अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। आपको महसूस होगा कि आप खुद से कितना संघर्ष कर रहे हैं। ख़ुद को दांव पर लगा रहा है। अमित शाह पर कार्रवाई की बात आप कल्पना में भी नहीं सोच सकते और यह तो बिल्कुल नहीं कि चुनाव आयोग कार्रवाई करने का साहस दिखाएगा। क्योंकि अब आप यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव आयोग की वैसी हैसियत नहीं रही। आप जानते हैं कि कोई हिम्मत नहीं कर पाएगा।
चुनाव आयोग ने ही नियम बनाया है कि कोरोना के काल में रोड शो किस तरह होगा। उन नियमों का गृहमंत्री के रोड शो में पालन नहीं होता है। रोड शो में अमित शाह मास्क नहीं लगाते हैं। बुधवार को दिन भर बिना मास्क के रोड शो करते रहे। जब आयोग गृह मंत्री पर ही एक्शन नहीं ले सकता तो वह विपक्षी नेताओं के रोड शो पर कैसे एक्शन लेगा ? लेकिन अमित शाह आयोग के नियमों का पालन करते तो आयोग विपक्षी दलों की रैलियों में ज़रूर एक्शन लेता कि कोविड के नियमों का पालन नहीं हो रहा है।
चुनाव आयोग हर दिन अपनी विश्वसनीयता को गँवा रहा है ताकि उसकी छवि ख़त्म हो जाए और वह भी गोदी मीडिया के एंकरों की तरह डमरू बजाने के लिए आज़ाद हो जाए। हर तरह के संकोच से मुक्त हो जाए।
तालाबंदी और कर्फ्यू की विश्वसनीयता ख़त्म हो चुकी है। पहली बार जनता को लगा था कि अगर बचने के लिए यही कड़ा फ़ैसला है तो सहयोग करते हैं।
इस मामले में जनता के सहयोग करने का प्रदर्शन शानदार रहा। हालाँकि उसे पता नहीं था कि तालाबंदी का ही फ़ैसला क्यों किया गया? क्या यही एकमात्र विकल्प था? हम आज तक नहीं जानते कि वो कौन सी प्रक्रियाएँ थीं ? अधिकारियों और विशेषज्ञों ने क्या कहा था? कितने लोग पक्ष में थे? कड़े निर्णय लेने की एक सनक होती है। इससे छवि तो बन जाती है लेकिन लोगों का जीवन तबाह हो जाता है। वही हुआ। लोग सड़क पर आ गए। व्यापार चौपट हो गया।
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