7 साल कारावास की सजा निलंबित करने से इनकार
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपहार सिनेमा साक्ष्य छेड़छाड़ मामले में रियल एस्टेट कारोबारियों सुशील और गोपाल अंसल को दी गई सात साल कारावास की सजा निलंबित करने से बुधवार को इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि, जहां तक अंसल बंधुओं की बात है, तो मैं इस याचिका को खारिज कर रहा हूं। अंसल बंधुओं और अदालत के पूर्व कर्मचारी दिनेश चंद शर्मा तथा दो अन्य -पी. पी. बत्रा तथा अनूप सिंह करायत को निचली अदालत ने सात वर्ष कैद की सजा सुनाई थी और सत्र अदालत ने सजा स्थगित करने एवं उन्हें जमानत पर रिहा करने से इंकार कर दिया था। सजा स्थगित करने की अंसल बंधुओं की याचिका को खारिज करते हुए सत्र अदालत ने कहा था कि यह मामला काफी गंभीर है और न्याय की राह में हस्तक्षेप करने के दोषियों के जानबूझकर किए गए षड्यंत्र का परिणाम प्रतीत होता है।
अंसल बंधुओं ने अधिक उम्र होने समेत विभिन्न आधार पर सजा को निलंबित किए जाने का अनुरोध किया था। दिल्ली पुलिस और उपहार त्रासदी पीड़ित संघ (एवीयूटी) ने इस याचिका का विरोध किया था। सबूतों के साथ छेड़छाड़ का मामला 20 जुलाई, 2002 को सामने आया था, जिसके बाद शर्मा के विरूद्ध विभागीय जांच शुरू की गई थी एवं उसे निलंबित कर दिया था। शर्मा को 25 जून, 2004 को बर्खास्त कर दिया गया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश पर यह मामला दर्ज किया गया था। उच्च न्यायालय ने एवीयूटी की अध्यक्ष नीलम कृष्णमूर्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया था। उपहार सिनेमाघर में 13 जून, 1997 के दिन ‘बॉर्डर’ फिल्म के प्रदर्शन के दौरान आग लगी थी और 59 लोगों की जान चली गयी थी।
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