महत्व: 15 जून को मनाई जाएंगी 'मिथुन संक्रांति'
सरस्वती उपाध्याय
सूर्य का मिथुन राशि में प्रवेश करने की स्थिति सूर्य की मिथुन संक्रांति कहलाती है। मिथुन संक्रांति के दिन सूर्यदेव की पूजा का विधान है। वहीं, इस बार मिथुन संक्रांति 15 जून 2022 (बुधवार) को मनाई जाएंगी। एक साल में 12 संक्रांति होती हैं। जिसमें सूर्य अलग-अलग राशि और नक्षत्र में विराजमान होते है। सूर्य का मिथुन राशि में प्रवेश करने की स्थिति सूर्य की मिथुन संक्रांति कहलाती है। मिथुन संक्रांति के दिन सूर्यदेव की पूजा का विधान है। माना जाता है कि इसी दिन से वर्षा ऋतु की शुरूआत हो जाती है। साथ ही लोग इस दिन अच्छी फसल के लिए भगवान से अच्छी बारिश की मनोकामना करते हैं। इसे रज संक्रांति भी कहा जाता है।
त्योहार की तरह मनाई जाती है मिथुन संक्रांति...
उड़ीसा में इस दिन को त्योहार की तरह मनाया जाता है। जिसे राजा परबा कहा जाता है। यहां ये चार दिन पहले से ही शुरु हो जाता है। जिसमें भू देवी यानी धरती माता की विशेष पूजा की जाती है। इस त्योहार में महिलाओं के साथ कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर की कामना के लिए हिस्सा लेती हैं। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में पहले दिन को पहिली राजा, दूसरे दिन को मिथुन संक्रांति या राजा, तीसरे दिन को भू दाहा या बासी राजा और चौथे दिन को वसुमती स्नान कहा जाता है।
क्यों की जाती है सिलबट्टे की पूजा ?
मान्यताओं के अनुसार जैसे महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म होता है, जो उनके शरीर के विकास का प्रतिक है वैसे ही ये तीन दिन भू देवि यानी धरती मां के मासिक धर्म वाले होते हैं जो कि पृथ्वी के विकास का प्रतीक है। वहीं चौथा दिन धरती के स्नान का होता है। जिसे वसुमती गढ़ुआ कहते हैं।
सिलबट्टे को धरती माता का रूप माना गया है। इसलिए इन तीन दिनों में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। चौथे दिन सिलबट्टे को जल और दूध से स्नान कराया जाता है। फिर चंदन, सिंदूर और फूल से भू देवी यानी सिलबट्टे की पूजा की जाती है। इस दिन दान का बहुत महत्व है। गेहूं, गुड़, घी, अनाज आदि का दान करना चाहिए।
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