गर्मी के मौसम में पीने के 'पानी' की भारी किल्लत
इकबाल अंसारी
रांची। राज्य के संथाल परगना में गर्मी के मौसम में पीने के पानी की भारी किल्लत हो रही है। शहरी इलाकों में अबाधित जलापूर्ति से लोगों को पीने का पानी मयस्सर नहीं हो रहा है। वहीं, ग्रामीण इलाकों में भी सौर ऊर्जा आधारित बोरवेल सूखने से पीने का पानी लोगों को नहीं मिल रहा है। संथाल परगना इलाके में जल जीवन मिशन के तहत मार्स नामक एजेंसी को सलाहकार बनाया गया है। मार्स एजेंसी गोड्डा, देवघर के शहरी इलाकों में पीने का पानी पहुंचाने के लिए रिपोर्ट तैयार करने की जवाबदेही दी गयी है। देवघर जिले में पीरपैती डैम से पानी लाने की कोशिशें विफल हो रही हैं। पीरपैंती डैम में गंगा नदी का पानी लाकर भंडारन करने की भारी भरकम योजना बनायी गयी थी।
गोड्डा के शहरी इलाकों में सुंदर डैम से पानी की आपूर्ति करने की सरकार ने योजना बनायी थी। इसको लेकर पेयजल और स्वच्छता विभाग की तरफ से निविदा भी निकाली गयी। 600 करोड़ की योजना का काम एलएंडटी को दिया गया है। गोड्डा में भी पहले 60 किलोमीटर दूरी तक पानी लाने की योजना बनायी गयी थी। सुंदर डैम की स्थिति यह है कि इसमें अधिकतम 30 फीट तक ही पानी स्टोर हो पाता है। इस डैम में बारिश के दौरान पानी का भंडारन नहीं हो पाता है। इसलिए यहां गंगा नदी से पानी लाने की कवायद शुरू की गयी है। कमोबेश यही स्थिति साहेबगंज की है। वहां भी गंगा नदी से पानी लाने की योजना फाइलों में ही सीमित है।
पाकुड़ जिले की बात करें तो 55 करोड़ की योजना आठ वर्षों में भी पूरी नहीं हो पायी है। बाबानगरी देवघर और मधुपुर में भी शुद्ध पीने के पानी की कसरत अब तक नाकाफी साबित हो रही है। मधुपुर जलापूर्ति योजना 2012-13 में शुरू भी हुई, तो उससे लोगों को गरमी में पानी मिल ही नहीं पाता है। यहां पर फिलहाल अजय बराज से पानी लाया जा रहा है। मधुपुर जलापूर्ति योजना के अलावा जामताड़ा और कैरो इलाके को अजय बैराज से 35 क्यूबिक मीटर पानी की आपूर्ति हो रही है। पर अब भी बाबानगरी के मंदिर प्रांगण के आसपास के इलाकों में गरमी शुरू होते ही टैंकरों से जलापूर्ति की जा रही है। अब सरकार पुनासी डैम से भी पानी लाने की योजना बना रही है। उप राजधानी दुमका के कई इलाकों में सरकार द्वारा स्थापित सौर ऊर्जा आधारित ट्यूबवेल से लोगों को पानी नहीं मिल रहा है। दुमका, शिकारीपाड़ा और अन्य इलाकों में पीने के पानी को लेकर लोग दूर-दूर तक भटक रहे हैं। जानकारी के अनुसार हिरणपुर, मसलिया, बोरियो और अन्य जगहों में भी 30 से 40 फीसदी सरकारी ट्यूबवेल खराब हो चुके हैं। लोग अभी भी कुंए और चुंआ तथा अन्य जल स्त्रोतों पर अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।
दुमका जिले के ब्राह्मणी, मयूराक्षी, नुनबिल, धोबे, बासलोइ, टेपरा, मोतिहारा एवं कंजिया नदी से सटे इलाके में जलजीवन मिशन के तहत 39 वृहद स्तर की ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं को धरातल पर उतारने की पहल हो रही है। दुमका के शिकारीपाड़ा और गोपीकांदर दो ऐसे प्रखंड हैं, जिन्हें ड्राई जोन के तौर पर जाना जाता है।
संथाल परगना की बड़ी आबादी अब भी शुद्ध पेयजल को तरस रही है। राष्ट्रीय स्तर पर जहां 31 फीसदी से अधिक ग्रामीण आबादी को शुद्ध जल नल के माध्यम से पहुंचाया जा रहा है, वहीं झारखंड के संताल परगना के पाकुड़ और जामताड़ा जैसे जिले ऐसे भी हैं, जहां ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले महज तीन से पांच फीसदी घरों तक ही नल से जल पहुंच पा रहा है। साहिबगंज जैसे जिले जो गंगा के किनारे बसे हुए हैं, वहां की भी स्थिति अच्छी नहीं है। वहां भी आठ फीसदी से कम परिवारों तक ही नल से जल पहुंच रहा है।
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