शनिवार, 15 जनवरी 2022

पलायन 'संपादकीय'

पलायन     'संपादकीय'  
यह तो मेरा ही है बाबा, गेहूं-चावल सब राशन, 
जिब्हा पर गांठ बांध लो, इस पर ना हो भाषण। 

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। चुनाव की सरगर्मियां अपने चरम पर पहुंच चुकी है। चुनाव समर क्षेत्र में सभी महारथी विजय प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के दांव-पेंच और हथकंडे आजमा रहे हैं। द्वंद में प्रतिद्वंदी को पटखनी देने के लिए तत्पर है। इसी कड़ी में लगभग सभी दलों के द्वारा प्रथम चरण के मतदान वाले प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी गई है। 
सत्तारूढ़ भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ गिरता जा रहा है। जिसके पीछे महामारी, महंगाई और बेरोजगारी को बड़ा कारण माना जा रहा है। इसी कारण भाजपा से जनता का मोह भंग हो रहा है। उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से भाजपा ने सरकार का गठन कर लिया और बिना किसी रूकावट के पंचवर्षीय योजना का निर्वहन भी कर लिया। परंतु आचार संहिता लागू होते ही स्वेच्छाचारी या असंतुष्ट मंत्री और विधायको ने पार्टी से पलायन शुरु कर दिया। पार्टी प्रवक्ताओं के द्वारा तरह-तरह के जवाब दिए गए। जिनके आधार पर असंतोष की भावना प्रकट हुई है। मंत्री और विधायकों के पलायन से जनता में एक सीधा और स्पष्ट संदेश भी गया है। साधारण भाषा में भाजपा की नीतियों से जनता में आक्रोश व्याप्त है। आक्रोश की परिधि का दायरा बढ़ता देखकर समझदार राजनेताओं ने अपना मार्ग बदल लिया है। बल्कि, यूं कहिए अपना राजनीतिक कैरियर बचाने के लिए अन्य दलों का सहारा लिया जा रहा है। इसमें कहीं ना कहीं निराशा और असंतोष के कारण भाजपा परिवार बिखर रहा है। बिखरते संगठन को नियंत्रित करने की अभिलाषा में शीर्ष नेतृत्व ने स्वयं को असमंजस में फंसा हुआ महसूस किया। इसी कारण 'टिकट काटो' अभियान बंद कर दिया गया और पुराने चेहरों पर फिर से दांव लगा दिया गया। इसमें नेतृत्व का अभाव प्रतीत किया जा रहा है। क्योंकि जहां पर प्रत्याशी का बदलना जरूरी था, वहां पर उसे पुनः प्रत्याशी घोषित करना, दबाव में लिया गया एक फैसला है। जिसके परिणाम पूर्व से निर्धारित है, जिसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ेगा। 
वर्तमान विधायकों में कईयों के टिकट निश्चित रूप से कटने थे, लेकिन संगठन को विकृत होने के भय से बचाने के प्रयास में कई सीटों पर स्वयं पराजय स्वीकार कर ली गई है। वर्तमान सरकार में धर्मवाद-जातिवाद आधारित राजनीति "स्वच्छ राजनीति" पर हावी रही है। जिससे जनता का विभाजन कर पाना आसान रहा। किंतु नीतिगत रूप से एक वर्ग का शोषण भी हुआ है। वर्तमान चुनाव में मतदान का आधार जनता की मूल समस्या, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार एवं आर्थिक सुधार को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। संप्रदायिकता, धार्मिक भावना आधारित भाषण से जनता को बरगलाने की कोशिश इस बार नाकाम रहेगी। लंबे समय से समस्या से जूझता मध्यमवर्गीय, निम्न वर्गीय व्यापारी और मजदूर वर्ग का भाजपा से मन भर चुका है। विकल्प चाहे कोई भी रहे, परंतु भाजपा स्वीकार नहीं है। केवल अपराध नियंत्रण के अलावा सरकार कुछ भी साबित कर पाने में असफल है। 
मुफ्त में राशन वितरण योजना मात्र एक दिखावा है। इससे जनता का क्या भला हो सकता है? युवा वर्ग बेरोजगारी की पीड़ा से आहत है। जिसका मुख्य कारण है भाजपा से अलगाव। यदि भाजपा युवा वर्ग को संतुष्ट कर पाने में सफल हो पाती तो आज इस मुकाम पर नहीं पहुंचती। परिणाम स्वरूप भाजपा के घर में ही 'पलायन' का हंगामा शुरू हो गया है। तमाशा देख कर जनता खिलखिला कर हंस रही है। जनता इस बात का भी एहसास कर रही है कि बहुत दिनों के बाद "अच्छे दिन" आए हैं और मौका जो मिला है...
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you, for a message universal express.

'पीएम' मोदी ने विपक्ष पर तीखा हमला बोला

'पीएम' मोदी ने विपक्ष पर तीखा हमला बोला  इकबाल अंसारी  नई दिल्ली। संसद सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर...