एआईएमआईएम पार्टी ने उम्मीदवारों की घोषणा की
संदीप मिश्र लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के पहले चरण के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है। एआईएमआईएम ने यूपी में 100 विधान सभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। यूपी की 92 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में है।एआईएमआईएम ने लोनी से डॉक्टर महताब, गढ़मुक्तेश्वर से फुरकान चौधरी, धौलाना से हाजी आरिफ, सिवल खास से रफत खान, सरधना से जीशान आलम, किठौर से तस्लीम अहमद, बेहट से अमजद अली, बरेली-124 से शाहीन रजा खान और सहारनपुर देहात से मरगूब हसन को टिकट दिया है। एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने ज़ी न्यूज़ को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहा कि पिछले 5 साल में यूपी में हमारे संगठन के लोगों ने काफी मेहनत की है और उसका नतीजा हमें जिला परिषद के चुनाव में दिखाई दिया। हमारा प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। मुझे भरोसा है कि आने वाले चुनाव में यूपी की जनता हमें वोट देगी और जिताएगी।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बीजेपी की तरफ से जितने भी बयान आ रहे हैं चाहे उनके मुख्यमंत्री हों, प्रधानमंत्री हों, सभी कोशिश कर रहे हैं कि हिंदुत्व के नाम पर वोट लिया जाए। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा इस तरह की बातें और बढ़ेंगी क्योंकि बीजेपी के पास यूपी में विकास के नाम पर दिखाने के लिए कुछ है ही नहीं। कुपोषित बच्चे सबसे ज्यादा यूपी में हैं। बीजेपी ने 70 लाख रोजगार देने का वादा किया था वो नहीं मिले। कोविड की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं। महंगाई भी मुद्दा है। एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सीएम योगी बताएं कि वो किन 20 प्रतिशत लोगों की बात करते हैं। वो लोग भारत के नागरिक हैं या नहीं। क्या वो सबके मुख्यमंत्री है या फिर वो सिर्फ उन्हीं के मुख्यमंत्री हैं जो सिर्फ उन्हीं की विचारधारा को मानते हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ बौखलाए हुए हैं। पहले सुनने में आया कि वो किसी और विधान सभा से चुनाव लड़ेंगे लेकिन अब फिर वहीं से लड़ रहे हैं जहां से वो लड़ते आए हैं। मुस्लिम मुख्यमंत्री के सवाल पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हम सामाजिक न्याय की बात करते हैं। 19 फीसदी अल्पसंख्यक हैं। हम अपनी भागीदारी की बात करते हैं। समाजवादी पार्टी को इतनी बार मौका मिला, उन्होंने कब मुस्लिमों के साथ सामाजिक न्याय किया। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जहां-जहां मुस्लिम अल्पसंख्यकों के इलाके हैं।
वहां कम बैंक हैं और कब एटीएम हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में बहुत कम मुस्लिमों को घर मिले जबकि बीजेपी सबका साथ, सबका विकास का नारा देती है। एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मुस्लिमों को दबाकर रखा गया। मुसलमानों का वोट उन्हें डराकर हासिल किया गया। हिंदुत्व की विचारधारा में आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक फिट नहीं होते हैं। यूपी में हर थाने में ठाकुर बिरादरी का इंस्पेक्टर मिल जाएगा। 50 फीसदी डीएम यूपी में ब्राह्मण और ठाकुर हैं। लेकिन मैं मुस्लिमों की हिस्सेदारी की बात करता हूं तो गलत हूं।
बालिका के साथ 'प्रताड़ना' मामलें में सीएम का बयान
नरेश राघानी जयपुर। राजस्थान के अलवर में मूक बधिर बालिका के साथ प्रताड़ना के मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बड़ा बयान सामने आया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मामले में दुष्कर्म की बात से इनकार किया है। सीएम ने कहा है कि राजस्थान सरकार इस मामले की सीबीआई के लिए भी तैयार है। लेकिन इस प्रकरण में राजनीति नहीं होनी चाहिए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर लिखा है कि दुष्कर्म की बात से परिवारवालों पर क्या बीतती है इसकी चिंता किए बगैर अलवर के विमंदित बालिका प्रकरण में बीजेेपी द्वारा राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ऐसा घिनौना प्रचार किया जा रहा है। जो बेहद निंदनीय है। राज्य की पुलिस मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कर रही है। यदि फिर भी परिजन किसी विशिष्ट अधिकारी या सीआईडी, क्राइम ब्रांच, एसओजी और सीबीआई से इस मामले की जांच करवाना चाहेंगे तो प्रदेश सरकार इसके लिए भी तैयार है।