लिव-इन रिलेशनशिप में रहना, संरक्षण नहीं: एचसी
बृजेश केसरवानी
प्रयागराज। पति और बच्चों को छोड़ किसी अन्य के साथ रह रही एक विवाहशुदा महिला की याचिका पर सुनवाई के पश्चात इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की वजह से संरक्षण देने से मना कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि देश संविधान से चलता है। इसी वजह से कोर्ट अवैधानिकता की इजाजत नहीं दे सकता। न्यायमूर्ति डॉ. केजे ठाकर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने सुनीति देवी की याचिका पर कहा कि यह याचिका अवैध सम्बंधों पर हाईकोर्ट की मुहर लगवाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि देश संविधान से चलता है। कोर्ट ने कहा कि लिव इन की अनुमति है लेकिन याचियोें के बारे में कहा नहीं जा सकता कि वे वाइफ-हसबैंड हैं। कोर्ट ने कहा कि अदालत समान लिंग के लोगों के साथ रहने के अधिकार पर विचार करती है। उन्होंने कहा कि वे सामाजिक नैतिकता के खिलाफ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। लिव-इन रिलशेनशिप को भारतीय समाज इजाजत नहीं देता। कोर्ट ने कहा कि अदालत अवैधानिकता की इजाजत नहीं दे सकती। कोर्ट ने कहा कि अगर याची का आरोप है कि पति उसके दोस्तों से सम्बंध बनाने के लिये बोलता है, जिसके बच्चे भी हैं। इसी वजह से पत्नि ने पति को छोड़ दिया और वह किसी अन्य की साथ रह रही है। महिला ने पुलिस और अपने पति पर धमकाने का आरोप लगाया लेकिन उसने पुलिस से शिकायत नहीं की। इस मामले को लेकर कोर्ट ने कहा कि पीड़िता पुलिस से नियमानुसार शिकायत कर सकती है।
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