शनिवार, 17 जुलाई 2021

हलक़ में अटकी जान 'संपादकीय'

हलक़ में अटकी जान   'संपादकीय'
फांकों से तंग आकर, अंगूठी भी बेंच दी।
गुरबत का सांप तेरी, निशानी निगल गया।
अवसाद और उन्माद से ग्रसित आदमी नव सृजित वर्तमान व्यवस्था को आत्मसात नहीं कर पा रहा है। मंहगाई की मार से बेहाल आम आदमी‌ फटेहाल जीवन के हर पल को बिकल भाव जी रहा हैं। जिन्दगी जीने के संसाधन के अभाव में तडपन भरे आलम में सिसक‌-सिसक कर जीवन जी रहा है। जान लेवा बीमारी ,महामारी, भ्रष्टाचार में डूबी व्यवस्था, सरकारी तंत्र, इस भयानक महंगाई में भी खुलेआम काला बाजारी जारी हैं। आम आदमी पर मुसीबत का पहाड़ टूटा है, हलक़ में जान अटकी हैं। 
गुंडा-माफिया पनाह मांग लिये तो सियासतदार ही वसूल रहे है रंगदारी। जहर होती जिन्दगी का शकून गायब‌ होता जा रहा है।पशुओं की बात छोड़ दी जाये तो कौन ऐसा नहीं जो आज के परिवेश में नहीं रोता है? आजादी के सत्तर साल बाद मिसाल बनकर सत्ता पर काबिज सरकार का कारनामा‌ जहां अयोध्या मे रामनामा‌ का परचम बुलन्द किया है। वहीं, महंगाई का रिकार्ड भी तोड़ा है। अपराध, उन्माद, सड़कों पर होता प्रदर्शन पर काबू कर नये इतिहास की इबारत तस्कीद की है। वहीं, अपराधियो ,माफियाओं, समाज विरोधियों को औकात बताकर उनको मंजिल तक पहुंचाने का काम भी किया है। दहशत की दहलीज पर सर पटकने को मजबूर उत्तर प्रदेश का आवरण योगी सरकार के आने के बाद पूरी तरह बदल गया। गुंडा-मवाली, बवाली-माफिया डॉन समाज के शैतान, इन सबकी पलक झपकते‌ ही सरकार ‌‍ने कर दिया काम तमाम।
बाहुबलियो के कुनबों मे, खलबली है उनके घरों के ईर्द-गिर्द मौत चक्कर काट रही है। मौका पाते ही झपटृटा मार रही है। विकास दूबे से शुरु होकर अतीक  तक सटीक निशाना लगाने वाली‌ योगी सरकार काल बनकर मुस्करा रही है। दहशत में हैं माफिया मुख्तार आन्सारी।बाहुबली अतीक गुजरात में गुमनाम हो रहे हैं। तो यूपी में मुख्तार का कभी‌ जमाना था कि  सिवान में शैतान की बादशाहत थी शहाबुद्दीन के नाम से मशहूर था बिहार। जेल के खेल में सब कुछ खत्म हो गया दहशत में हैं परिवार। योगी ने सरकार उत्तर प्रदेश को निरोगी बनाने का संकल्प लें रखा है। अपराधियो के द्वारा समाज में दहशत की जो खेती की जा रही थी। उस‌ पर विराम लग रहा है। फोकस अपराधियो के काकस‌ पर है। सच के धरातल पर समतल होती व्यवस्था में अब आस्था का सवाल, मलाल बन कर टीस‌ रहा है। आम आदमी‌ को रोजगार चाहीये। रोटी, कपड़ा और मकान चाहीये। जिन्दगी के हर पल को जीने के लिये मुस्कराता हिन्दुस्तान चाहीये। आज का दौर  तबाही लिये गुजर रहा है। जीवन को सुरक्षित रखने का हर संसाधन  अभाव ग्रस्त‌ है। हर आदमी हो चुका पश्त है। फिर भी सरकार मस्त है। करोना के कहर ने गांव और शहर को तबाह कर दिया। मठ-मन्दिर‌, करबला‌ हो या मस्जिद। अनाथालय हो या बिद्यालय, ईदगाह हो या शिवालय। हर जगह कोरोना का खौफ हैं। इन्सान की सोच से निर्मित ये सारे धार्मिक संसाधन किसी काम नहीं आये कोरोना ने सबको आघात पहुंचाया है। अभी खुलकर सांस भी नहीं ले पायें कि तीसरी बार ललकार बांधे कोरोना सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा का तराना गाते चला आ रहा है। विदेशी लुटेरों की नमी जनरेशन में चाइना से चलकर भारत तक आने वाला कोरोना सिकन्दर की तरह बार-बार हमला कर रहा है। आदमी दहशत में इस कदर भयभीत हैं कि जीने को ही विकास मान लिया है। किसी तरह बची रहे‌ जान, चाहे कोई बने बादशाहे हिन्दुस्तान ? उलझी-उलझी जीवन की डोर लगातार उलझती जा रही है। अब तो जीवन ज्योति की टीम-टीमाती रोशनी भी घटती जा रही है। कल क्या हो कौन जाने ? फिलहाल सावधान रहें, सतर्क रहे।
होइहे सोई जो राम रचित राखा,
का करि तर्क बढावहि शाखा ?
जगदीश सिंह

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