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि सरकार की नीयत स्पष्ट है कि इस मामले में स्वतंत्र अनुसंधान हो और इस घटना की वास्तविकता सामने आए। गौरतलब है कि इस मामले में भाजपा सहित तमाम विपक्षी दलों ने लगातार राजस्थान सरकार के अनुसंधान पर सवाल उठाते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी। इस प्रकरण में प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर अलवर पुलिस ने भी दुष्कर्म की बात से इनकार किया और उसके बाद अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ये बयान बता रहा है कि मामले में दुष्कर्म के आरोप के तथ्य नहीं मिले है। राजस्थान सरकार ने पीड़िता के उपचार के लिए हरसंभव मेडिकल फैसिलिटी उपलब्ध करवा रखी है और इस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए डीआईजी स्तर के अधिकारी को भी नियुक्त किया गया है।
भारत: सक्रिय कंपनियों की संख्या-14,44,572 हुईं
अकांशु उपाध्याय नई दिल्ली। अर्थव्यवस्था के तेजी से पटरी पर लौटने का प्रमाण है कि पिछले वर्ष दिसंबर में कंपनी अधिनियम के तहत 13,311 कंपनियां पंजीकृत हुई हैं। जिससे देश में कुल सक्रिय कंपनियों की संख्या बढ़कर 14,44,572 हो गई। कंपनी मामलों के मंत्रालय की ओर से जारी मासिक बुलेटिन के अनुसार, 3,164.19 करोड़ रुपये की अधिकृत पूंजी के साथ दिसंबर 2021 के दौरान कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कुल 13311 कंपनियों को पंजीकृत किया गया। विभिन्न श्रेणियों में पंजीकृत कुल कंपनियों में से 811 एक-व्यक्ति कंपनियां (ओपीसी) हैं। दिसंबर के दौरान कंपनियों के नए पंजीकरण में महाराष्ट्र शीर्ष पर रहा और उसके बाद उत्तर प्रदेश और दिल्ली का स्थान है। बुलेटिन में कहा गया है कि नए पंजीकरणों के आर्थिक गतिविधिवार वर्गीकरण के अनुसार इस समूह में पंजीकृत 3508 कंपनियों के साथ ‘बिजनेस सर्विसेज’ शीर्ष पर है। कुल नए पंजीकरणों में से 13224 कंपनियों की संयुक्त अधिकृत पूंजी 3162.43 करोड़ रुपये रही।
टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी सर्विसेज एलएलपी के विवेक जालान ने कहा कि, नए पंजीकरणों की अधिक संख्या देश की आर्थिक गतिविधियों में आई तेजी का प्रमाण है। कई कंपनियां जो पहले सीधे भारत को निर्यात करती थीं अब देश में अपने कार्यालय खोल रही हैं और नए खरीद नियम के कारण स्थानीय इकाइयां स्थापित कर रही हैं। नए नियम में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी विभागों को केवल उन्हीं कंपनियों से आपूर्ति लेने की आवश्यकता है, जिनके सामान और सेवाओं में 20 प्रतिशत से कम स्थानीय सामग्री नहीं है।
मंत्रालय के बुलेटिन के अनुसार, 31 दिसंबर 2021 तक देश में कंपनी अधिनियम के तहत कुल 22,76,448 कंपनियां पंजीकृत थीं। इनमें से 7,87,953 कंपनियां बंद थीं जबकि 7,014 कंपनियां लिक्विडेशन की प्रक्रिया में थीं। इसी तरह 34,554 कंपनियां रजिस्टर से अलग होने की प्रक्रिया में हैं और 2,355 कंपनियां कंपनी अधिनियम की धारा 455 के अनुसार ‘निष्क्रिय’ हो गई हैं। दो लाख 61 हजार 642 कंपनियों सहित 14,44,572 सक्रिय कंपनियां हैं, जिन्हें पिछले 18 महीनों के भीतर शामिल किया गया है।
कोविड-19 महामारी से अलग हैं ओमिक्रोन: विज्ञानी
