अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। कोविड के बाद ब्लैक फंगस का अटैक जिस तरह से बढ़ा है। उसमें बार-बार यह बात कही जा रही है कि जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर हुई है। ब्लैक फंगस उन पर अटैक कर रहा है। साथ ही यह भी कि स्टेरॉयड लेने की वजह से इम्युनिटी कमजोर होती है और इसके गलत इस्तेमाल की वजह से दिक्कत बढ़ रही है।
इस सवाल पर फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल में जॉइंट रिप्लेसमेंट डायरेक्टर और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने कहा कि स्टेरॉयड एक तरह का केमिकल है। जो बॉडी में खुद ही हॉर्मोन की तरह बनता है। जब भी किसी को इमरजेंसी होती है उस वक्त ये लाइव सेविंग हार्मोन की तरह काम करता है। जैसे अगर आप सड़क पार कर रहे हैं और अचानक आपके सामने एक गाड़ी आ जाए और एक्सिटेंड होते होते बचे। उस वक्त दिल की धड़कन तेज हो जाती है और तुरंत एक्शन करके आप खुद को बचाने की कोशिश करते हैं।
यह रेस्पॉन्स बॉडी के अंदर स्टेरॉयड के निकलने से होता है जो एड्रीनल ग्लैंड से निकलता है। जब स्टेरॉयड को बाहर से दिया जाता है तो एड्रीनल ग्लैंड अपना काम करना बंद कर देती है और बॉडी के अंदर से बनने वाला स्टेरॉयड नहीं बनता है। बाहर से दिए गए स्टेरॉयड के असर की वजह से इंफ्लेमेशन बहुत कम हो जाता है। इसी वजह से इम्युनिटी कम होती है क्योंकि इम्युनिटी एक तरह का इंफ्लेमेशन ही होता है।
धर्मशिला सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. अंशुमान कुमार ने कहा कि अगर शरीर में कहीं इंफ्लामेशन हो रहा है तो स्टेरॉयड उसे कम करने का काम करता है। तो पहले यह समझा जाए कि ये इंफ्लामेशन क्या होता है? डॉ. अंशुमान ने बताया कि जब भी कोई एंटीजन यानी कि बाहरी एलिमेट बॉडी में आता है, जैसे कोरोना वायरस तो इसमें तीन तरह की संभावना रहती है। पहली ये कि कुछ नहीं होगा यानी कोई लक्षण नहीं होंगे इसका मतलब है कि बॉडी में एंटीबॉडी बहुत कम मात्रा में बन रही है और एंटीजन के साथ कोई लड़ाई नहीं हुई है बल्कि बॉडी ने उस वायरस को स्वीकार किया है और धीरे धीरे एंटीबॉडी बना रहा है।
दूसरी आशंका होती है कि हल्की सर्दी खांसी या बुखार हो। यानी हल्का इंफ्लामेटरी रिस्पॉन्स आया। मतलब यह कि बॉडी ने एंटीबॉडी बनाया और वायरस के साथ लड़ाई हुई और बॉडी को उसका अहसास भी हुआ। तीसरी संभावना होती है गंभीर केस। यानी कि वायरस और एंटीबॉडी के बीच लड़ाई इतना ज्यादा हो गई कि उससे शरीर के दूसरे हिस्सों में भी डैमेज होने लगा। जब यह इंफ्लेमेटरी रिस्पॉन्स बहुत ज्यादा हो जाता है तो लंग्स में भी इंजरी होती है। ऐसे में स्टेरॉयड मदद करता है। स्टेरॉयडी एंटी इंफ्लामेटरी काम करता है।
