बुधवार, 5 जनवरी 2022

शैलाब की बूंद 'संपादकीय'

शैलाब की बूंद   'संपादकीय'
ससवार गिरा करते है जंग-ए-मैदान में,
वो क्या गिरेंगे जो पहले ही घुटनों के बल हैं।
एक बूंद शैलाब लाने के लिए प्रयाप्त होती हैं। यह एक फिर प्रमाणित हुआ, आपने यह सब प्रतीत किया, आप सभी इसके साक्षी भी हैं। भारत सरकार की किसान विरोधी नीति के विरुद्ध पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का किसान समुदाय लामबंद हो गया। 
दमनकारी नीतियों के कारण किसान नेता और पश्चिम उत्तर प्रदेश के धरनारत किसानों का नेतृत्व करने वाले राकेश टिकैत पर ज्यादती के बाद पीडा की बूंद आंखों से बह गई। किसान आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस और कानून प्रवर्तन के द्वारा वाटर कैनन व आसुगैस का उपयोग किया गया। जिसके कारण जन आक्रोश बढ गया और आंदोलन देखते ही देखते क्रांति का रुप धारण करने लगा। 26 नवंबर 2021 को राष्ट्रव्यापी आंदोलन में मिडिया रिपोर्ट के अनुसार 25 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया। कई लाख लोग राष्ट्रीय राजधानी की सीमा पर एकत्रित हुए। पांच सौ से अधिक संगठन इस आंदोलन मे शरीक थे।
भारत सरकार दमनकारी नीतियों का पर्दापण स्पष्ट तो हुआ, साथ में धरनारत किसानों का शैलाब आ गया। शैलाब के बढते वेग की गति से उदगम भावी परिणाम के मात्र अनुमान से केंद्र सरकार की नींव हिल गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की देखरेख करनेवाले प्रधानमंत्री ने अपने बनाए गये कानून को वाफिस करने की घोषणा यदि मात्र औपचारिकता ही है, तो भी सरकार घुटनों के बल आ गई।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव निकट है, किसान एवं पिछड़ा वर्ग भाजपा से अलगाव की तरफ बढ़ रहा हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
राधेश्याम  'निर्भयपुत्र'

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