तालिबान का फिर से उभरना, प्रतिक्रियावादी घटना नहीं
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने शुक्रवार को कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान का फिर से उभरना, कोई प्रतिक्रियावादी घटना नहीं है। आंबेकर ने यहां एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में यह बात कही। वरिष्ठ पत्रकार अरुण आनंद द्वारा लिखित दो पुस्तकें - 'द तालिबान- वॉर एंड रिलिजन इन अफगानिस्तान' और 'द फॉरगॉटन हिस्ट्री ऑफ इंडिया' यहां कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में लॉन्च की गईं।
उन्होंने कहा कि भारत में पीएफआई, हमास, आईएसआईएस जैसे संगठनों के रूप में कई देशों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं।
उन्होंने कहा, इन घटनाओं को किसी ने नहीं भड़काया है, अगर किसी को ऐसा लगता है तो फिर से सोचने की जरूरत है।
अंबेकर ने रेखांकित किया, हर किसी को तालिबान के उदय के प्रकरणों को जानने की जरूरत है, उनकी मानसिकता और विचारधारा सभी को पता होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि तालिबान से जुड़े मुद्दों को समझना महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह हमारे पड़ोस में हो रहा है।
उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं को केवल राजनीतिक नहीं कहा जा सकता।
उन्होंने कहा, जिस देश को आजादी मिलने के बाद विभाजन के आघात का सामना करना पड़ा और उसके नागरिक तालिबान के फिर से उभरने को कभी भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। यह पता लगाने के लिए मूल स्थान पर जाने की जरूरत है कि क्या हमारे देश से कोई लिंक जुड़ा हुआ है ?
उन्होंने कहा, हमें यह जानने की जरूरत है कि क्या इन दिनों देश भर में हो रही घटनाएं ऐसी विचारधारा से जुड़ी हुई हैं.. क्या ऐसी विचारधाराएं हमारे देश में प्रवेश कर रही हैं या ऐसी घटनाओं का समर्थन करने वाले कोई संगठन उस विचारधारा से जुड़े हुए हैं? हम सभी को यह जानने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, हमें इसे ढकने से कुछ नहीं मिलेगा। हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते।
स्वतंत्रता संग्राम के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग स्वतंत्रता आंदोलन को अपनी विचारधारा के अनुसार और राजनीतिक उद्देश्य के लिए देखते हैं, वह स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है। उन्होंने कहा, इतिहास में आईएनए के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया गया है, यहां तक कि आजादी के बाद के दौर में आरएसएस पर भी ज्यादा ध्यान नहीं जाता है, लेकिन इतिहास को दबाया नहीं जा सकता।
नई पीढ़ी को विनायक दामोदर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस, बिरसा मुंडा के बारे में जानने की जरूरत है जो देश की एकता को मजबूत करेगा। नई पीढ़ी को पता होना चाहिए कि पहला संवैधानिक संशोधन क्यों किया गया था। उन्हें पता होना चाहिए कि भारत क्यों और कैसे विभाजित किया गया था। ताकि भविष्य में इसे दोबारा नहीं दोहराया जा सके।
उन्होंने कहा कि भारत में पीएफआई, हमास, आईएसआईएस जैसे संगठनों के रूप में कई देशों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं।
उन्होंने कहा, इन घटनाओं को किसी ने नहीं भड़काया है, अगर किसी को ऐसा लगता है तो फिर से सोचने की जरूरत है।
अंबेकर ने रेखांकित किया, हर किसी को तालिबान के उदय के प्रकरणों को जानने की जरूरत है, उनकी मानसिकता और विचारधारा सभी को पता होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि तालिबान से जुड़े मुद्दों को समझना महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह हमारे पड़ोस में हो रहा है।
उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं को केवल राजनीतिक नहीं कहा जा सकता।
उन्होंने कहा, जिस देश को आजादी मिलने के बाद विभाजन के आघात का सामना करना पड़ा और उसके नागरिक तालिबान के फिर से उभरने को कभी भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। यह पता लगाने के लिए मूल स्थान पर जाने की जरूरत है कि क्या हमारे देश से कोई लिंक जुड़ा हुआ है ?
उन्होंने कहा, हमें यह जानने की जरूरत है कि क्या इन दिनों देश भर में हो रही घटनाएं ऐसी विचारधारा से जुड़ी हुई हैं.. क्या ऐसी विचारधाराएं हमारे देश में प्रवेश कर रही हैं या ऐसी घटनाओं का समर्थन करने वाले कोई संगठन उस विचारधारा से जुड़े हुए हैं? हम सभी को यह जानने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, हमें इसे ढकने से कुछ नहीं मिलेगा। हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते।
स्वतंत्रता संग्राम के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग स्वतंत्रता आंदोलन को अपनी विचारधारा के अनुसार और राजनीतिक उद्देश्य के लिए देखते हैं, वह स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है। उन्होंने कहा, इतिहास में आईएनए के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया गया है, यहां तक कि आजादी के बाद के दौर में आरएसएस पर भी ज्यादा ध्यान नहीं जाता है, लेकिन इतिहास को दबाया नहीं जा सकता।
नई पीढ़ी को विनायक दामोदर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस, बिरसा मुंडा के बारे में जानने की जरूरत है जो देश की एकता को मजबूत करेगा। नई पीढ़ी को पता होना चाहिए कि पहला संवैधानिक संशोधन क्यों किया गया था। उन्हें पता होना चाहिए कि भारत क्यों और कैसे विभाजित किया गया था। ताकि भविष्य में इसे दोबारा नहीं दोहराया जा सके।
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