इंफ्लामेटरी का मतलब यह कि एंटीजन और एंटीबॉडी के बीच जो लड़ाई हो रही है और इसमें प्रतिरोधक क्षमता बनने की प्रक्रिया में शरीर में जो चेंज होने लगते हैं। यह कम भी हो सकते हैं और ज्यादा भी। डॉ. अंशुमान कुमार कहते हैं कि स्टेरॉयड की यह प्रॉपर्टी होती है कि अगर बिना जरूरत के स्टेरॉयड दिया तो वह इम्यून सिस्टम पर काम करने लगता है। जब लोग बिना जरूरत के, लंबे वक्त तक या फिर गलत तरीके से स्टेरॉयड लेते हैं तो यह इम्यून सिस्टम को दबाने लगता है। अगर डॉक्टर की देखरेख में स्टेरॉयड लेंगे तो वह घातक नहीं होगा क्योंकि डॉक्टर तभी स्टेरॉयड देंगे जब बॉडी का इंफ्लामेटरी रिस्पॉन्स ज्यादा होगा। ऐसे में स्टेरॉटड इंफ्लामेटरी रिस्पॉन्स को कम करने में ही खप जाता है और इम्युनिटी पर गलत असर नहीं डालता। हालांकि स्टेरॉयड ब्लड शुगर भी बढ़ाता है। ऐसे में डॉक्टर की निगरानी में स्टेरॉयड लिया जाए तो ब्लड शुगर भी मॉनिटर होती है।
डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने कहा कि जब कम वक्त के लिए मरीज को स्टेरॉयड देने से उसकी बॉडी की रिकवरी तेज होने लगती है और शरीर का दर्द कम होता है। फिर मरीज इसे बिना डॉक्टर की सलाह के भी खाने लगता है जिसकी वजह से उसके साइड इफेक्ट होते हैं। इम्युनिटी कम हो जाना, शरीर में सूजन आ जाना, बॉडी में पानी भर जाना इसके साइडइफेक्ट हैं।
कभी कभी डॉक्टर एनाबोलिक स्टेरॉयड का इस्तेमाल करते हैं जिसका मतलब है कि बॉडी के मेटाबॉलिजम को बेहतर करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसका कई लोग बॉडी बिल्डिंग में गलत इस्तेमाल करते हैं। एथलीट में स्टेरॉयड का गलत इस्तेमाल न हो इसलिए नैशनल- इंटरनैशनल गेम्स में डोप टेस्ट का प्रावधान है।
कुछ बीमारियों में स्टेरॉयड का इस्तेमाल लंबे वक्त तक किया जाता है। जैसे गठिया (रियुमेटॉइड आर्थराइटिस), ऑटो इम्यून डिसऑर्डर। कभी कभी कुछ बीमारियों में जब बॉडी में स्टेरॉयड बनना कम होता है तो थोड़ी मात्रा में डॉक्टर की सलाह पर स्टेरॉयड लेने से बॉडी नॉर्मल काम करती है। जब एक्सिडेंट के बाद मरीज शॉक में जाता है तब भी हम स्टेरॉयड का इस्तेमाल कर मरीज की जान बचाते हैं।
उन्होंने कहा कि जब किसी भी बीमारी की वजह से या किसी और वजह से शरीर में स्टेरॉयड कम हो जाता है तो इसे हम दवा की तरह देते हैं। इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल गर्भ निरोधक गोलियों में होता है। इन गोलियों में भी स्टेरॉयड होता है। किसी को अगर गंभीर कोरोना हुआ है और स्टेरॉयड से इलाज किया गया है तो फिर इम्युनिटी ठीक होने में कितना वक्त लगता है? डॉक्टर्स के मुताबिक आम तौर पर हम चार हफ्ते का वक्त रखते हैं। कोविड से रिकवरी हो गई है तो 4 हफ्तों तक सावधानी बरतते हैं। स्टेरॉयड लिया है तो दो हफ्तों तक इम्युनिटी कम होगी और उसके बाद दो हफ्ते रिकवरी में लगते हैं। इसलिए हम चार हफ्ते एहतियात बरतने को कहते हैं। लेकिन अगर किसी की डायबिटीज अनकंट्रोल्ड है तो उसे लंबा वक्त भी लग सकता है। वैसे 4 हफ्ते बाद सामान्य तौर पर इम्युनिटी सिस्टम नॉर्मल काम करने लगता है।
इम्युनिटी का ऐसे कोई अलग टेस्ट नहीं होता।
