अमेरिका: भविष्य की रणनीति, बदलाव की संभावना
अखिलेश पांडेय वाशिंगटन डीसी। अमेरिका में जो बाइडन प्रशासन ने रूस को नयी जोरदार चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर रूस, यूक्रेन पर हमला करने की दिशा में आगे बढ़ता है तो उस पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे। अमेरिकी अधिकारियों ने यूरोप में अमेरिका की भविष्य की रणनीति की स्थिति के बारे में निर्णयों में लगातार बदलाव की संभावना जताई है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अगर रूस यूक्रेन में हस्तक्षेप करता है तो उसे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। अधिकारियों ने कहा कि प्रशासन यूक्रेन में भविष्य में मिसाइलों की संभावित तैनाती को कम करने और पूर्वी यूरोप में अमेरिका और नाटो के सैन्य अभ्यासों को सीमित करने पर रूस के साथ चर्चा के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि रूस को यूक्रेन में हस्तक्षेप करने पर आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना होगा।
इनमें रूसी संस्थाओं पर प्रत्यक्ष प्रतिबंधों के अलावा अमेरिका से रूस को निर्यात किए जाने वाले उत्पादों और विदेश निर्मित उत्पादों पर महत्वपूर्ण प्रतिबंध शामिल हो सकते हैं जो संभावित रूप से अमेरिकी क्षेत्राधिकार में आते हैं। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब यूक्रेन को लेकर बढ़ते तनाव के बीच सोमवार को स्विट्जरलैंड में वरिष्ठ अमेरिकी और रूसी अधिकारियों की बैठक होनी है। अधिकारियों ने कहा कि अमेरिका उन वार्ताओं में अपने यूरोपीय सुरक्षा रुख के कुछ सीमित पहलुओं पर चर्चा करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि इस बात की कोई संभावना नहीं है कि रूस की मांग के अनुरूप अमेरिका पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य उपस्थिति या हथियारों को कम करेगा। ऊर्जा और उपभोक्ता वस्तुओं पर प्रतिबंधों के अलावा अमेरिका और उसके सहयोगी अमेरिकी उपकरणों का उपयोग करने वाले उन्नत इलेक्ट्रॉनिक पुरज़ों, सॉफ्टवेयर और संबंधित प्रौद्योगिकी के रूस को निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं।अधिकारियों ने कहा कि निर्यात नियंत्रण उद्देश्यों के लिए रूस को क्यूबा, ईरान, उत्तर कोरिया और सीरिया के साथ प्रतिबंधात्मक समूह में शामिल किया जा सकता है। इसका मतलब यह होगा कि इस क्षेत्र में अमेरिका का सॉफ्टवेयर, प्रौद्योगिकी और उपकरणों में वैश्विक प्रभुत्व होने के कारण, एकीकृत सर्किट और एकीकृत सर्किट वाले उत्पादों को प्राप्त करने की रूस की क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित होगी, जिसका असर एयरक्राफ्ट एवियोनिक्स, मशीन टूल्स, स्मार्टफोन, गेम कंसोल, टैबलेट और टीवी तक हो सकता है।
इस तरह के प्रतिबंध महत्वपूर्ण रूसी उद्योग को भी लक्षित कर सकते हैं, जिसमें इसके रक्षा और नागरिक उड्डयन क्षेत्र शामिल हैं, जो रूस की कृत्रिम बुद्धि या क्वांटम कंप्यूटिंग में उच्च-तकनीकी महत्वाकांक्षाओं को प्रभावित करेगा। जिनेवा में अमेरिका और रूस के बीच सोमवार को होने वाली सामरिक और सुरक्षा वार्ता से पहले एक अधिकारी ने शनिवार को कहा, ”हमें लगता है कि हम कम से कम रूसियों के साथ प्रगति की संभावना तलाश सकते हैं। सोमवार की बैठक के बाद बुधवार को रूस और नाटो के सदस्यों के बीच और बृहस्पतिवार को यूरोपीय लोगों के साथ चर्चा होगी।
भारतीय तटरक्षकों ने पाकिस्तानियों को पकड़ा
सुनील श्रीवास्तव
इस्लामाबाद। पाकिस्तान अपनी आदत से बाज नहीं आ रहा है। पोरबंदर में भारतीय तटरक्षकों ने रविवार को दस पाकिस्तानियों को भारतीय जल सीमा में पकड़ा है और यह सब तब हुआ जब तटरक्षक जहाज ‘अंकित’ ने शनिवार रात अरब सागर में अपने ऑपरेशन के दौरान एक पाकिस्तानी नाव ‘यासीन’ को पकड़ा है। इस नाव में चालक दल के साथ पाकिस्तानी सवार थे।
दरअसल, न्यूज एजेंसी ने बताया कि पाकिस्तानी नाव भारतीय जलक्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश कर रही थी। फिलहाल भारतीय तटरक्षक बल के अधिकारियों ने कहा है कि पाकिस्तानी चालक दल को पूछताछ के लिए पोरबंदर लाया जा रहा है।
अधिकारियों के मुताबिक पाकिस्तानी नाव भारतीय जल क्षेत्र के अंदर छह से सात मील की दूरी में प्रवेश कर चुकी थी। जैसे ही भारतीय तटरक्षक जहाज को पाकिस्तानी नाव ने देखा वे वापस भागने लगे, इसके बाद उनको पकड़ा गया।
