नवरात्रि का आठवां दिन माता 'महागौरी' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
हिन्दू धर्म में शारदीय नवरात्र के आठवें दिन को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन मां दुर्गा की सिद्ध स्वरूप माता महागौरी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। बता दें कि नवरात्र के अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। देशभर में 3 सितंबर को माता आदिशक्ति की विशेष पूजा की जाएगी और व्रत का पालन किया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पूजा-पाठ करने से और उपवास रखने से सभी प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं और माता महागौरी का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है। आइए जानते हैं, कैसे की जानी चाहिए माता की पूजा और क्या है इस दिन का महत्व ?
माता महागौरी का स्वरूप...
मां दुर्गा के आठवें सिद्ध स्वरूप में माता महागौरी का रंग दूध के समान श्वेत है। साथ ही वह इसी रंग के वस्त्र भी धारण करती हैं। माता महागौरी भैंस ओर सवार होकर अपने भक्तों की प्रार्थना सुनने आती हैं। माता की चार भुजाएं हैं और प्रत्येक भुजा में माता ने अभय मुद्रा, त्रिशूल, डमरू और वर मुद्रा धारण किया है।
माता महागौरी की पूजा-विधि...
नवरात्र पर्व के अष्टमी तिथि को ब्रह्ममुहूर्त में स्नान-ध्यान करें और पूजा स्थल की साफ-सफाई करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से सिक्त करें। ऐसा करने के बाद व्रत का संकल्प लें और माता को सिंदूर, कुमकुम, लौंग का जोड़ा, इलाइची, लाल चुनरी श्रद्धापूर्वक अर्पित करें। ऐसा करने के बाद माता महागौरी और मां दुर्गा की विधिवत आरती करें। आरती से पहले दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन नौ कन्याओं के पूजन का भी विधान है। इस दिन 10 या उससे कम उम्र की नौ कन्या और एक बटुक को घर पर आमंत्रित करें और फिर श्रद्धापूर्वक पूड़ी-सब्जी या खीर-पूड़ी का भोग लागएं। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं।
माता महागौरी मंत्र...
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्।।
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्।।
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्।।
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्।।
स्तोत्र पाठ...
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्।।
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्।।
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्।।
माता महागौरी की आरती...
जय महागौरी जगत की माया ।
जय उमा भवानी जय महामाया ।।
हरिद्वार कनखल के पासा ।
महागौरी तेरा वहा निवास ।।
चंदेर्काली और ममता अम्बे ।
जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे ।।
भीमा देवी विमला माता ।
कोशकी देवी जग विखियाता ।।
हिमाचल के घर गोरी रूप तेरा ।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा ।।
सती 'सत' हवं कुंड मै था जलाया ।
उसी धुएं ने रूप काली बनाया ।।
बना धर्म सिंह जो सवारी मै आया ।
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया ।।
तभी मां ने महागौरी नाम पाया ।
शरण आने वाले का संकट मिटाया ।।
शनिवार को तेरी पूजा जो करता ।
माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता ।।
'चमन' बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो ।
महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो ।।
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