अश्वनी उपाध्याय
गाजियाबाद। इस मुश्किल दौर में भी लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर पैसा कमाने की अंधी दौड़ जारी है। नकली दवाइयों, इस्तेमाल किए गए दस्तानों और कफन के साथ -साथ गाज़ियाबाद के विभिन्न बाज़ारों में सैनिटाइजर के नाम पर ग्राहकों से पूरी कीमत वसूलकर रंगीन पानी बेचा जा रहा है।
सैनिटाइजर के नाम पर यह रंगीन पानी नई बस्ती समेत विभिन्न मार्केट व अधिकांश मेडिकल स्टोर पर यह उपलब्ध है। थोक मार्केट में पांच लीटर कैन की कीमत 150 रुपये से 200 रुपये तक है। जबकि रिटेल में आमजन को यह इस पर लिखी 2,500 रुपये की कीमत या फिर कुछ कम में बेचा जा रहा है।
मानक के अनुरूप सैनिटाइजर न बनाने वाले लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। सैनिटाइजर्स के अधिकतर लोकल ब्रांड्स में दो से चार प्रतिशत ही अल्कोहल डाला गया है। इथेनाल आइसोप्रोपाइल अल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल सुरक्षित है। वहीं मिथाइल अल्कोहल से तैयार किया गया सैनिटाइजर नुकसानदेह है। मिथाइल अल्कोहल जहरीला होता है और त्वचा के संपर्क में आने पर यह एलर्जी पैदा कर सकता है। यह आंखों और सांसों के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंच कर उसे नुकसान पहुंचा सकता है।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंटेशन (सीडीसी) के मुताबिक साबुन और पानी से 20 सेकेंड तक हाथ धोना ही बेहतर है। अगर साबुन उपलब्ध न हो तभी सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें।
सैनिटाइजर बनाने वाली एक नामी कंपनी के डीलर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि तय मानकों के अनुसार कम से कम 60 प्रतिशत इथेनाल अल्कोहल या 70 प्रतिशत आइसोप्रोपाइल अल्कोहल वाले सैनिटाइजर में होना जरूरी है। इथेनाल हाथों के सुरक्षित और कीटाणु को खत्म करने में कारगर है। ग्राहक को नीले पानी के नाम पर ठगने के साथ ही जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है।
वहीं त्वचा रोग विशेषज्ञों के अनुसार केमिकलयुक्त सैनिटाइजर के इस्तेमाल से खुजली, सूखापन, लाल दाने या निशान, जलन के मामले पिछले करीब एक साल में बढ़े हैं। अधिकांश लोगों ने सैनिटाइजर के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल या बाजार से सस्ते में खरीदे सैनिटाइजर को लगाने की बात की। इसलिए कोरोना से बचाव के लिए मास्क का इस्तेमाल करें और बेहतर कंपनी का सैनिटाइजर लें और तरीके से उपयोग करें।
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