यूपी: 15 फरवरी तक बंद रहेंगे स्कूल-कॉलेज, फैसला
संंदीप मिश्र लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अब 15 फरवरी तक स्कूल-कॉलेज बंद रहेंगे। प्रदेश में कोरोना के खतरे के मद्देनज़र सरकार ने यह फैसला लिया है। इसके पहले सरकार ने 30 जनवरी तक के लिए स्कूल-कॉलेज बंद किए थे। प्रदेश के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी की तरफ से जारी आदेश के अनुसार सभी स्कूल-कॉलेजों को 15 फरवरी तक बंद किया गया है।हालांकि, इस दौरान ऑनलाइन कक्षाएं चलती रहेंगी। नए आदेश के अनुसार स्कूल-कॉलेजों की बंदी के दौरान ऑनलाइन कक्षाएं चलती रहेंगी। उत्तर प्रदेश में इसके पहले भी कम से कम दो बार स्कूलों की बंदी की मियाद बढ़ाई जा चुकी है। पहले 16 जनवरी तक स्कूल बंद किए गए थे।
बाद में इसे बढ़ाकर एक बार 23 जनवरी और दूसरी बार 31 जनवरी किया गया। कोरोना के मामलों को देखते हुए अब एक बार फिर यूपी सरकार ने स्कूलों की बंदी की तारीख बढ़ाने का फैसला लिया है।गौरतलब है कि कोरोना के चलते यूपी के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सेमेस्टर परीक्षाएं पहले ही स्थगित की जा चुकी हैं।
मानवाधिकारों की मौजूदा स्थिति पर चिंता: उपराष्ट्रपति
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और अमेरिका के चार सांसदों ने भारत में मानवाधिकारों की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताई है। अमेरिकी सीनेटर एड मार्के ने कहा, ‘एक ऐसा माहौल बना है, जहां भेदभाव और हिंसा जड़ अपनी मजबूत पकड़ बना सकती है। हाल के वर्षों में हमने ऑनलाइन नफरत भरे भाषणों और नफरती कृत्यों में वृद्धि देखी है। इनमें मस्जिदों में तोड़फोड़, गिरजाघरों को जलाना और सांप्रदायिक हिंसा भी शामिल है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर मार्के का भारत विरोधी रुख अपनाने का इतिहास रहा है, उन्होंने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले शासन के दौरान भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते का भी विरोध किया था। मार्के ने भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद द्वारा आयोजित एक पैनल चर्चा में यह बयान दिया। भारत से डिजिटल तरीके से इस चर्चा में भाग लेते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति अंसारी ने भी हिंदू राष्ट्रवाद की बढ़ती प्रवृत्ति पर अपनी चिंता व्यक्त की।
अंसारी ने आरोप लगाया, ‘हाल के वर्षों में हमने उन प्रवृत्तियों और प्रथाओं के उद्भव का अनुभव किया है, जो नागरिक राष्ट्रवाद के सुस्थापित सिद्धांत को लेकर विवाद खड़ा करती हैं और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक नई एवं काल्पनिक प्रवृति को बढ़ावा देती हैं। वह नागरिकों को उनके धर्म के आधार पर अलग करना चाहती हैं, असहिष्णुता को हवा देती हैं और अशांति एवं असुरक्षा को बढ़ावा देती हैं।
चर्चा में तीन सांसदों जिम मैकगवर्न, एंडी लेविन और जेमी रस्किन ने भी हिस्सा लिया। रस्किन ने कहा, ‘भारत में धार्मिक अधिनायकवाद और भेदभाव के मुद्दे पर बहुत सारी समस्याएं हैं। इसलिए हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भारत हर किसी के लिए धार्मिक स्वतंत्रता, स्वतंत्रता, बहुलवाद, सहिष्णुता और असहमति का सम्मान करने की राह पर बना रहे।
लेविन ने कहा, ‘अफसोस की बात है कि आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र पतन, मानवाधिकारों का हनन और धार्मिक राष्ट्रवाद को उभरते देख रहा है। 2014 के बाद से भारत लोकतंत्र सूचकांक में 27 से गिरकर 53 पर आ गया है और ‘फ्रीडम हाउस’ ने भारत को ‘स्वतंत्र’ से ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ श्रेणी में डाल दिया है।
भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के ‘टॉम लैंटोस मानवाधिकार आयोग’ के सह-अध्यक्ष मैकगवर्न ने कई चेतावनी भरे संकेत सूचीबद्ध किए, जो भारत में मानवाधिकारों के ‘खतरनाक रूप से पतन’ को दर्शाते हैं। वहीं भारत सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इन आरोपों का खंडन करती रही है।
यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायतों पर नाराजगी: एचसी
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायतों को लेकर नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा है कि इस तरह की घटनाएं अपराध की गंभीरता को कमतर करती हैं और महिला सशक्तीकरण के प्रयासों में बाधा डालती हैं। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने याचिकाकर्ता असिस्टेंट प्रोफेसर के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि झूठे आरोपों से यौन उत्पीड़न के वास्तवित पीड़ितों द्वारा दर्ज शिकायतों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। न्यायमूर्ति प्रसाद ने अपने फैसले में कहा, ‘यह अदालत इस बात पर खेद व्यक्त करती है कि कैसे एक व्यक्ति के आचरण के खिलाफ नाखुशी जताने के लिए आईपीसी की धारा 354ए और धारा 506 का दुरुपयोग कर तुरंत झूठी शिकायतें दर्ज करा दी जाती हैं।
उन्होंने कहा कि झूठी शिकायतें सिर्फ यौन अपराधों की गंभीरता को कमतर करती हैं। ये शिकायतें हकीकत में यौन अपराधों का सामना करने वाली हर पीड़िता की ओर से दर्ज शिकायत को संदेह के दायरे में लाती हैं, जिससे महिला सशक्तीकरण के प्रयास बाधित होते हैं।’ याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित अवैध निर्माण को लेकर पड़ोसी के साथ हुए विवाद के बाद प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि जब उसने शिकायतकर्ता पड़ोसी के खिलाफ उसे और उसकी पत्नी को धमकाने व गाली-गलौज करने की शिकायत दर्ज कराई तो जवाब में शिकायतकर्ता ने उसके खिलाफ यौन उत्पीड़न से जुड़ी धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करा दी। अदालत ने कहा, ‘रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर गौर करने से पता चलता है कि प्राथमिकी की सामग्री ‘संदेहास्पद’ थी और इसमें ‘अपराध को लेकर कोई विवरण’ नहीं दिया गया था।
इससे प्रथम दृष्टया संकेत मिलता है कि प्राथमिकी ‘बेबुनियाद आरोपों और विरोधाभासी बयानों’ पर आधारित है।’ उच्च न्यायालय ने कहा, ‘मामले के विस्तृत अध्ययन से पता चलता है कि रद्द हुई प्राथमिकी महज एक ‘जवाबी कार्रवाई’ थी। इसे दायर करने का एकमात्र मकसद याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी पर शिकायकर्ता व उसके परिवार के खिलाफ दर्ज शिकायत को पास लेने का दबाव बनाना था।
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने पड़ोस में हुए निर्माण को लेकर कई शिकायतें दर्ज कराई थीं और इससे स्पष्ट है कि त्वरित एफआईआर प्रतिशोध लेने की नीयत से लिखाई गई थी। अदालत ने कहा कि वह कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए संबंधित प्राथमिकी को रद्द करती है।
पीएम मोदी ने टाटा संस के अध्यक्ष से मुलाकात की
अकांशु उपाध्याय नई दिल्ली। टाटा संस के अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन ने बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। यह मुलाकात टाटा समूह द्वारा एअर इंडिया एक्सप्रेस का आधिकारिक रूप से अधिग्रहण किए जाने से पहले हुई। बाद में चंद्रशेखरन ने एअर इंडिया के मुख्यालय का दौरा भी किया। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के हवाले से मोदी और चंद्रशेखरन की मुलाकात की एक तस्वीर ट्विटर पर साझा की गई और कहा गया कि, टाटा संस के अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।
टाटा समूह ने पिछले साल अक्टूबर में एअर इंडिया एक्सप्रेस के साथ एअर इंडिया और एआईएसएटीएस में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए बोली लगाई थी। गौरतलब है कि टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टैलेस प्राइवेट लिमिटेड ने आठ अक्टूबर, 2021 को कर्ज में डूबी एअर इंडिया के अधिग्रहण के लिए 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी।
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