शनिवार, 18 जून 2022

घटिया राजनीति की दलदल में कमर तक ईओ

घटिया राजनीति की दलदल में कमर तक ईओ

अश्वनी उपाध्याय  
गाजियाबाद। जनपद स्थित नगर पालिका परिषद लोनी उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी नगरपालिका है। ठीक उसी प्रकार नगर पालिका में भ्रष्टाचार भी बड़ा ही होगा। 300 करोड़ के घोटाला प्रकरण से आप सभी वाकिफ हैं। घोटाला प्रकरण में आरोपी निकाय अध्यक्ष को लोकायुक्त के द्वारा क्लीन चिट दे दी गई है। अधिशासी अधिकारी के द्वारा घोटाला प्रकरण के संबंध में लोनी थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कराया है। जिसमें बताया गया कि नगरपालिका से फाइलें गुम हो गई है। किंतु, अब फाइलों से संबंधित कुछ दस्तावेज मिल रहे हैं। इस प्रकरण में अधिशासी अधिकारी की भूमिका संदिग्ध प्रतीत हो रही है। यह आधा-अधूरा सच है। 
निकाय क्षेत्र में जो भी विकास कार्य किए जा रहे हैं या पूर्व में किए गए हैं। सभी विकास कार्यों से भ्रष्टाचार का संबंध है। सभी विकास कार्यों में निकाय निदेशालय द्वारा निर्धारित मानकों के विरुद्ध कार्य किए गए हैं। नगर पालिका अधिनियम को ताक पर रखकर निविदाएं प्रदान की जाती है। सभी मदों में निर्धारित कमीशन का खेल होता है। निकाय में सभी पंजीकृत संस्था इसके प्यादें हैं। अब यह खेल ज्यादा रोमांचकारी हो गया है। विधायक और पूर्व चेयरमैन के संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। चेयरमैन के द्वारा विधायक पर आरोप लगाया गया है। हालांकि, दोनों के संबध किस स्तर पर है। वहीं बेहतर जानते हैं। किंतु राजनीति की यह जंग कूटनीति पर आधारित है। 
यह बात किसी से छिपी नहीं है। यदि हम भ्रष्टाचार की बात करते हैं तो विधायक के द्वारा शहीद विनोद द्वार से विजय विहार पुलिस चौकी तक निर्मित संपर्क मार्ग पर सड़क के दोनों तरफ इंटरलॉकिंग टाइल्स बिछाने का कार्य अभी तक नहीं किया गया है। भ्रष्टाचार और राजनीति लहंगा-चुनरी जैसे हैं। एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। एक भ्रष्ट अधिकारी ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए दृढ़ निश्चय करता है। इससे अधिक उदारता अन्य कहीं संभव ही नहीं है। 
अवगत कराते चले, अधिशासी अधिकारी को स्थानीय राजनीति में घसीटा जा रहा है। राजनीति से प्रेरित घटिया राजनीति की दलदल में अधिशासी अधिकारी फिलहाल कमर तक है। जनता के हित साधने के उद्देश्य की धारणा वाले अधिकारी को राजनीति से परहेज करना चाहिए। लेकिन क्षेत्र में विवेकी रणनीतिज्ञो ने राजनीति की परिभाषा ही बदल दी है। इसके पीछे क्या उद्देश्य है तो साफ-साफ नहीं जा सकता है। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि अधिशासी अधिकारी स्पष्ट तौर पर राजनीति के मैदान में कूद चुकी है। मीडिया की सुर्खियां बना रहना है, राजनीति का पहला पाठ है। रोज बयान बाजी करना, नए कारनामे करना, बखूबी सब हो भी रहा है।

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