नाएप्यीडो। म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष मानवीय मामलों के अधिकारी ने बृहस्पतिवार को कहा कि एशियाई राष्ट्र के लोग “गंभीर संकट” में रह रहे हैं, जहां इस स्तर की गरीबी कम से कम पिछले 20 वर्षों में नहीं देखी गई है। एंड्र्यू किर्कवुड ने संवाददाताओं को ऑनलाइन ब्रीफिंग में बताया कि एक फरवरी को देश पर सेना के कब्जे के बाद से वहां सहायता की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या तीन गुना बढ़कर 30 लाख हो गई है। जबकि कुल दो करोड़ लोग गरीबी में जी रहे हैं, या लगभग आधी आबादी।
देश के सबसे बड़े शहर यांगून से किर्कवुड ने कहा कि यह संकट, बढ़ते सांप्रदायिक संघर्ष, देश की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के सैन्य तख्तापलट और कोरोना वायरस महामारी का परिणाम है। देश में इस गर्मी में संक्रमण की “विनाशकारी तीसरी लहर” आई थी।
उन्होंने कहा, “इसलिए, प्रभावी रूप से यहां एक संकट है, एक संकट के ऊपर दूसरा संकट है।” मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र की उच्चायुक्त मिशेल बेशलेट और अधिकार समूहों के मुताबिक जब म्यांमा की सेना ने एक फरवरी को आंग सान सू ची की सरकार से सत्ता छीन ली थी, तब उसने बहुत कम सबूतों के साथ दावा किया था कि उनकी पार्टी को पिछले नवंबर में आम चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के जरिये मिली थी।
सैन्य तख्तापलट के खिलाफ सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन हुआ। जिसे सुरक्षा बलों ने कुचलने की कोशिश की। विरोध और विरोध को कुचलने की कोशिश में 1,100 से अधिक लोग मारे गए। किर्कवुड ने कहा, एक फरवरी से संयुक्त राष्ट्र खाद्य और नकद सहायता कार्यक्रम के तहत म्यांमा के आस-पास के ग्रामीण समुदायों के साथ-साथ कुछ शहरी और अर्ध-शहरी केंद्रों में 14 लाख से अधिक लोगों को मदद दी गई।
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