अकांशु उपाध्याय नई दिल्ली। विषाणु विज्ञानी डॉ. टी. जैकब जॉन ने कहा है कि ओमीक्रोन कोविड-19 महामारी से कुछ अलग है और इसलिए यह माना जाना चाहिए कि दो महामारियां साथ-साथ चल रही हैं। जॉन ने कहा कि ओमीक्रोन ‘वुहान-डी 614 जी, अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, कप्पा या म्यू द्वारा उत्पन्न नहीं है और यह सुनिश्चित है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के ‘सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी’ के पूर्व निदेशक जॉन ने कहा, ‘मेरी राय में, यह अज्ञात वंश का एक प्रकार है, लेकिन यह वुहान-डी614जी से जुड़ा हुआ है। हम इसे महामारी के आगे बढ़ने के रूप में देखेंगे।’ डी614जी इस प्रोटीन में एक अमीनो एसिड उत्परिवर्तन को संदर्भित करता है। जो दुनियाभर के सार्स-सीओवी-2 वायरस में तेजी से सामान्य हो गया है।
उन्होंने कहा कि ओमीक्रोन कोविड-19 महामारी से कुछ अलग है और इसलिए यह माना जाना चाहिए कि दो महामारियां साथ-साथ चल रही हैं। उन्होंने कहा कि उनके कारण होने वाली बीमारियां भी अलग हैं। एक निमोनिया-हाइपोक्सिया-मल्टीऑर्गन क्षति रोग है, लेकिन दूसरा ऊपरी / मध्य श्वसन रोग है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या तीसरी लहर अपने चरम पर पहुंच गयी है क्योंकि कुछ जगहों पर मामले कम होने लगे हैं, जॉन ने कहा कि महानगरों में पहले विषाणु का संक्रमण शुरू हुआ था और पहले खत्म होगा। उन्होंने कहा कि सभी साथ में एक राष्ट्रीय महामारी हैं। कोरोना वायरस के अत्यधिक संक्रामक स्वरूप ओमीक्रोन से भारत में कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर चल रही है।देश में कोविड-19 के 2,71,202 नये मामले आने के बाद संक्रमण के कुल मामले बढ़कर 3,71,22,164 हो गए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के रविवार के अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक इनमें कोरोना वायरस के ओमीक्रोन स्वरूप के 7,743 मामले भी शामिल हैं।
'क्रिप्टोकरेंसी' को कर दायरे में लाने पर विचार: बजट
अकांशु उपाध्याय नई दिल्ली। सरकार आगामी आम बजट में क्रिप्टोकरेंसी की खरीद-बिक्री को कर के दायरे में लाने पर विचार कर सकती है। कर क्षेत्र के एक विश्लेषक ने यह राय जताई है। नांगिया एंडरसन एलएलपी के कर प्रमुख अरविंद श्रीवत्सन ने कहा कि सरकार आगामी बजट में एक निश्चित सीमा से ऊपर क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री और खरीद पर टीडीएस / टीसीएस लगाने पर विचार कर सकती है और इस तरह के लेनदेन को विशेष लेनदेन के दायरे में लाया जाना चाहिए, ताकि आयकर अधिकारियों को इनकी जानकारी मिल सके।
साथ ही उन्होंने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री से होने वाली आय पर लॉटरी, गेम शो, पहेली की तरह 30 प्रतिशत की उच्च कर दर से कर लिया जाना चाहिए। श्रीवत्सन ने कहा कि इस समय भारत में विश्व स्तर पर क्रिप्टो मालिकों की संख्या सबसे अधिक लगभग 10.07 करोड़ है, और एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारतीयों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी में निवेश बढ़कर 24.1 करोड़ डॉलर तक हो सकता है।उन्होंने आगामी आम बजट पर कहा कि, क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में एक विधेयक पेश किए जाने की उम्मीद थी। हालांकि, इसे पेश नहीं किया गया, और अब उम्मीद है कि सरकार बजट सत्र में इस विधेयक को ला सकती है। अगर सरकार ने भारतीयों को क्रिप्टोकरेंसी में कारोबार से प्रतिबंधित नहीं किया, तो हम उम्मीद करते हैं कि सरकार क्रिप्टोकरेंसी के लिए एक प्रतिगामी कर व्यवस्था ला सकती है।
उन्होंने कहा कि बाजार के आकार, इसमें शामिल राशि और क्रिप्टोकरेंसी के साथ जोखिम को देखते हुए इसके कराधान में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं, जैसे कि उन्हें स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) और स्रोत पर एकत्र कर (टीसीएस) के दायरे में लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री और खरीद दोनों को वित्तीय लेनदेन विवरण (एसएफटी) के दायरे में लाया जाना चाहिए। ऐसा करने से इनकी निगरानी की जा सकेगी। श्रीवत्सन ने कहा कि लॉटरी, गेम शो, पहेली आदि की तर्ज पर क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री से होने वाली आय पर 30 प्रतिशत की उच्च दर से कर लगाना चाहिए।
5 से ज्यादा बार नहीं करना चाहिए 'मास्क' का उपयोग
