हरिओम उपाध्याय
लखनऊ। उच्च न्यायालय की ओर से दिखाई गई सख्ती के बाद पूर्व सीएम मायावती की टेंशन बढ़ गई है। बसपा के शासनकाल में राजधानी लखनऊ और नोएडा में किए गए स्मारकों के निर्माण में हुए 14 सौ करोड़ रुपए के घोटाले की जांच की रफ्तार तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान अर्थात विजिलेंस ने राजकीय निर्माण निगम के एक सेवानिवृत्त अधिकारी समेत चार लोगों से पूछताछ की है।
विजिलेंस की टीम सिलसिलेवार 16 और अन्य अधिकारियों से अभी पूछताछ करेगी। 4 सप्ताह के भीतर विजिलेंस की ओर से अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र भी दाखिल कर दिए जाएंगे।
दरअसल हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने 14 सौ करोड रुपए के चर्चित स्मारक घोटाले में बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा के मामले में दर्ज कराई गई एफआईआर को रद्द करने से इंकार करते हुए मामले की विवेचना को 4 सप्ताह के भीतर पूरा करने के आदेश दिए हैं। कैबिनेट मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा की ओर से दायर की गई याचिका में बसपा सरकार के दौरान हुए स्मारक घोटाले में वर्ष 2014 के दौरान दर्ज की गई एफआईआर को चुनौती दी गई थी। इस मामले को लेकर याची के अधिवक्ता ने कोर्ट के सम्मुख यह दलील दी थी कि विवेचना पिछले लगभग 7 सालों से चल रही है। लेकिन अभी तक याची के विरूद्ध कोई भी महत्वपूर्ण साक्ष्य जांच टीम को नहीं मिला है। इस आधार पर एफआइआर रदद की जानी चाहिए। उच्च न्यायालय ने याचिका निस्तारित करते हुए 4 सप्ताह के भीतर विवेचना पूरी करने का आदेश दिया है।
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