डॉक्टर्स के मुताबिक शरीर में सेल्स और एंटीबॉडी होती है। खून में वाइट ब्लड सेल्स होते हैं और उसमें फिर पांच टाइप के सेल होते हैं। वाइट ब्लड सेल्स की सामान्य संख्या प्रति क्यूबिक मिलीमीटर खून में 4 हजार से 11 हजार तक होती है। इसके अलावा शरीर में पांच टाइप के एंटीबॉडी होते हैं। इनका अलग टेस्ट होता है। यह भी हो सकता है कि वाइट ब्लट सेल की संख्या ठीक हो लेकिन फिर भी इम्युनिटी कम हो। हो सकता है कि एंटीबॉडी नहीं हो। इन सबकी मात्रा हर मरीज पर टेस्ट नहीं कर सकते हैं। इसलिए हम ये मान सकते हैं कि जिनको गंभीर तौर पर कोविड हुआ है तो उन्हें सावधानी बरतने की जरूरत है। अगर डायबिटीज के मरीज, कैंसर के मरीज या फिर ऐसे किसी शख्स को कोविड हुआ है जिसका कोई ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ है या वो इम्युनोसप्रेसिव ड्रग्स (इम्यून को दबाने वाली दवाई) ले रहा तो इसमें इम्युनिटी में गड़बड़ी देखने को मिलती है। ऐसे मरीजों को ज्यादा ऐहतियात बरतना होता है।
डॉ. अंशुमान के मुताबिक इम्युनिटी की ऑटोरिकवरी होती है।
मतलब जैसे ही बॉडी की वायरस से लड़ाई खत्म हुई एंटीबॉडी बनता है। बोन मैरो, थाइमस सहित शरीर के कई अंगों में इम्युनटी के सेल्स बनते हैं और सर्कुलेटिंग एंटीबॉडी बनता है। अगर इन सारे अंग के फंक्शन सही हैं तो दो हफ्ते बाद अपने आप इम्युनिटी ठीक हो जाती है। इसे सपोर्ट के लिए प्रोटीन की मात्रा अच्छी खानी चाहिए क्योंकि एंटीबॉडी बनता ही प्रोटीन से है। कोई अगर प्रोटीन ना ले तो बोन मैरो काम भी कर रहा होगा तो वह एंटीबॉडी नहीं बना पाएगा। विटामिन सी एंटीबॉडी बनाने में काम करता है।
आयरन इसमें सपोर्ट करता है। इसलिए इन सबकी कमी नहीं होनी चाहिए। खाने में यह लेना चाहिए और इम्युनिटी की ऑटोरिकवरी हो जाती है। डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने कहा कि संतुलित आहार लेने से सभी की इम्युनिटी नॉर्मल रही है। जब शरीर में किसी भी चीज के कमी होती है तो उसे सप्लिमेंट के तौर पर दिया जाता है। जैसे विटामिन सी, जिंक, विटामिन डी और दूसरे सप्लिमेंट। कई ऐसे मैसेज सर्कुलेट हो रहे हैं जिसमें कहा जा रहा है कि वैक्सीन लगाने के कुछ वक्त बाद तक इम्युनटी कम रहती है। क्या यह सही है? डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने कहा कि किसी भी वैक्सीन के देने से बॉडी की इम्युनिटी पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। बल्कि वैक्सीन इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए ही दी जाती है। बच्चों में तो एक साथ कई वैक्सीन दी जाती हैं।
उम्र के हिसाब से बढ़ती-घटती इम्युनिटी...
डॉ. अंशुमान कहते हैं कि कम उम्र में इम्यून सबसे तेज होता है। लेकिन एक साल से छोटे बच्चे में इम्युनिटी विकसित नहीं होती है। 60 साल से ज्यादा उम्र में भी इम्यून सिस्टम कमजोर होने लगता है। जिस तेजी से युवाओं में इम्यून सिस्टम काम करेगा उतना 60 साल से ज्यादा उम्र में रिस्पॉन्स नहीं करेगा। इम्यून सिस्टम बॉडी के सिगनल पर काम करता है। अगर बॉडी में कोई वायरस (एंटीजन) आया तो उस मैसेज को अंगों तक पहुंचाने का बॉडी का सिगनल कमजोर पड़ता है और ज्यादा उम्र में प्रोटीन की मात्रा भी कम होती है। इसलिए इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। अगर खानपान सही हो और स्वस्थ हो तो बच्चों से लेकर अडल्ट तक यानी 18 साल तक सबसे अच्छा इम्यून सिस्टम होता है।
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