आस्तीन का सांप
'संपादकीय'
कुछ तो जुल्म बाकी है जालिम,
हाजिर है कतरा-कतरा लहू।
आधुनिक विकासशील भारत गणराज्य महंगाई, मंदी और बेरोजगारी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। यह सरकार की अभावग्रस्त नीति का परिणाम है। प्रौद्योगिक विकास की प्रतिस्पर्धा में कम शिक्षित मध्यवर्गीय व्यापारियों का दमन अंतिम छोर तक पहुंच चुका है। आधुनिक परिवर्तनों की सुनामी में मध्यवर्ग का व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इस बात से गुरेज नहीं किया जा सकता है कि भारत विश्व की 5 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सम्मिलित हो गया है। लेकिन इस बात की आड़ लेकर हम सच्चाई को ना छुपा सकते हैं और ना दबा सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के सर्वेक्षण के द्वारा बहुआयामी दरिद्रता सूचांक (एमपीआई) 2022 के अनुसार देश की कुल 138 करोड़ की आबादी में लगभग 9.70 करोड (गरीब बालक) नागरिक गरीबी, भुखमरी और कुपोषण से प्रभावित है। ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 21.2% वहीं नगरीय क्षेत्र में 5.5% नागरिक दरिद्रता पूर्ण जीवन जी रहे हैं। देश विश्व पटल पर उन्नति कर रहा है, प्रगति की गाथा गाने वाले तांता लगाकर, ढोल पीटकर इस बात का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। क्या किसी के द्रवित हृदय में यह टीस शेष से नहीं रह गई है कि बनावटी मुस्कुराहट वास्तविक पीड़ा के आवरण में भाव-भंगिमा को स्वरूपित करती है। कुल 138 करोड़ की आबादी में भारत के 9.70 करोड़ दरिद्र बच्चे दुर्भाग्यवश भारत में निवास करते हैं। यह जीवन मार्मिक अवस्था की पराकाष्ठा का अंत है। इतने लोगों का जीवन कष्टदायक होने के बाद हमें कैसा जश्न मनाना चाहिए? किस आधार पर हम सुखी होने का आभाष व्यक्त कर सकते हैं? देश के नागरिकों की इस दुर्दशा का दायित्व किसी को तो स्वीकार करना ही होगा। सरकार गरीबी और भुखमरी उन्मूलन और उध्दार के लिए जनकल्याणकारी योजनाओं का संचालन कर रही है। सरकार का बोझ उठा कर चलने वाले आए दिन कहीं ना कहीं जनकल्याणकारी योजनाओं का उद्घाटन कर, उन्मुक्त योजनाओं को जनता को समर्पित कर रहे हैं। मंच पर गाल बजाना, जनता को जुमले सुनाना आसान काम हो सकता है।
परंतु जनता की सहृदयता से सेवा करना कल भी दुर्गम कार्य था और आज भी दुर्गम ही बना हुआ है। भारत की जनता की पीड़ा का बखान करना देश के सभी विदूषियों का दायित्व बनता है। सच कड़वा होता है। लेकिन सच से भाग पाना संभव नहीं है। विश्व में भारत के नाम इस प्रकार की विशेष उपाधि प्रभावित नागरिकों की सत्यता स्पष्ट करतीं हैं। किसी राष्ट्र चिंतक ने इस विषय पर आत्मग्लानि प्रतीत नहीं की। 9.70 करोड़ गरीब, कुपोषित वर्ग के लिए कोई सांत्वना, संवेदना शेष नहीं रह गई है। राष्ट्र के नेता तो कर्तव्यनिष्ठा से इस समस्या के समाधान पर दिन-रात बिना रुके, बिना थके कार्य कर रहे हैं। परंतु देश के ठेकेदारों में कोई तो 'आस्तीन का सांप' है जो इस देश को ड़सने का कार्य कर रहा है।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you, for a message universal express.