'भाजपा' की शाखा के नेतागण झूठा आरोप लगा रहे हैं
अगरतला। त्रिपुरा के शाही वंशज एवं स्वायत्त जिला परिषद (एडीसी) के सत्तारूढ़ ‘तिपरा मोथा’ के अध्यक्ष प्रद्योत किशोर देववर्मन ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि लोकसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जनजातीय शाखा के नेतागण उनके खिलाफ झूठा आरोप लगा रहे हैं और अपमानजनक टिप्पणियां कर रहे हैं। श्री देववर्मन ने कहा कि भाजपा दुर्भावनावश पिछले कुछ दिनों से एडीसी प्रशासन के खिलाफ दुष्प्रचार कर रही है, भ्रष्टाचार का अभियान चला रही है।
एडीसी के उप क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से भाजपा जनजाति मोर्चा ने 19 अक्टूबर को राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा है, जो कि भ्रामक और निराधार है। भाजपा के आरोपों का खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि तिपरा मोथा केवल एक वर्ष पहले एडीसी की सत्ता में आई है जबकि कैग की टिप्पणी 2014 से चल रही प्रथाओं के लिए है, उस समय कम्युनिस्ट का शासन था और उसके बाद दो वर्षों तक भाजपा का शासन रहा।
इसी प्रकार, त्रिपुरा सरकार द्वारा दिए गए धन का उपयोग नहीं करने पर उन्होंने कहा कि राज्य ने वादा के अनुसार एडीसी को कोई फंड जारी नहीं किया इसलिए आरोप निराधार है। उन्होंने आरोप लगाया,“ राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ताओं ने व्यक्तिगत रूप से मेरे खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाए और मेरी मौत की इच्छा सहित अपमानजनक टिप्पणियां की और पुतले भी फूंके।जनजातियों में अशांति उत्पन्न करने के लिए तिपरासा के लोग चालाकी से तिपरासा के खिलाफ लामबंद हुए, लेकिन मुझे पता है कि इसके संरक्षक और वास्तुकार पर्दे के पीछे हैं।” उन्होंने दावा किया कि भाजपा उनसे नाखुश है क्योंकि मोथा अपनी ग्रेटर तिपरालैंड और राज्य के मूल निवासियों की समस्याओं का संवैधानिक समाधान जैसी मुख्य मांगों पर अडिग रही है।
उन्होंने कहा, “भाजपा लंबे समय तक मुझे सत्ता, धन और खूबसूरत सपनों के माध्यम से लुभाने की कोशिश करती रही, जैसा कि आमतौर पर वह अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के साथ करती है लेकिन मैंने उन्हें अस्वीकार कर दिया। इसलिए, उनके पास मुझे आहत करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है।” उन्होंने कहा, “मुझे कोई समस्या नहीं है अगर मेरी मौत से त्रिपुरा के स्वदेशी लोगों, प्रगति और समृद्धि का स्थायी समाधान होता है। लेकिन मैं अपनी प्रतिबद्धता से समझौता नहीं करूंगा।
आईपीएफटी को 2018 के चुनावों में भाजपा ने धोखा दिया और त्रिपुरा के लोगों को सत्ता परिवर्तन करने के लिए प्रेरित किया। जनजातीय मुद्दों का समाधान करने के लिए एक उच्चाधिकार समिति का भी गठन हुआ लेकिन दुर्भाग्यवश साढ़े चार वर्षों में कुछ नहीं हुआ।हिंसा और घृणा की संस्कृति ने समाज में सौहार्द को नष्ट किया है और पिछले 75 वर्षों में हमें गुलामों की तरह जीने पर मजबूर किया है, एक दिन ऐसा आएगा जब मैं आपके बीच नहीं रहूंगा और तब आपको मेरे त्याग और बलिदान का एहसास होगा।”
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