कोरोना, अंतिम स्टेज में पहुंचे कैंसर के मरीज
मोहम्मद रियाज
नई दिल्ली। हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। दुनियाभर में कैंसर से हर साल लाखों लोगों की मौत होती है। कोरोना महामारी के बाद से कैंसर के मरीजों की स्थिति काफी खराब हो गई है। संक्रमण के डर के वजह से कैंसर के लक्षण वाले रोगी समय पर अस्पताल नहीं पहुंचे। इससे उनकी स्थिति काफी बिगड़ गई। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कई मरीजों का कैंसर आखिरी स्टेज में पहुंच गया है। इससे यह लोग जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं।
फोर्टिस रिसर्च इंस्टीट्यूट के ऑनकोलॉजी विभाग के डॉक्टर नितेश रस्तोगी ने बताया कि कोविड के बाद कैंसर के उपचार और निदान में काफी बदलाव देखा गया है। कोरोना से पहले देखा जाता था कि स्तन, अंडाशय और कोलोरेक्टल कैंसर के मरीजों के कैंस का शुरुआती स्टेज में ही पता चल जाता था और इलाज भी हो जाता था, लेकिन कोरोना के डर के कारण लोग अस्पताल आने से बचते रहे। उन्हें कैंसर से ज्यादा डर कोरोना से लगा। इसलिए मरीज समय पर अस्पताल नहीं आए। इस कारण अब हालत बिगड़ने पर वह आखिरी स्टेज में मरीज़ अस्पताल पहुंच रहे हैं। ऐसे में उनके इलाज में काफी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। डॉ. नितेश ने कहा कि कोरोना के समय इन मरीजों को महसूस हो गया था कि उनके स्वास्थ्य में कुछ गड़बड़ हुई है, लेकिन वे कोविड से संक्रमित होने के डर की वजह से अस्पताल जाने और डॉक्टरों से सलाह लेने से बचते रहे थे।
कोरोना की वजह से इलाज का खर्च भी बढ़ा
डॉ. नितेश ने कहा कि कोरोना के कारण इलाज में हुई देरी की वजह से इलाज का खर्च बढ़ गया। उपचार के चलते पैदा होने वाले साइड इफेक्ट्स (Side effects) भी और जटिल हुए। डॉ. नितेश का कहना है कि कोरोना की वजह से कैंसर जैसी बीमारी का इलाज ना कराना घातक साबित हो सकता है। कोरोना नहीं भी हुआ तो कैंसर जानलेवा बन सकता है। इसलिए अब समय आ गया है कि लोगों इस बारे में जागरूक हो। कैंसर के लक्षण दिखने पर तुरंत इलाज शुरू कराएं। डॉक्टरों के साथ मिलकर या वर्चुअल आधार पर सलाह भी लें सकते हैं।
कैंसर मरीजों का इलाज बडे़ स्तर पर प्रभावित हुआ
आकाश हेल्थकेयर के ऑनकोलॉजी डिपार्टमेंट हेड डॉक्टर प्रवीण जैन बताते हैं कि कोविड-19 महामारी ने कैंसर मरीजों के इलाज़ को बुरी तरह से प्रभावित किया है। कई अस्पतालों में कैंसर मरीजों की रूटीन केयर तक में रुकावट आई है। इस वजह से गंभीर कैंसर मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है। संक्रमण के डर की वजह से पूरी तरह से सुरक्षा उपकरण पहनकर मरीजों का इलाज़ किया गया। कैंसर मरीजों को इस बीमारी से तो खतरा था कि लेकिन कम इम्यूनिटी के कारण उनको कोविड होने का डर भी सबसे ज्यादा था। कई कैंसर के मरीज कोविड के डर के कारण समय पर इलाज़ भी नहीं करा रहे थे। इस समस्या से निपटने के लिए हमने कैंसर मरीजों के साथ भी संपर्क बनाए रखा। उन्हें प्रोत्साहित किया कि वे कोविड की चिंताओं के कारण इलाज़ को बीच न छोड़े।
एम्स की ओपीडी में कैंसर मरीज 51 फीसदी कम हुए
कोरोना महामारी के कारण कैंसर का इलाज इस कदम प्रभावित हुआ है कि दिल्ली एम्स की ओपीडी में कैंसर मरीज 51 फीसदी तक कम हो गए हैं। एम्स के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एस. वी. एस देव के एक शोधपत्र में यह जानकारी सामने आई है। इसके मुताबिक, एम्स की ओपीडी में कोरोना काल से पहले साल 2019 में 179500 कैंसर मरीज फॉलोअप के लिए आए और 13728 नए मरीज पंजीकृत हुए थे, जबकि कोरोना काल के दौरान साल 2020 में ओपीडी में सिर्फ 79800 कैंसर मरीज फॉलोअप के लिए आए और 6675 ही नए कैंसर मरीजों ने रजिस्ट्रेशन कराया।
यह हैं कैंसर के लक्षण
राजीव गांधी कैंसर अस्पताल के डॉक्टर विनीत तलवार बताते हैं कि कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर में अनियंत्रित रूप कोशिकाएं बढ़ने लगती हैं। कैंसर शरीर में कहीं भी हो सकता है। अगर इनमें से दो-तीन लक्षण भी दिख रहे हैं तो तुकंत डॉक्टरों की सलाह लेनी चाहिए।
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