वृंदावन की लट्ठमार होली 'कविता'
फूल खिले हैं पलास के,
केसरिया और रंग लाल।
खूब डुबोकर भिगा दिए,
बना दिया गुलाल।
फाग खेलकर थक गए,
तीन रंग का चैत्र करें निढाल।
गोरी-गोरी बाहें,
'गौरी' के गाल लाल-लाल।
होरी खेरे सखा संग नंदलाल,
होरे शा, रा, रा, रा,
होरे शा, रा, रा, रा।
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'
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