हरा कबूतर 'संपादकीय'
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जनपद का ज्यादातर उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से मिलता है। जिसके कारण यह कुल क्षेत्र घनी-सघन आबादी वाला क्षेत्र है। औद्योगिक एवं व्यापारिक गतिविधियों के ताने-बाने में पूरी तरह डल गया है। प्रति मीटर प्रति व्यक्ति की दर का संभावित अनुमान भी बेईमानी ही साबित होगी। इसी के साथ सघन आबादी में इस विशेषता को यथावत बनाऐं रखने में प्रदूषण का प्रकोप देश में प्रथम स्थान की रेस में पहला स्थान प्राप्त करके इस कीर्तीमान को बनाए रखने का प्रयास जारी है।
जलवायु परिवर्तन, कार्बनिक उत्सर्जन और घने शोर-शराबे ने ज्यादातर पक्षियों को पलायन के लिए विवश कर दिया। ज्यादातर पक्षी क्षेत्र छोड़कर नये स्थान पर चले गये हैं। कुछेक जो नहीं जा सके, उन्हें मानव स्वार्थ द्वारा रचित जंजाल में घुट-घुट कर मरने को विवश कर दिया गया है। यह हाल एक विशेष क्षेत्र का नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन पर प्रत्येक वर्ष एक नई नीति और संकल्प निर्धारित किए जाते हैं। लेकिन मानव स्वार्थचित बुद्धि विकास के नाम पर प्राकृतिक बदलाव करने पर तुली रहती है।
हमारे देश में प्रतिदिन सैकडो वृक्ष विकास के नाम पर खत्म कर दिए जाते हैं। विकास एक ऐसा राक्षस है जो सैकडो वर्षों से धरती पर जीवर रचने वाले मूल आधार के विनाश पर लगे हुए हैं। वृद्ध वृक्ष इस धरती पर जीवन रचना का आधार है। धरती पर जीवन रचना के मुख्य साक्षी हैं। इसी कारण मनुष्य विकास की आड़ में इन साक्षियों की हत्या करने पर अमादा है।
संयुक्त राष्ट्र में गत 23 मार्च को कार्बनिक उत्सर्जन एवं जलवायु परिवर्तन को लेकर एक बैठक का आयोजन किया। जिसमें जैविक विविधता संरक्षण को लेकर एक निती निर्माण निर्णय लिया गया। निती का धरातल करण में लगभग दो वर्ष लगेंगे, अथवा उससे अधिक समय भी लग सकता है। जब तक विलुप्ती के कगार पर खड़ी कई प्रजातियां अपना अस्तित्व खो चुकी होगी। प्रमाण के आधार पर पडुंक कुल के कोलाम्बिडाए वंश के पीले पैर वाले हरे रंग के कबूतर धरती पर इंडोमलयान एवं ऑस्ट्रेलियन जैव भू-क्षेत्र में पाए जाते हैं। कोलंबिड़ाए वंश की 13 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। पीले पैरों वाले हरे कबूतर की प्रजाति के साथ कई प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर है। यह प्रजाति शत-प्रतिशत शाकाहारी होती है।
हालात इतने बदतर है, यह प्रजाति अपनी नस्ल के संरक्षण के लिए जद्दोजहद कर रही है। भारत के एकमात्र तमिलनाडु राज्य में इसका पाया जाना इस बात की पुष्टि करता है कि इसका गृह राज्य तमिलनाडु है। यह कहना अनुचित नहीं होगा। परंतु, वहां जलवायु परिवर्तन की तेज गति ने इन कबूतरों को प्रवासी बना दिया है। जिसके कारण सामूहिक रूप से यह प्रवासी कबूतर उत्तर-भारत में ठिकाने तलाश रहे हैं। लेकिन उत्तर भारत में वृद्ध वृक्षों के कटान के लिए सरकार दृढ़ निश्चय के साथ संकल्पबद्ध हो चुकी है। राष्ट्र के विकास को ध्यान में रखकर निर्माण और विकास के कार्य किए जा रहे हैं। जिनमें हजारों-लाखों की संख्या में वृद्ध वृक्षों को नष्ट किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि इसके अलावा अन्य विकल्प नहीं है। किंतु यह किसको समझना है...?
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