फल, औषधि और आहार हैं इमली, जानिए
सरस्वती उपाध्याय
इमली का नाम सुनते ही मुंह में पानी आने लगता है। इस चटपटी इमली के अपने कई गुण तो हैं ही, इसे दाल या सब्जी वगैरह में डाल दिया जाए तो स्वाद निखर आएगा। आयुर्वेद में इमली को विशेष बताया गया है। इमली देसी है या विदेशी, वह बहस का विषय है, लेकिन भारत में इसकी खपत बहुत अधिक है।
असल में इमली है क्या ?
यह भी समझने की बात है। ऐसा क्यों कहा जाता है कि इसके पेड़ पर ‘भूत’ रहते हैं, इसलिए उसके नीचे नहीं सोना चाहिए ?
इमली का खट्टापन इतना जर्बदस्त स्वाद लिए होता है कि मनुष्य इसे खाए बिना नहीं रह पाता। चटनी को तो आप जानते ही हैं। भारतीय भोजन की जान है चटनी, क्योंकि यह स्वाद को बढ़ाती है और स्वादिष्ट चटनी बिना इमली के नहीं बन सकती। भारत की रसोई में जबर्दस्त घुसपैठ बनाने वाली इमली आई कहां से है। एक पक्ष का सीधा मानना है कि इमली अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की मूल निवासी है। खासतौर से सूडान, कैमरून और नाइजीरिया। उसके बाद यह फारस और अरब पहुंची। यह भी जानकारी मिली है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में प्राचीन मिस्रवासी और यूनानी अपने भोजन व अन्य कार्यों में इमली का प्रयोग करते थे। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में प्राचीन मिस्रवासी और यूनानी अपने भोजन व अन्य कार्यों में इमली का प्रयोग करते थे।
चरकसंहिता में है इमली का विशेष वर्णन...
भारत में इमली की स्थिति यह है कि ईसा पूर्व सातवीं-आठवीं शताब्दी में लिखे गए भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में इमली के साथ-साथ उसके समकक्ष वृक्षाम्लं और अम्लवेतस का भी वर्णन है। मजेदार बात यह है कि इमली का वैज्ञानिक नाम `इमलींडस इंडिका` है और फारसी और अरबी में ‘तामार हिंदी’ कहा जाता है। जबकि दावा यह है किया गया है कि सूडान से फारस और अरब होते हुए इमली भारत आई। उसके बाद यह पूरे एशिया क्षेत्र में फैल गई।
फल, औषधि और आहार हैं इमली...
भारत में इमली की जबर्दस्त खपत है। दक्षिण भारत सहित पूरे भारत में सब्जियों, स्पेशल डिश, चटनी आदि में इसका खूब प्रयोग होता है। इसके बावजूद भारत में इसका व्यापार व्यवस्थित नहीं है। इमली की सबसे ज्यादा उपज बिहार, उड़ीसा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि राज्यों में होती है। इमली को किस श्रेणी में रखा जाए। आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे फल बताया गया है तो आयुर्वेद से जुड़े चिकित्सक इसे औषधि की श्रेणी में रखते हैं तो फूड विशेषज्ञ इसे आहार मानते हैं। असलियत यह है कि तीनों ही श्रेणी में इमली का जलवा चल रहा है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों में इमली को फल बताया गया है तो आयुर्वेद से जुड़े चिकित्सक इसे औषधि की श्रेणी में रखते हैं तो फूड विशेषज्ञ इसे आहार मानते हैं।
कई बीमारियों को कंट्रोल करती है। इमली
‘चरकसंहिता’ में कहा गया है कि इमली की तासीर गर्म है और यह वात व कफ को ठीक करती है। यह मदिरा का नशा कम करती है और हिचकी को रोकती है। फूड एंड न्यूट्रिशियन कंसलटेंट नीलांजना सिंह के अनुसार कहा जाता है कि खट्टा शरीर के लिए नुकसानदायक है, लेकिन इमली इस मिथक को तोड़ती है। इसका सेवन हाईपरटेंशन को कम करता है, बेड कॉलेस्ट्रॉल का घटाता और गुड कॉलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। यह एंटी बैक्टिरियल भी है और इसमें एंटी ऑक्सिडेंट के भी गुण हैं। इस बात पर शोध चल रहा है कि इमली की गुठली केंसर का इलाज कर सकती है।
इमली में काफी मात्रा में हाइड्रोऑक्साइट्रिक एसिड होता है, जो फैट को जलाने वाले एन्जाइम का पोषण करता है।
उन्होंने बताया कि इमली पाचन क्रिया को दुरुस्त रखती है। इमली में काफी मात्रा में हाइड्रोऑक्साइट्रिक एसिड होता है, जो फैट को जलाने वाले एन्जाइम का पोषण करता है। इसमें फाइबर और आयरन भी है। इसका अधिक सेवन शरीर में एलर्जी पैदा कर सकता है, दांतों को भी जकड़ देता है। इसका अधिक सेवन पेट को गुड़गुड़ा सकता है। डायबिटिक लोगों को भी इमली का कम सेवन करना चाहिए।
भूत का मसला बड़ा ही रोचक है...
इमली को लेकर हमें एक मिथक की जानकारी मिली कि इसके पेड़ के नीचे सोने या आसपास ज्यादा समय तक रहने से ‘भूत’ पकड़ लेते हैं, मनुष्य बीमार हो जाता है और उसकी त्वचा पर निशान पड़ जाते हैं। इसी ‘भूत’ के चलते चक्कर आते हैं, जी मितलाता है और कमजोरी भी महसूस होती है। इसलिए इमली के पेड़ को दूर से ही प्रणाम कर लेना चाहिए। इस मसले पर सरकारी अस्पताल में कार्यरत आयुर्वेदाचार्य डॉ. आरपी पराशर ने बताया कि असल में यह पेड़ अपने चारों ओर अम्लता का आवरण बनाए रखता है। इसके अलावा इसकी पत्तियों से सूक्ष्म द्रव भी निकलता है। इन दोनों के कारण ही शरीर में अम्लीय वायु प्रवेश करती रहती है, जिससे चक्कर व जी मितलाने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। साथ ही त्वचा पर चकत्ते भी पड़ जाते हैं, इसलिए हमारे बड़े-बूढ़ों ने जोड़ दिया कि इस पेड़ पर भूत-प्रेत का वास होता है।
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