बृजेश केसवानी
प्रयागराज। स्त्री को आनंद की वस्तु समझने वाले सामंती मानसिकता वाले पुरुषों को सबक सिखाने के लिए विशिष्ट कानून बनाने की जरूरत है। एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने और महिलाओं के मन में सुरक्षा एवं संरक्षण की भावना को बढ़ाने के लिए सख्त कानून बनाना ही होगा। उक्त आदेश न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की एकलपीठ ने हर्षवर्धन यादव द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
दरअसल पीड़िता अनुसूचित जाति की एक पुलिस कॉन्स्टेबल है। उसे अपीलकर्ता आरोपी ने होटल में शादी को अंतिम रूप देने और उससे संबंधित दस्तावेज तैयार करने के लिए बुलाया था। हालांकि होटल के कमरे में उसने कथित तौर पर पीड़िता के साथ बलात्कार किया। जिसके बाद महिला ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई और उसने धारा 161 के तहत जांच अधिकारी और धारा 164 सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट को दिए गए बयानों में उक्त प्राथमिकी का समर्थन किया।
आरोपी ने निचली अदालत में उसकी जमानत अर्जी खारिज होने के बाद आपराधिक अपील दायर की थी। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 325 के तहत मामला दर्ज किया गया है। उक्त मामले में न्यायालय ने कहा कि झूठी शादी का वादा हमारे समाज के बड़े हिस्से में शारीरिक शोषण करने के लिए एक महिला पर भावनात्मक दबाव बनाने हेतु दुष्ट पुरुषों का एक प्रभावी उपकरण है।
याची की अपील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि शादी का झूठा वादा कर यौन संबंध की सहमति प्राप्त करने को तथ्य की गलत धारणा के तहत दी गई सहमति के रूप में मानना चाहिए और इसे बलात्कार के समान अपराध ही मानना चाहिए। अदालत मूकदर्शक बनकर ऐसे लोगों को लाइसेंस नहीं दे सकती है। जो निर्दोष लड़कियों का शोषण करने और शादी का झूठा वादा कर उनके साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you, for a message universal express.