नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “न्यू इंडिया” में बदनुमा दाग लगा रहे लाखों भिखार्यो के लिए एक केंद्रीय कानून बनने जा रहा है। जिसके तहत भिखारियों को गिरफ्तार नहीं बल्कि उन्हें पुनर्वास किया जाएगा। पुनर्वास व सुधार का राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार हो गया है जिसे अमल में लाने के लिए विधेयक बनाया गया है।अभी मुंबई भिक्षा वृति विरोधी कानून के तहत देश के कई राज्यों में भीखारियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई होती है। मगर दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों से यह कार्य बंद है। इससे पहले दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा सहित कई राज्यों में पुलिस भिखारियों को गिरफ्तार करती थी।
मगर अब केंद्र सरकार कि कुछ एजेंसियों ने मिलकर भिखारी सुधार एवं पुनर्वास विधेयक बनाया है जिसके तहत भिखारियों पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं बल्कि पुनर्वास व सुधार की योजनाएं लागू होंगी।यह विधेयक संसदीय प्रक्रिया से गुजर रहा है और जल्दी ही लोकसभा में पेश किया जाएगा। फिलहाल सभी राज्यों से राय मांगी गई है। कुछ राज्यों ने अपनी रिपोर्ट भेज दी है। ज्यादातर राज्यों ने भिखारियों को सुधार गृह में भेजने और उन्हें स्वावलंबी बनाने का मशविरा दिया है। दरअसल आजादी के बाद सरकारी विकास के चाहे जो भी दावे होते रहे हो लेकिन देश की राजधानी दिल्ली सहित लगभग सभी बड़े शहरों में प्रमुख चौराहों, धार्मिक स्थलों अस्पताल रेल बस परिसरों पर भीख मांगते बच्चे, महिलाएं व युवा देश को कलंकित कर रहे है। ज्यादातर राज्यों ने बॉम्बे भिक्षावृत्ति विरोधी कानून को लागू किया हुआ है। जिसमें पुलिस को अधिकार है कि वह किसी भी समय बिना वारंट किसी भी अधिकारी को गिरफ्तार कर सकती है।
मगर दिल्ली हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए केंद्र एवं दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया था और पुनर्वास की ठोस योजना बनाने के लिए कहा था। कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर भिक्षावृत्ति के खिलाफ काम करना शुरू भी किया है जिसमें बिहार सबसे आगे है। वहां पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना सहित कई बड़े शहरों को भिक्षुक मुक्त बनाने का अभियान छेड़ा है।जबकि राजस्थान में भिखारी सुधार एवं पुनर्वास कानून लागू है और पुलिस ने इस कानून के तहत जब सर्वे किया तो वहां पढ़े लिखे लोग भी भीख मांग रहे हैं। भिखारियों के पुनर्वास की पहल तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी सहित कुछ अधिवक्ताओं ने की थी जिसके तहत एक केंद्रीय कानून बनाने की मांग उठी थी। जिसके तहत भिखारियों को जेल में बंद करने के बजाए उनके पुनर्वास व सुधार का रास्ता निकाला जाए।
हालांकि भिक्षावृत्ति में कुछ बड़े शहरों में संगठित गिरोह भी काम कर रहे हैं। जिन्हें भिक्षा माफिया भी कहा जाता है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस गिरोह के विरुद्ध राज्यों की पुलिस को भी लिखा था क्योंकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक देश में प्रतिवर्ष लगभग 50 हजार बच्चे लापता होते हैं इनमें सिर्फ आधे बच्चे ही मिलते हैं बाकी को भिक्षा वृति व अपराध में धकेल दिया जाता हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भिखारियों की संख्या पौने चार लाख के आसपास थी जो अब दुगनी बताई जा रही है।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक जब तक एक केंद्रीय कानून नहीं बनेगा तब तक भिखारियों की समस्या का समाधान निकालना मुश्किल है। क्योंकि समय-समय पर इनके विरुद्ध अभियान चलाया जाता है जिसकी जानकारी होते ही भिखारी शहर छोड़कर दूसरे राज्य में पलायन कर जाते हैं। यदि कानून बन गया तो सबसे पहले बड़े शहरों को भिखारी मुक्त बनाया जायेगा और बच्चों को शिक्षा, महिलाओं एवं युवाओं को स्वावलंबी बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा और उन्हें रोजगार के अवसर भी उपलब्ध करवाए जाएंगे। इस विधेयक को लेकर केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत भी कई बैठकें कर चुके हैं।
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