बता दें कि इससे पहले शुक्रवार को ही बीएसएफ ने पंजाब के फिरोजपुर जिले में सीमा पर पाकिस्तान की नाव पकड़ी गई थी। बीएसएफ के एक अधिकारी ने बताया था कि पेट्रोलिंग के दौरान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर नाव पकड़ी गई थी। ऐसे नाव के इस्तेमाल से ड्रग्स की खेप पहुंचाई जाती है।
ठंड के दिनों में पाकिस्तानी घने कोहरे का फायदा उठाकर ड्रग्स की सप्लाई करते हैं।पंजाब में तो हाल के दिनों में पाकिस्तान के कई सारे ड्रोन भी पकड़े गए हैं। पिछले महीने इंडियन कोस्ट गार्ड और गुजरात एटीएस ने एक संयुक्त अभियान चलाकर पाकिस्तानी नौका को भारतीय समुद्री सीमा में पकड़ा था। इसकी तलाशी के दौरान इसमें 77 किलो हेरोइन बरामद की गई थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत करीब 400 करोड़ रुपये आंकी गई। इस दौरान पाकिस्तानी नौका से 6 लोगों को भी पकड़ा गया था।
अंतरिक्ष को लेकर अमेरिका-चीन में जंग के हालात
अखिलेश पांडेय
वाशिंगटन डीसी। अंतरिक्ष की दुनिया में अमेरिका और चीन के बीच रेस शुरू हो चुकी है। दोनों देशों के बीच अब अंतरिक्ष को लेकर जंग छिड़ती दिखाई दे रही है। चांद को लेकर अमेरिका और चीन के बीच प्रतिद्वंदिता नजर आ रही है। अमेरिका के नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपोलो 11 मिशन के तहत 20 जुलाई 1969 को पहली बार चांद पर कदम रखा था। इसके बाद अमेरिका ने अगले तीन साल तक अंतरिक्षयात्रियों के साथ कई अपोलो यान को चांद पर भेजा। लेकिन अमेरिका को लगा कि यह मिशन खर्चीला है और उसे चांद से कुछ फायदा नहीं होने वाला है, तो उसने चंद्रयात्राओं का बंद कर दिया।
साल 1972 में आखिरी अपोलो यान चांद पर गया था। अब एक बार फिर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा मून मिशन की तैयारी में जुट गई है। अब आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत मानव रहित अंतरिक्ष यान को चांद पर भेजेगा जिसे फिर वापस धरती लाने की योजना है। अमेरिका अब चांद पर स्थायी रूप से डेरा जमाने की तैयारी शुरू कर रहा है। अमेरिका के इस मिशन में दुनिया की तीन बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियां उसके साथ हैं। इन तीनों एजेंसियों का संबंध यूरोप, कनाडा और जापान से हैं। आर्टेमिस मिशन के लिए नासा ने इस अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ समझौता किया है।
इन तीनों स्पेस एजेंसियों के अलावा नासा ने और भी कई देशों के साथ आर्टेमिस समझौता किया है जिनमें मेक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, इटली, यूक्रेन, पोलैंड और लग्जेमबर्ग की स्पेस एजेंसियां शामिल हैं। इस समझौते के मुताबिक, वैज्ञानिक प्रयोगों और चंद्र-संसाधनों के दोहन में उनकी भी साझेदारी हो सकती है।
हालांकि रूस ने इस समझौते से दूरी बनी ली है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस ने इस अभियान के अमेरिका-केंद्रित होने की वजह से अपने हाथ पीछे खींच लिए। रूस को लगता है कि चीन के साथ मिलकर एक समानांतर चंद्र-अभियान में शामिल होना बेहतर विकल्प हो सकता है।
चंद्रमा से जुड़े प्रयोगों में चीन दुनिया के दूसरे देशों से बहुत आगे हैं। इस सदी में चीन ने चांद पर सफलता पूर्वक अपना रोवर उतारा, लंबे समय तक ज़मीनी प्रेक्षण किया और चंद्रमा से एक किलो 731 ग्राम नमूने ले आया है। इसके अलावा चीन के दो रोवर- झूरोंग और यूटू-2 अभी भी चांद उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका 2035 में चांद पर अपने ठिकाना बनाने का अपना लक्ष्य हासिल कर लेगा। दोनों अभियानों के प्रस्ताव के मुताबिक, अमेरिका चंद्रमा की सतह की जगह उसकी कक्षा में अपना अड्डा बनाना चाहता है, तो वहीं चीन सतह पर ही अपना बेस कैंप तैयार करना चाहता है। अब ऐसा लगा रहा है कि चंद्रमा में चीन की बढ़ती दिलचस्पी को देखकर अमेरिका इस तरफ लौट रहा है। अमेरिका को चंद्रमा पर मिलने वाला एक खनिज हीलियम आर्थिक दृष्टि से आकर्षित कर रहा है। चंद्रमा से हीलियम को लाना इतना आसान नहीं है। इसके अलावा कई और भी चीजें हैं जो अमेरिका को चंद्रमा की तरफ आकर्षित कर रही हैं। आने वाले दिनों में चांद को लेकर चीन और अमेरिका के बीच प्रतिद्वंदिता तेज हो सकती है।
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