मंगलवार, 18 जनवरी 2022

मैच: वनडे सीरीज की तैयारी में जुटीं 'भारतीय' टीम

मैच: वनडे सीरीज की तैयारी में जुटीं 'भारतीय' टीम      
मोमीन मलिक         
नई दिल्ली/ प्रिटोरिया। दक्षिण अफ्रीका से टेस्ट सीरीज में मिली करारी हार के बाद भारतीय टीम वनडे सीरीज की तैयारी में जुट गई है। टीम इंडिया टेस्ट सीरीज में मिली हार को भूलाकर वनडे सीरीज जीतना चाहेगी। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच पहला वनडे 19 जनवरी से बोलैंड पार्क में खेला जाएगा। वनडे सीरीज से पहले खिलाड़ी मैदान में अभ्यास कर पसीना बहाते नजर आ रहे हैं। बीसीसीआई ने टीम इंडिया की कुछ तस्वीरें ट्विटर पर शेयर की है।
बीसीसीआई के द्वारा तस्वीरों में कोच राहुल द्रविड़ और कप्तान केएल राहुल टीम के बाकी सदस्यों के साथ मैच प्लानिंग करते नजर आ रहे हैं। पूर्व कप्तान विराट कोहली भी एक तस्वीर में कोच और कप्तान की समझाइश को ध्यान से सुनते दिखाई दे रहे है। भारत-दक्षिण अफ्रीका के बीच अब तक 84 वनडे मैच खेले गए हैं। इनमें टीम इंडिया को 35 मैच में जीत हासिल हुई है। जबकि 46 मैचों में दक्षिण अफ्रीका जीता है। 3 मैचों में कोई नतीजा नहीं निकला है। जीत से ज्यादा मिली है हार।
भारतीय टीम ने अब तक दक्षिण अफ्रीका में 34 वनडे मैच खेले हैं। इनमें केवल 10 मैच में टीम इंडिया को जीत मिली है, जबकि प्रोटियाज टीम को 22 में जीत हासिल हुई है। यहां 2 मैच बेनतीजा रहे हैं। जानिए, कितने बजे से कहां खेले जाएंगे मैच। इस सीरीज का पहला मैच 19 जनवरी को बोलैंड पार्क, पार्ल में खेला जाएगा। दूसरा मैच 21 जनवरी को होगा। यह भी बोलैंड पार्क में ही खेला जाएगा। तीसरा मुकाबला 23 जनवरी को न्यूलैंड्स क्रिकेट ग्राउंड, केपटाउन में होगा। सभी मैच दोपहर 2 बजे शुरू होंगे।

बारूद जैसे पदार्थ को निष्क्रिय कर सकता हैं 'सदाफूली' 
सरस्वती उपाध्याय            सदाफूली या सदाबहार या सदा सुहागिन बारहों महीने खिलने वाले फूलों का एक पौधा है। इसकी आठ जातियां हैं। इनमें से सात मेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है। भारत में पाई जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस है। सदाफूली में सबसे चमत्कृत करने वाली बात है कि यह बारूद जैसे पदार्थ को भी निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है। मेडागास्कर मूल की यह फूलदार झाड़ी भारत में कितनी लोकप्रिय है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि लगभग हर भारतीय भाषा में इसको अलग नाम दिया गया है- उडिय़ा में अपंस्कांति, तमिल में सदाकाडु मल्लिकइ, तेलुगु में बिल्लागैन्नेर्स, पंजाबी में रतनजोत, बांग्ला में नयनतारा या गुलफिरंगी, मराठी में सदाफूली और मलयालम में उषामालारि। 
विकसित देशों में रक्तचाप शमन की खोज से पता चला कि  सदाबहार  झाड़ी में यह क्षार अच्छी मात्रा में होता है। इसलिए अब यूरोप भारत चीन और अमेरिका के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है। अनेक देशों में इसे खांसी, गले की खऱाश और फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है। सबसे रोचक बात यह है कि इसे मधुमेह के उपचार में भी उपयोगी पाया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सदाबहार में दर्जनों क्षार ऐसे हैं जो रक्त में शकर की मात्रा को नियंत्रित रखते है।  जब शोध हुआ तो सदाबहार के अनेक गुणों का पता चला - सदाबहार पौधा बारूद - जैसे विस्फोटक पदार्थों को पचाकर उन्हें निर्मल कर देता है। यह कोरी वैज्ञानिक जिज्ञासा भर शांत नहीं करता, बल्कि व्यवहार में विस्फोटक-भंडारों वाली लाखों एकड़ ज़मीन को सुरक्षित एवं उपयोगी बना रहा है। भारत में ही  केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान  द्वारा की गई खोजों से पता चला है कि  सदाबहार की पत्तियों म विनिकरस्टीन  नामक क्षारीय पदार्थ भी होता है जो कैंसर, विशेषकर रक्त कैंसर (ल्यूकीमिया) में बहुत उपयोगी होता है। आज यह विषाक्त पौधा संजीवनी बूटी का काम कर रहा है। बगीचों की बात करें तो 1980 तक यह फूलोंवाली क्यारियों के लिए सबसे लोकप्रिय पौधा बन चुका था, लेकिन इसके रंगों की संख्या एक ही थी- गुलाबी। 1998 में इसके दो नए रंग ग्रेप कूलर (बैंगनी आभा वाला गुलाबी जिसके बीच की आंख गहरी गुलाबी थी) और पिपरमिंट कूलर (सफेद पंखुरियां, लाल आंख) विकसित किए गए।
 वर्ष 1991 में रॉन पार्कर की कुछ नई प्रजातियां बाज़ार में आईं। इनमें से प्रिटी इन व्हाइट और पैरासॉल को आल अमेरिका सेलेक्शन पुरस्कार मिला। इन्हें पैन अमेरिका सीड कंपनी द्वारा उगाया और बेचा गया। इसी वर्ष कैलिफोर्निया में वॉलर जेनेटिक्स ने पार्कर ब्रीडिंग प्रोग्राम की ट्रॉपिकाना शृंखला को बाज़ार में उतारा। इन सदाबहार प्रजातियों के फूलों में नए रंग तो थे ही, आकार भी बड़ा था और पंखुरियं एक दूसरे पर चढ़ी हुई थीं। 1993 में पार्कर जर्मप्लाज्म ने पैसिफक़ा नाम से कुछ नए रंग प्रस्तुत किए। जिसमें पहली बार सदाबहार को लाल रंग दिया गया। इसके बाद तो सदाबहार के रंगों की झड़ी लग गई और आज बाज़ार में लगभग हर रंग के सदाबहार पौधों की भरमार है।
 यह फूल सुंदर तो है ही आसानी से हर मौसम में उगता है, हर रंग में खिलता है और इसके गुणों का भी कोई जवाब नहीं, शायद यही सब देखकर नेशनल गार्डेन ब्यूरो ने सन 2002 को इयर आफ़ विंका के लिए चुना। विंका या विंकारोज़ा, सदाबहार का अंग्रेज़ी नाम है।

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