कॉमन सिविल कोड लागू करना, पागल सरकार
हरिओम उपाध्याय
लखनऊ। बाबा साहब भीम राव अंबेडकर ने 2 दिसंबर 1948 को संविधान सभा में कहा था कि कॉमन सिविल कोड लागू करने के बारे में सोचने वाली सरकार एक पागल सरकार ही कही जाएगी। कॉमन सिविल कोड को तो राज्य सरकार बना ही नहीं सकती। फिर भी भाजपा सरकार के मंत्री और नेता अफवाह और अनिश्चितता का माहौल बनाने के लिए बयानबाजी कर रहे हैं।
ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने फेसबुक लाइव के माध्यम से होने वाले स्पीक अप कार्यक्रम के 44 वीं कड़ी में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संविधान सभा में अर्टिकल 44 के सूत्रिकरण पर अपने संबोधन डॉ अंबेडकर ने कॉमन सिविल कोड को वांछनीय तो बताया था। लेकिन साथ ही इसे ऐक्षिक बताया था। उन्होंने कहा कि तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने भी लॉ कमिशन के समक्ष 12 पेज का हलफनामा दिया था। जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकारों को कॉमन सिविल कोड बनाने का अधिकार नहीं है। यह सिर्फ संसद कर सकती है। वहीं 2018 में लॉ कमिशन ने भी कहा था कि पर्सनल लॉ के साथ छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए। जिसके बाद मोदी सरकार ने 22 वें लॉ कमिशन के अध्यक्ष के पद पर किसी को नियुक्त ही नहीं किया। 2018 से ही यह पद खाली है। जबकि ऐसे गंभीर मसलों पर राय देने के लिए ही उसका गठन हुआ था।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें जानती हैं कि कॉमन सिविल कोड का सबसे ज़्यादा विरोध बहुसंख्यक समुदाय से आयेगा, क्योंकि वहां विविधता ज़्यादा है। जबकि ईसाई और मुस्लिम जैसे अल्पसंख्यक समुदायों में पूरे देश में शादी, तलाक़, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार के कानून एक समान हैं। इसीलिये केंद्र सरकार कॉमन सिविल कोड का कोई मसौदा संसद या मीडिया के सामने नहीं रख रही है जिससे उस पर बहस हो सके। सरकार की कोशिश बहुसंख्यक समुदाय को अंधेरे में रख कर उनके बीच इसे मुस्लिम विरोधी प्रचारित कर उनको सांप्रदायिक बनाये रखना है।
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