अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने समाज में बढ़ती हुई धार्मिक कट्टरता के प्रति जो चिंता जाहिर की है। वो एक तरह से तमाम राजनीतिक दलों के लिए ये संदेश है कि वे देश की राजनीति को किस तरफ ले जा रहे हैं। लिहाज़ा ये नसीहत देने के लिए उन्हें स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक व सबसे चर्चित भाषण का सहारा लेना पड़ा।
आमतौर पर न्यायाधीश अपने कोर्टरूम से बाहर सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त करने से बचते हैं लेकिन चीफ जस्टिस रमन्ना की तारीफ इसलिये की जानी चाहिए कि उन्होंने समाज के ऐसे ज्वलंत मुद्दे पर मुखरता से अपनी बात कही है जो सांप्रदायिकता एक सभ्य समाज के लिए आज नासूर बनती जा रही है।
दरअसल,रमन्ना ने रविवार को हैदराबाद के विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन एक्सीलेंस के 22वें स्थापना दिवस समारोह को वर्चुअल तरीके से संबोधित करते हुए ये चिंता जाहिर की है। महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद के 128 साल पहले शिकागो की धर्म-संसद में दिए गए ऐतिहासिक भाषण को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब आज धार्मिक कट्टरवाद उफान पर है। स्वामी विवेकानंद के पुनरुत्थानशील भारत के सपने को सामान्य भलाई और सहिष्णुता के सिद्धांतों तथा धर्म को अंधविश्वासों व कट्टरता से ऊपर रखकर ही प्राप्त किया जा सकता है।
दर्शन का विज्ञान कहता है कि एक महान दार्शनिक भले ही एक अच्छा भविष्यवक्ता न हो लेकिन वह आने वाले समय में होने वाली बड़ी घटनाओं का अहसास पहले ही कर लेता है। विवेकानंद की गिनती भी संसार के ऐसे महान दार्शनिकों में होती है जिन्हें 54 वर्ष पहले यानी 1893 में ही ये आभास हो गया था कि एक दिन धर्म व साम्प्रदायिकता के आधार पर भारत का भी विभाजन हो सकता है। साथ ही उनके विदा होने के बाद 1947 में वही हुआ भी। शायद इसीलिये धर्म संसद में दिए गए अपने भाषण में उन्होंने भविष्य के ऐसे खतरों का उल्लेख किया था।
प्रधान न्यायाधीश ने अपने भाषण में कहा कि “उस समय विवेकानंद ने अपने संबोधन में समाज में निरर्थक सांप्रदायिक मतभेदों से देश व सभ्यता को होने वाले खतरे का विश्लेषण किया था। साथ ही भारत के समतावादी संविधान के निर्माण का कारण बने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए सांप्रदायिक संघर्ष से बहुत पहले ही उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की ऐसी वकालत की थी मानो उन्हें आने वाले समय का पूर्वाभास हो चुका था। विवेकानंद द्वारा की गई धर्म की व्याख्या का जिक्र करते हुए रमन्ना ने कहा- विवेकानंद का दृढ़ विश्वास था कि धर्म का असली सार भलाई और सहिष्णुता में है। धर्म को अंधविश्वास और कट्टरता से ऊपर होना चाहिए। सामान्य भलाई और सहिष्णुता के सिद्धांतों के माध्यम से दोबारा उठ खड़े होने वाले भारत के निर्माण का सपना पूरा करना है तो हमें आज के युवाओं के अंदर स्वामी जी के आदर्शों को स्थापित करने का काम करना चाहिए।
अमेरिका के शिकागो में दिए गए विवेकानंद के उस भाषण ने ही सम्पूर्ण विश्व को भारत के वेद दर्शन को समझने की लालसा पैदा की थी और उस एक भाषण ने ही दुनिया के धार्मिक नक्शे पर भारत की अमित छाप छोड़ी। वेदांत के संबंध में विवेकानंद के अद्भुत ज्ञान-भंडार का उल्लेख करते हुए रमन्ना ने कहा, “स्वामी विवेकानंद के संबोधन ने पूरे विश्व का ध्यान पुरातन भारत के वेदों के दर्शन की तरफ आकर्षित किया था।
उन्होंने व्यावहारिक वेदांत को लोकप्रिय बनाया, क्योंकि यह सभी के लिए प्रेम, करुणा और समान सम्मान का उपदेश देता है। रमन्ना ने ये भी कहा कि स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं और सिद्धांत आने वाले सभी काल के लिए बेहद प्रासंगिक हैं। लेकिन बड़ा सवाल है कि धार्मिक कट्टरता को बढ़ाने वाली ताकतें क्या चीफ जस्टिस की बातों से ले पायेंगी कोई नसीहत।
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