष में नहीं रही।
मूल्य निर्धारण की यह व्यवस्था रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के केजी-डी6 क्षेत्र और ब्रिटेन की इसकी भागीदार बीपी पीएलसी के मुश्किल गैस क्षेत्रों पर लागू होती है। पारिख ने कहा, ‘‘इन गैस उत्पादकों को विपणन एवं कीमत निर्धारण की स्वतंत्रता होती है लेकिन सरकार की तरफ से तय ऊपरी सीमा से यह बाधित होती है। हम तीन वर्षों तक मौजूदा व्यवस्था जारी रखने और एक जनवरी, 2026 से इस ऊपरी सीमा को हटाकर उन्हें पूरी आजादी देने का सुझाव दिया है।’’ समिति ने प्राकृतिक गैस को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था में लाने का भी सुझाव देते हुए कहा है कि इस बारे में राज्यों की चिंताओं को देखते हुए सहमति बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
गैस को जीएसटी के दायरे में लाने पर राज्यों को वैट शुल्क से मिलने वाले राजस्व में कटौती की आशंका है। पारिख ने कहा कि एपीएम गैस के आवंटन में शहरी गैस वितरण को शीर्ष प्राथमिकता मिलनी जारी रहेगी। उत्पादन में गिरावट आने की स्थिति में अन्य उपभोक्ताओं को आपूर्ति में कटौती की जाएगी। पुराने गैस क्षेत्रों से निकलने वाली गैस शहरी गैस वितरकों को बेची जाती है। पारिख समिति को ‘‘भारत में गैस-आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए बाजार-उन्मुख, पारदर्शी और भरोसेमंद मूल्य निर्धारण व्यवस्था’’ सुनिश्चित करने के लिए सुझाव देने का काम सौंपा गया था। समिति को यह भी तय करना था कि अंतिम उपभोक्ता को उचित मूल्य पर गैस मिले।
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