अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को कहा कि संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मानते थे कि ज्ञान से स्वाभिमान और स्वाभिमान से शील विकसित होता है। वे मानते थे कि शिक्षा से ही समरस समाज विकसित होता है और देश प्रगति करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ की 95वीं वार्षिक बैठक और राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित किया। इसमें देशभर के विश्वविद्यालयों से कुलपतियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भाग लिया। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 130वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री ने किशोर मकवाणा द्वारा लिखित चार पुस्तकों का विमोचन किया। यह पुस्तकें डॉक्टर अंबेडकर के जीवन, व्यक्ति, राष्ट्र और आयाम दर्शन पर लिखी गई हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में शिक्षा के महत्व, नई शिक्षा नीति और सरकार द्वारा कौशल विकास व वंचितों के उत्थान के लिए किए जा रहे प्रयासों का जिक्र किया।
प्रधानमंत्री ने डॉक्टर बाबा साहब को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनके जीवन का संघर्ष और उन्होंने जो ऊंचाई हासिल की है, वह हम सब के लिए लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने देश को संविधान देखकर समरस व समावेशी समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया, जिस पर चलकर देश निरंतर सफलता हासिल कर रहा है।
इस दौरान प्रधानमंत्री ने देश के विश्वविद्यालयों को आपस में तालमेल बिठाने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों को बहु-आयामी बनाए जाने और छात्रों को पढ़ाई की लचीली व्यवस्था देने पर जोर दिया गया है। ऐसे में उन्हें तय समय में इस दिशा में काम पूरा करना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से कहा कि आज के समय में हम छात्रों के क्षमताओं को समझने की आवश्यकता है। इससे जुड़े हुए तीन प्रश्न हमारे सामने हैं। पहला कि वह क्या कर सकते हैं, दूसरा सिखाए जाने के बाद वह क्या कर सकते हैं और तीसरा वह क्या करना चाहते हैं। पहला प्रश्न छात्रों की आंतरिक क्षमता से और दूसरा उनके संस्थागत विकास से जुड़ा हुआ है। इन दोनों प्रश्नों के उत्तर से ही छात्र वह कर पाने में सक्षम हो पायेंगे जो वह करना चाहते हैं।
इस दौरान प्रधानमंत्री ने भारतीय विश्वविद्यालयों से राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले गणमान्य व्यक्तियों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा के महत्व के साथ-साथ उनके भारतीय स्वरूप पर बल देते थे। नई शिक्षा नीति में उनकी इस सोच को आगे रखा गया है।
प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति को भविष्य आधारित और वैश्विक मानकों पर खरी उतरने वाली बताया। उन्होंने कहा कि यह न केवल व्यवहारिक है बल्कि इसका लागू करना भी पूरी तरह से व्यवहारिक है।
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