मासूमों की जान लेने से कोई समाधान नहीं: मंत्री
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। विदेश मंत्री ने कहा कि बूचा में आम नागरिकों की हत्या एक निंदनीय अपराध है। यह एक गंभीर मसला है। इसकी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच होनी चाहिए। उन्हाेंने कहा कि यूक्रेन संघर्ष का वैश्विक और भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और बूचा नरसंहार पर बुधवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि हम पहले दिन से संघर्ष के खिलाफ हैं। हमारा मानना है कि खून बहाकर और मासूमों की जान लेने से कोई समाधान नहीं निकलता है। कूटनीति ही किसी भी विवाद का सही हल है। हम यूक्रेन की हर संभव मदद कर रहे हैं। यूक्रेन में भारत किसकी वकालत कर रहा है, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि भारत अपने हितों को देखते हुए फैसला ले रहा है।
विदेश मंत्री ने कहा कि बूचा में आम नागरिकों की हत्या एक निंदनीय अपराध है। यह एक गंभीर मसला है। इसकी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच होनी चाहिए। उन्हाेंने कहा कि यूक्रेन संघर्ष का वैश्विक और भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ा है। ऐसे में हर देश अपनी नीतियां बदल रहा है और इस युद्ध के परिणामों का आंकलन कर रहा है। हम भी तय कर रहे हैं कि हमारे लिए राष्ट्रीय हित में सबसे अच्छा क्या है। उन्होंने कहा कि, ऐसे समय में जब ऊर्जा की लागत बढ़ रही है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि, भारत में आम नागरिकों पर ज्यादा बोझ न पड़े।
भारत की ओर से बार-बार एडवाइजरी जारी करते रहने पर विदेश मंत्री ने कहा कि, जब युद्ध की आशंका गहरा रही थी। हम यूक्रेन में भारतीयों के लिए लगातार एडवाइजरी जारी कर रहे थे। अगर हमारी एडवाइजरी अप्रभावी थे, तो युद्ध शुरू होने से पहले चार हजार लोग भारत क्यों लौट आए। हमने जिस तरह से 20 हजार लोगों को यूक्रेन से निकाला है, ऐसा कोई भी देश नहीं कर पाया। हम दूसरों के लिए प्रेरणा बनें। उन्होंने कहा कि, छात्रों की मानसिकता को समझने की जरूरत है। जब हम एडवाइजरी जारी कर रहे थे तब सरकारों और विश्वविद्यालयों को भरोसा था कि स्थितियां सुधर जाएंगी। लोग भी यही सोच रहे थे। छात्र अपने मित्रों से बात कर रहे थे कि, जब मैं नहीं जा रहा तो वह क्यों जा रहे हैं।
भारत की ओर से बार-बार एडवाइजरी जारी करते रहने पर विदेश मंत्री ने कहा कि, जब युद्ध की आशंका गहरा रही थी। हम यूक्रेन में भारतीयों के लिए लगातार एडवाइजरी जारी कर रहे थे। अगर हमारी एडवाइजरी अप्रभावी थे, तो युद्ध शुरू होने से पहले चार हजार लोग भारत क्यों लौट आए। हमने जिस तरह से 20 हजार लोगों को यूक्रेन से निकाला है, ऐसा कोई भी देश नहीं कर पाया। हम दूसरों के लिए प्रेरणा बनें। उन्होंने कहा कि, छात्रों की मानसिकता को समझने की जरूरत है। जब हम एडवाइजरी जारी कर रहे थे तब सरकारों और विश्वविद्यालयों को भरोसा था कि स्थितियां सुधर जाएंगी। लोग भी यही सोच रहे थे। छात्र अपने मित्रों से बात कर रहे थे कि, जब मैं नहीं जा रहा तो वह क्यों जा रहे हैं।
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