अकांशु उपाध्याय नई दिल्ली। कोरोना वायरस से बचाव के लिए मास्क पहनना बेहद जरूरी है और इसमें भी एक्सपर्ट खास तौर एन95 मास्क पहनने की सलाह देते हैं। सीडीसी के अनुसार, एन-95 रेस्पिरेटर मास्क का उपयोग 5 बार से ज्यादा नहीं करना चाहिए। कोरोना से बचाने में मास्क सबसे बड़ा हथियार है। वहीं आपको ये भी जानना चाहिए कि एन95 मास्क को आप कितनी बार इस्तेमाल कर सकते हैं और कब आपको इसे बदल देना चाहिए। वहीं, सीडीसी ने लोगों को ये भी सलाह दी है कि चेहरे पर अच्छी तरह से फिट होने वाला मास्क ही पहनें। कई बार लोग एक ही मास्क को कई दिनों तक पहने रहते हैं। वहीं कुछ लोग लूज या अनफिट मास्क पहनते हैं। ऐसा मास्क कोरोना वायरस इंफेक्शन से बचाव नहीं करेगा।
जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के मेडिसिन के असिस्टेंट प्रोफेसर माइकल जी नाइट ने बताया है कि अगर आप 45 मिनट के लिए किसी काम से बाहर जाने के लिए मास्क पहन रहे हैं और फिर उतार देते हैं, तो इसे रीयूज करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन अगर आप पूरे दिन मास्क पहने रहते हैं, तो इस तरह का मास्क दोबारा इस्तेमाल करना नुकसानदायक होगा। अपने पास एक से ज्यादा मास्क रखें और बदल-बदल कर इसे पहनें। लंबे वक्त तक एक ही मास्क पहनकर न रहें।अगर आप दिन में कुछ घंटों के लिए ही मास्क पहनते हैं, तो 4-5 दिन में यह गंदा हो जाएगा।
स्कूल बंद किए जाने को लेकर सवाल खड़ें किए: शिक्षा
अकांशु उपाध्याय नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बीच स्कूल बंद किए जाने को लेकर विश्व बैंक के शिक्षा निदेशक जैमे सावेदरा ने कई सवाल खड़े किए हैं। समाचार एजेंसी पीटीआइ को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि स्कूलों को फिर से खोलने के लिए बच्चों के टीकाकरण की प्रतीक्षा करने का कोई मतलब नहीं है और इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। कोरोना के कारण बच्चों के लिए स्वास्थ्य जोखिम कम है, लेकिन स्कूल बंद करने की लागत बहुत अधिक है। साथ ही कहा कि महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण भारत में बच्चों के अंदर सीखने की कमी 55 से बढ़कर 70 प्रतिशत होने की उम्मीद है।
विश्व बैंक के वैश्विक शिक्षा निदेशक जैमे सावेदरा ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि स्कूलों को फिर से खोलने से कोरोना के मामलों में वृद्धि हुई है और स्कूल ‘सुरक्षित स्थान’ नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सार्वजनिक नीति के नजरिए से बच्चों के टीकाकरण तक इंतजार करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। स्कूल खोलने और कोरोना के प्रसार के बीच कोई संबंध नहीं है। दोनों को जोड़ने का कोई सबूत नहीं है और अब स्कूलों को बंद रखने का कोई औचित्य नहीं है। भले ही कोरोना की नई लहरें हों, स्कूलों को बंद करना ही अंतिम उपाय नहीं होना चाहिए। सावेद्रा ने यह बातें वाशिंगटन से एक साक्षात्कार में समाचार एजेंसी पीटीआइ के माध्यम से कहीं।
उन्होंने यह भी कहा कि रेस्तरां, बार और शापिंग माल को खुला रखने और स्कूलों को बंद रखने का कोई मतलब नहीं है। यह कोई बहाना नहीं है।विश्व बैंक के विभिन्न सिमुलेशन के अनुसार अगर स्कूल खोले जाते हैं तो बच्चों के लिए स्वास्थ्य जोखिम कम होता है और बंद होने की लागत बहुत अधिक होती है। उन्होंने कहा कि 2020 से हम अज्ञानता के समुद्र में जा रहे हैं। हमें अभी यह नहीं पता कि महामारी से निपटने का सबसे अच्छा तरीका क्या है और दुनिया के अधिकांश देशों की तत्काल प्रतिक्रिया स्कूलों को बंद करने पर है। तब से समय काफी बीत चुका है और 2020 और 2021 के अंत से आने वाले सबूतों के साथ हमारे पास कई कोरोना की लहरें हैं और ऐसे कई देश भी हैं। जिन्होंने स्कूल खोले हैं। हम यह देखने में सक्षम हैं कि क्या स्कूलों के खुलने से वायरस के संचरण पर प्रभाव पड़ा है और नए डेटा से पता चलता है कि ऐसा नहीं होता है। कई देशों में कोरोना की लहरें तब आई हैं जब स्कूल बंद थे, इससे जाहिर है कि कुछ कोरोना के मामलों में बढोतरी में स्कूलों की कोई भूमिका नहीं रही है।
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