सदन की मर्यादा कम होना, लोकतंत्र के लिए खतरा
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मंगलवार को कहा है कि जनप्रतिनिधियों के आचरण और व्यवहार पर ही प्रतिनिधि संस्थाओं की गरिमा निर्भर करती है और सदन की मर्यादा कम होना, लोकतंत्र के लिए खतरा है। बिरला ने संसद भवन परिसर में लोक सभा सचिवालय की ओर से आयोजित महाराष्ट्र विधान सभा और विधान परिषद के सदस्यों के लिए प्रबोधन कार्यक्रम के अपने संबोधन में विधायकों से कहा कि प्रतिनिधि संस्थाओं के सदस्य होने के नाते इन संस्थाओं की प्रतिष्ठा और मर्यादा को ऊंचा उठाने में वे योगदान दें।
उन्होंने कहा कि, सदन में बैठकों की कम होती संख्या और कार्यवाही में बढ़ते अवरोध जैसे विषयों पर भी हमें चिंतन करना चाहिए। जिससे इन संस्थाओं में लोगों का विश्वास बना रहे। जनता के भरोसे पर खरा उतरने के दायित्व के प्रति जनप्रतिनिधियों को हमेशा संवेदनशील रहना चाहिए। जनता की आवाज सदन के माध्यम से सरकार तक पहुंचाने में जनप्रतिनिधियों की सक्रिय सहभागिता आवश्यक है। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि जनप्रतिनिधि होना एक विशेषाधिकार और बड़े सम्मान की बात है। विधायकों को यह याद रखना चाहिए कि यह विशेषाधिकार गंभीर जिम्मेदारियों के साथ आता है। इसलिए एक विधायक का प्राथमिक कर्तव्य होता है कि वह लोगों की समस्याओं और चिंताओं के प्रति उत्तरदायी बने। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि जनप्रतिनिधि को सदन में जनता की शिकायतों को उठाकर उनकी आवाज बनना चाहिए जिससे सरकार उनके त्वरित समाधान हेतु उचित कदम उठा सके।
उन्होंने सुझाव दिया कि सदन में कानून के निर्माण के समय भी जनप्रतिनिधि उस पर व्यापक चर्चा और विचार करें। ऐसा इसलिए है कि यह कानून ही आगे जाकर सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि कानून के निर्माण के समय सभी वर्गों की बात का समावेश उसमें होना चाहिए।बिरला ने कहा कि आज के युग में तेजी से बदलती सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप नीति निर्माण हो रहा है, इसलिए विधानमंडलों के लिए आवश्यक है कि ये जनता की जरूरतों के प्रति और अधिक उत्तरदायी बनें। सदस्यों के लिए आवश्यक है कि वे कार्य-संचालन संबंधी सदन के नियमों और प्रक्रियाओं से भलीभांति परीचित हों। सदन में विभिन्न मुद्दों को उठाने के लिए ये नियम सदस्यों को अनेक प्रक्रियागत साधन उपलब्ध कराते हैं।
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